न कोई तैयारी, न हौसला और न स्थिति का अंदाजा- दिल्ली पुलिस द्वारा दंगे के दौरान एक्शन कई सवाल खड़े करता है

मोटा भाई को जल्द ही इस व्यवस्था को दुरुस्त करना चाहिए!

दिल्ली पुलिस

PC: Twitter

इस सप्ताह दिल्ली ने भारी दंगे और हिंसा देखे और कारण था CAA के विरोध में किया जा रहा प्रदर्शन। इन प्रदर्शनों की आड़ में रोड ब्लॉक किए गए और फिर उसके बाद दंगे भड़क उठे। इनमें सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र नॉर्थ ईस्ट दिल्ली था जहां गाड़ी, घर जलाए गए और गोलीबारी से लेकर पत्थरबाजी तक की गयी। अभी तक 15 से ऊपर लोगों की मृत्यु की खबर है। अगर इन हिंसक प्रदर्शन और दंगों के भड़कने के समय और क्षेत्र पर नजर डालें तो यह समझ आयेगा कि यह प्रदर्शन कोई त्वरित प्रदर्शन नहीं था बल्कि, एक सुनियोजित हिंसा थी जिसे बड़ी ही चालाकी से अंजाम दिया गया। दिल्ली पुलिस को प्रदर्शन के नाम पर हिंसा की कोई खबर ही नहीं लगी। इसे दिल्ली पुलिस के खुफिया विभाग की विफलता ही कहेंगे कि वह दिल्ली के आसमान में हिंसक तत्वों के रूप में काले बादल के आने का पता नहीं लगा सकी।

हालांकि, सोमवार और मंगलवार सबसे भयानक हिंसा देखी गयी थी लेकिन इन हिंसक प्रदर्शनों की तैयारी काफी पहले ही की गयी होगी क्योंकि यह सभी को पता था कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भारत आने वाले हैं। दंगाइयों ने जानबूझकर वैश्विक मीडिया में आने के लिए  हिंसा कारवाई ताकि ट्रम्प के रहते भारत और पीएम मोदी को बदनाम किया जा सके।

दंगाइयों ने पहले तो शाहीन बाग मॉडल अपनाते हुए जाफराबाद के रोड नंबर 66 को ब्लॉक कर दिया। इसी भीड़ ने मौजपुर में कपिल मिश्रा की प्रो CAA रैली के ऊपर पत्थरबाजी भी की। ये वही इलाका है जहां भयावह हिंसा देखी गयी और दिल्ली पुलिस के हेड कांस्टेबल की हत्या कर दी गयी थी।

https://twitter.com/TrulyMonica/status/1231466146773159941

https://twitter.com/Soumyadipta/status/1231438839941672960

उस दौरान ऐसा लगा कि दिल्ली पुलिस ने मौके की गंभीरता को नहीं समझा और उसे कम आँकने की गलती की जो हिंसा रविवार को ही शुरू हो चुकी थी। रात भर हुए इस प्रदर्शन में करीब 500 महिलाएं शामिल थीं जिन्होंने जाफराबाद मेट्रो की एंट्री और एक्ज़िट दोनों को ही ब्लॉक कर रखा था। दिल्ली पुलिस द्वारा लिए गए शुरुआती कदम से स्पष्ट पता चलता है कि पुलिस ने स्थिति को कम आँकने की गलती की। उस क्षेत्र में सिर्फ एक मेट्रो ही बंद थी लेकिन बाकी मेट्रो खुली थी जिससे कई लोग आवाजही करते रहे और भीड़ एक जगह से दूसरी जगह जाती रही। अगर दिल्ली पुलिस ने पहले ही मौजपुर-बाबरपुर और जाफराबाद रूट पर आस पास के सभी मेट्रो को बंद कर दिया होता तो शायद इतनी भीड़ का एक जगह से दूसरी जगह मूवमेंट नहीं हो पता।

