इस वर्ष के बजट की सबसे खास बात जो रही वह है देश के सांस्कृतिक विरासत को पर्यटन के लिए विकसित करने पर अधिक ध्यान। केंद्र की मोदी सरकार ने संस्कृति और पर्यटन सेक्टर को नई दिशा देने के लिए एक नए तरह की रूपरेखा वाला बजट पेश किया। सबसे पहले सरकार ने देश में संस्कृति से जुड़ी विधाओं के बारे में बेहतर इन्फ्रास्ट्रक्चर व विशेषज्ञ जुटाने के लिए एक इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ हेरिटेज एंड कंजर्वेशन की स्थापना करने का ऐलान किया, जिसे डीम्ड यूनिवर्सिटी का दर्जा दिया जाएगा।
इसके साथ ही केंद्र सरकार ने पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए पांच पुरातात्विक साइट्स को आइकॉनिक साइट के तौर पर विकसित करने की बात कही है। इस योजना के तहत इन पुरातात्विक साइट्स पर उन साइट्स से मिली चीजों पर आधारित एक म्यूजियम या संग्रहालय व आसपास इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार किया जाएगा। ये पांच साइट्स हरियाणा में राखीगढ़ी, यूपी में हस्तिनापुर, असम में शिवसागर, गुजरात में धौलावीरा व तमिलनाडु में आदिचनल्लूर हैं।
आइये देखते हैं इन पांचों स्थान का भारत के इतिहास में क्या महत्व है।
- हरियाणा में राखीगढ़ी
हरियाणा के हिसार जिले में राखीगढ़ी नाम का एक गाँव हैं। ये जगह दिल्ली से करीब 150 किमी दूर स्थित है। राखीगढ़ी करीब 6500 ईसा पूर्व की सिंधु घाटी सभ्यता का स्थल है। भारतीय पुरातत्वविदों और डीएनए विशेषज्ञों की एक टीम ने यहां रिसर्च की थी। इस रिसर्च के दौरान की गई खुदाई में मिले कंकालों की कार्बन डेटिंग से यह पता चला है कि ये प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता से संबंधित हैं। ये जगह हिसार के पास 300 हेक्टेयर में फैली है। यहां हड़प्पा काल से जुड़ी निशानियां भी मिली हैं, जो कि लगभग 2800-2300 ईसा पूर्व की है। यही नहीं यहां हुई खुदाई से यह भी सिद्ध हो गया था कि आर्य-द्रविड़ सिधान्त एक झूठ है। राखिगढ़ी बस्ती से करीब एक किलोमीटर दूर 4,500 वर्ष पुराने कंकाल मिले थे। पुणे के डेक्कन कॉलेज ऑफ आर्कियोलॉजी के प्रोफेसर वसंत शिंदे की अगुआई वाली टीम ने 2015 में राखीगढ़ी के मिट्टी के टीलों को खुदवाना शुरू किया था। इसे लेकर वैज्ञानिकों ने अवशेषों का डीएनए टेस्ट किया था। DNA टेस्ट से पता चला है कि यह रिपोर्ट प्राचीन आर्यन्स की डीएनए रिपोर्ट से मेल नहीं खाती है। ऐसे में यह प्रमाणित होता है कि आर्यों के बाहर से आने का सिधान्त ही मिथ्या है। अमेरिकी साइंटिफिक जनरल ‘सेल’ में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक सरस्वती-सभ्यता के मानव का आर्यनों के जीनोम में समानता नहीं है। इसके अलावा इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि शिकार करना, खेती और पशुपालन भारत के मूल निवासियों ने अपने आप सीखा था। इस स्थान को विकसित करने से और यहाँ संग्रहालय बनने से एक तो यह पर्यटन स्थल में तब्दील होगा और दूसरा देश विदेश के अन्य लोगों के दिमाग से आर्य-द्रविड़ सिधान्त को मिटाने में मदद मिलेगी।
