“मैं और मेरी तन्हाई, अक्सर ये बातें करती हैं, तुम होती तो कैसा होता, तुम ये कहती, तुम वो कहती…..” ये हमारे विचार नहीं, बल्कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की व्यथा है, जो उन्होने हाल ही में सबको बयां की है। सीएम बने हुए महोदय को अभी दो ही महीने हुए हैं कि उन्हें तुरंत याद आ गया कि कैसे भाजपा ने उसके साथ विश्वासघात किया था।
भाजपा को वर्तमान राजनीतिक परिस्थिति के लिए निशाने पर लेते हुए उद्धव ठाकरे ने कहा है, “परदे के सामने और पीछे क्या हुआ? मैंने भाजपा से क्या मांगा था, जो पहले से तय था वहीं न! मैंने कोई चांद तारे नहीं मांगे थे? अगर भाजपा अपने किये गये वादों को निभाती तो मैं मुख्यमंत्री पद पर नजर नहीं आता, कोई और शिवसैनिक ही इस पद पर नजर आता। लेकिन इस दिशा में उठा ये पहला कदम है”।
इन्होंने खुद ही भाजपा से नाता तोड़ काँग्रेस और एनसीपी के साथ सरकार बनाई, और अब दोष भी भाजपा पर मढ़ रहा हैं। मतलब चित भी मेरी, पट भी मेरी और सिक्का भी, है न उद्धव जी?
एचडी कुमारस्वामी भी कुछ ऐसे ही थे जब वो कर्नाटक के मुख्यमंत्री थे। भाजपा बस सत्ता में न आए, इसलिए जोड़-तोड़ कर काँग्रेस और एचडी कुमारस्वामी की पार्टी जेडीएस ने कर्नाटक में सरकार बनाई। पर भाई सरकार को बने दो महीने भी नहीं हुए कि एचडी कुमारस्वामी ‘दिल के अरमान आंसुओं में बह गए’ मोड में उतर आए।
जुलाई 2018 में ही एचडी कुमारस्वामी ने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि वे उन्हें सता रही है और उन्हें काम नहीं करने दे रही है, जिस कारण उन्हें जहर का घूंट पी कर सरकार चलानी पड़ रही है। इसकी पुष्टि वरिष्ठ काँग्रेस नेता केबी कोलीवाड़ ने भी की थी। फिर कुछ ही महीनों बाद जनाब इस बात का रोना रोने लगे कि भाजपा उनके विधायकों पर गिद्ध की भांति नज़र गड़ाए हुई है और उन्हें भाजपा में शामिल करने के लिए सैन्य विमानों का सहारा ले रही है।
पर जनाब यहीं पर नहीं रुके। उन्होंने कांग्रेस पर जनवरी 2019 में एक बार फिर आरोप लगाते हुए कहा, “मैं सीएम नहीं, इस सरकार में क्लर्क की तरह काम कर रहा हूँ, क्योंकि कांग्रेस के लोग मेरे हर काम में हस्तक्षेप कर रहे हैं। कांग्रेस मुझसे हर वो काम करवाती है, जो उसे फायदा पहुंचाए, और मुझे न चाहते हुए भी उनकी हर बात माननी पड़ती है”। लोकसभा चुनाव में कर्नाटक में लगभग सभी सीटें हारने पर एचडी कुमारस्वामी ने जून में अपना दुखड़ा रोते हुए कहा, “मैं आपको बयान नहीं कर सकता कि मैं किस दर्द से गुज़र रहा हूँ”।
अब उद्धव ठाकरे भी लगता है एचडी कुमारस्वामी की देखा देखी अपना दुखड़ा रोने पर उतर आए हैं। अगर दोनों में कुछ अंतर है, तो बस इतना ही कि कुमारस्वामी कम सीटों के साथ सीएम बनने पर इतना रोते थे, जबकि उद्धव ठाकरे के शिवसेना पार्टी की गठबंधन सरकार में सबसे ज़्यादा सीटें हैं, इसके बावजूद उनकी पार्टी सबसे असहाय और गठबंधन में सबसे कमजोर पार्टी सी दिखाई दे रही है।
सच कहें तो उद्धव ठाकरे सीएम भले ही बन गए हो, पर वे किसी मुख्यमंत्री की भांति न तो शक्तिशाली हैं, और न ही वे कोई दायित्व लेने के लिए इच्छुक दिखाई देते हैं। जिस तरह से उन्होंने भाजपा को निशाने पर लेते हुए कविता के माध्यम से अपना दुखड़ा रोया है, उससे इनमें और एचडी कुमारस्वामी में कोई विशेष अंतर नहीं दिखाई देता। यदि ऐसे ही चलता रहा, तो उद्धव की सरकार को गिरने में ज़्यादा समय नहीं लगेगा।