कई फोटो ऐसे भी सामने आये जिसमें भीड़ कैरेट में पत्थर के साथ दिखाई दे रही है। यानि कि पत्थर लाने के लिए कैरेट का इस्तेमाल किया गया था। यह सुनियोजित हमले के तहत किया गया दंगे की ओर इशारा करता है। अगर यह सुनियोजित नहीं होता तो इतनी तैयारी नहीं की जाती। हैरानी की बात तो यह है कि दंगाई दंगा करने की तैयारी करते रहे और पुलिस को भनक तक नहीं लगी। यह पुलिस के खुफिया तंत्र की नाकामी ही कही जाएगी।

https://twitter.com/shubh19822/status/1231949540179079169

 

सिर्फ पत्थर फेंकने, घर और गाड़ी जलाने की खबर ही नहीं आई बल्कि पैरामिलिट्री जवानों पर एसिड भी फेंके गए। इतनी बर्बरता पर तो किसी भी पुलिस अधिकारी का खून खौल उठेगा और ऐसे हिंसक आतंक को रोकने के लिए हरसंभव कदम उठाएगा।

https://twitter.com/IshitaYadav/status/1232297493607542786

जब दंगाई मिनट दर मिनट और उग्र होते गए तो वहीं पुलिस एकदम बेबस नजर आई। एक वीडियो भी वायरल हुआ जिसमें प्रो CAA के लिए आए लोग एक घायल पुलिसवाले को दंगाइयों से बचा रहें है। अब सवाल यहाँ यह उठता है कि ऐसी क्या बेबसी थी की पुलिस को मदद की अवश्यकता पड़ी जबकि होना यह चाहिए था कि पुलिस लोगों को बचाए।

https://twitter.com/Satyanewshi/status/1232158494767419392

हिंसा के बीच में एक हिंसक दंगाई मुहम्मद शाहरुख की फोटो भी वायरल हुई थी जिसमें वह पुलिस पर एक पिस्तौल ताने खड़ा था और पुलिस के हाथ में बस एक डंडा था। पुलिस की बेबसी का उदाहरण इस फोटो से ही पता चलता है। इन शाहरुख नाम के दंगाई ने 8 राउंड फ़ाइरिंग की थी।

https://twitter.com/AdvaitaKala/status/1232268339805687808

https://twitter.com/akshaydongre4/status/1232213094316810240

और भी तस्वीरों और वीडियो को देखें तो यह साफ हो जाएगा की पुलिस की पकड़ जमीनी स्तर पर बेहद कमजोर दिखी। बंदूक, पिस्तौल और पत्थर फेंकने वाले दंगाइयों के सामने पुलिस को सिर्फ एक डंडा देना कहीं से भी उचित फैसला नहीं लगा। हेड कांस्टेबल रतनलाल की हत्या गोलियों के घाव से ही हुई है।

दिल्ली पुलिस और खुफिया विभाग की यह नाकामी ही कही जाएगी कि इस बड़े स्तर के दंगे को प्लान कर अंजाम दे दिया गया और पुलिस को भनक तक नहीं लगी। ऐसा लगता है कि पुलिस और पैरामिलिट्री फोर्सेज को बिना तैयारी के ही भेज दिया गया था। एक पुलिस की हत्या और दर्जनों घायल पुलिस वालों की खबर  तो यही कहानी बयां करती है।

इतने समय के बाद अब पुलिस ने कुछ कड़े कदम उठाने शुरू किये हैं और अब शूट एंड साइट का ऑर्डर दिया गया है। एक कदम उठाने से ही जाफराबाद मेट्रो स्टेशन खाली हो गया।

इससे यह भी पता चलता है कि पुलिस के पास या तो खुफिया जानकारी नहीं थी या फिर ऊपर के अधिकारी कड़े कदम उठाने में हिचकिचा रहे थे। अगर दिल्ली पुलिस ने पहले ही ऐसे कड़े कदम उठाए होते और जैसी आवभगत दंगाई की करनी चाहिए वैसी आवभगत की होती तो शायद इतना नुकसान नहीं होता।

खुफिया सूचनाओं की कमी, दंगे के संकेतों को समझने में विफलता और इन इलाकों के इतिहास को देख कर कदम नहीं उठाना ही इस विफलता के कारण है। एक बार स्थिति के काबू में आ जाने के बाद, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को दिल्ली पुलिस की इस विफलता का जायजा लेना होगा और दिल्ली पुलिस और साथ ही जो कुछ भी गलत है उसे ठीक करना होगा।

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