2.यूपी में हस्तिनापुर
यूपी में हस्तिनापुर को कौन नहीं जनता। जिसने भी महाभारत पढ़ी है, उसे हस्तीनपुर के बारे में अच्छे से पता होगा कि एक समय में हस्तिनापुर सत्ता का केंद्र हुआ करता था। वर्तमान भारत में ये नगर उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में स्थित है। महाभारत के अनुसार महाराज युधिष्ठिर हस्तीनपुर के महाराज हुआ करते थे और उन्होंने राजसूय यज्ञ भी किया था। इसका उल्लेख महाभारत के सभा पर्व में मिलता है। इस क्षेत्र में की गई खुदाई में मिली निशानियों से ये मालूम होता है कि ये जगह महाभारत के आसपास यानी 1500-2000 ईसा पूर्व से संबंधित है। दिल्ली से यह दूरी करीब 110 किलोमीटर है। हस्तिनापुर समेत पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ऐसी कई जगहें हैं जिनके आधार पर कहा जाता है कि महाभारत कोई कल्पना नहीं, बल्कि हकीकत थी। मेरठ के एक मोहल्ले का नाम है कौरवान और दूसरे का पांडवान। एक टीला भी है जिसकी खुदाई पर प्रतिबंध है।
इसके अलावा पानी का एक कुंड भी है, जिसे द्रौपदी कुंड कहा जाता है। थोड़ी ही दूर है बरनावा। माना जाता है कि यहीं लाक्षागृह था। सीसीएस यूनिवर्सिटी के इतिहास विभाग के प्रफेसर विघ्नेश कुमार त्यागी ने बताया कि हस्तिनापुर में महाभारतकालीन अवशेष आज भी मौजूद हैं। यहां आज भी वह वटवृक्ष मौजूद है जिसके बारे में मान्यता है कि इस वृक्ष को भीम ने लगाया था। वह कुंआ आज भी मौजूद है जहां पांडव स्नान किया करते थे। वहीं वर्ष 2018 में खुदाई के दौरान बागपत के सनौली गांव में पहली बार घोड़े से चलने वाला रथ, नौ कंकाल और युद्ध के तलवार मिले थे। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग का दावा है कि ये महाभारतकाल के हैं। वहीं जैन समुदाय के लोगों के लिए भी हस्तिनापुर एक पवित्र स्थल है। जैन धर्म के 24 तीर्थांकरों में से 16, 17 और 18 वें तीर्थांकर का जन्म यहीं हुआ था। हस्तिनापुर में हर वर्ष भारी संख्या में जैन श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। यह बागपत मेरठ से मात्र 52 किलोमीटर है। अगर यह विकसित होता है तो पर्यटन के साथ साथ हस्तिनापुर का गौरव भी लौट आएगा।
3. असम में शिवसागर
असम की राजधानी गुवाहाटी से करीब 360 किमी की दूरी पर स्थित सिबसागर जिला स्थित है। इस जगह को अब शिवसागर के नाम से भी जाना जाता है। यह शहर करीब 100 सालों तक अहोम सम्राज्य की राजधानी था। यहां पर 129 एकड़ का एक मानव निर्मित सिबसागर तालाब है, जिसके चारों ओर यह शहर बसा हुआ है। इस शहर में आपको अहोम सम्राज्य से जुड़ी कई ऐतिहासिक चीजें देखने को मिलेंगी। इस नगर को अहोम राजा शिव सिंहा द्वारा बनाया गया था। इस पूरे शहर में यहां-वहां स्मारकों के समूह बिखरे हुए हैं। इसका कारण यह है कि, एक के बाद एक राजाओं ने अपने अनुसार राज्य को विभिन्न स्थानों पर स्थानांतरित किया था। लेकिन आज उनमें से अधिकतर स्मारक सिबसागर का भाग बन चुके हैं। शिवसागर सरोवर, शिवडोल, विष्णुडोल और देवीडोल मंदिर, रंग घर जैसे कई महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल हैं जिसे विकसित करने पर यह एक प्रमुख पर्यटन केंद्र बन सकता है। इस बार के बजट में केंद्र सरकार ने यहाँ पर संग्रहालय बनाने का निर्णय लेकर इस महत्वपूर्ण स्थान का फिर से गौरव लौटाने की कोशिश की है।
4.गुजरात में धौलावीरा
गुजरात के कच्छ जिले में भचाऊ क्षेत्र में धोलावीरा स्थित है। ये क्षेत्र भी पुरातत्व स्थल है। धोलावीरा का स्थान कर्क रेखा पर है। यहां पुरातत्वविदों द्वारा की गई रिसर्च में मालूम हुआ है कि ये जगह पांच सबसे बड़े हड़प्पा स्थलों में से एक है। ये क्षेत्र सरस्वती-सिंधु घाटी सभ्यता के नगरों में से एक था। धौलावीरा नामक हड़प्पाई संस्कृति वाले इस नगर की योजना समानांतर चतुर्भुज के रूप में की गयी थी। इस नगर की लम्बाई पूरब से पश्चिम की ओर है। नगर के चारों तरफ एक मज़बूत दीवार के निर्माण के साक्ष्य मिले हैं। आज से करीब 5 से 6 हजार वर्ष पहले ही धौलावीरा के निवासियों ने मानहर और मानसर झरनों में बरसात में बहने वाले पानी को जमा करने के लिए कई जलागार बनाए थे। उपयुक्त स्थानों पर पत्थर के बांध बनाए गए थे ताकि बहते हुए पानी को भूमिगत नालियों से कई जलाशयों में जमा किया जा सके। ये जलाशय हड़प्पा शहर की दीवार के भीतर-बाहर ढलानों पर खोदकर बनाए गए थे। जलाशयों को बांधो और जल-सेतुओं द्वारा एक-दूसरे से अलग किया गया था जो शहर के अलग-अलग क्षेत्रों तक पहुंचने के रास्ते भी बन गए थे। वर्षा का जल इकट्ठा करने के लिए पूरे नगर दुर्ग में नालियों का जाल बिछाया गया था। सुरक्षित किले के एक महाद्वार के ऊपर उस जमाने का साईन बोर्ड पाया गया है, जिस पर दस बड़े-बड़े अक्षरो में कुछ लिखा है, जो पांच हजार साल के बाद आज भी सुरक्षित है। उस महानगर का नाम अथवा प्रान्त अधिकारियों का नाम, यह आज भी एक रहस्य है। यहाँ से पाषाण स्थापत्य के उत्कृष्ट नमूने मिले हैं। पत्थर के भव्य द्वार, वृत्ताकार स्तम्भ आदि से यहाँ की पाषाण कला में निपुणता का पर्चा मिलता है। पौलिशयुक्त पाषाण खंड भी बड़ी संख्या में मिले हैं, जिनसे विदित होता है कि पत्थर पर ओज लाने की कला से धोलावीरा के कारीगर सुविज्ञ थे। इससे न सिर्फ भारत के पुरातात्विक इतिहास को पढ़ने और समझने का मौका मिलेगा बल्कि देश के युवाओं को अपने समृद्ध इतिहास जानने का मौका मिलेगा।
5.तमिलनाडु में आदिचनल्लूर
तमिलनाडु के थूथुकुडी जिले में आदिचनल्लूर स्थित है, ये भी एक पुरातात्विक स्थल है। यहां भी पुरातत्वविदों द्वारा खोज की गई है। खोज में मालूम हुआ है कि ये जगह पांडियन साम्राज्य से संबंधित है। आदिचनल्लूर में खोजे गए नमूनों की कार्बन डेटिंग से मालूम हुआ है कि ये चीजें 905 ईसा पूर्व और 696 ईसा पूर्व के बीच की हो सकती है। यहां मिले मानव कंकालों की रिसर्च करने पर मालूम हुआ कि ये 2500-2200 ईसा पूर्व के हो सकते हैं। यहाँ से एक शव-कलश प्राप्त हुआ था, जो महापाषाण काल से कुछ पहले का माना जाता है। आदिचनल्लूर से शव-कलश के साथ ही काँसे का कुक्कुट, लोहे के बर्छे तथा स्वर्ण-पत्र के मुख-खण्ड भी प्राप्त हुए हैं। दक्षिण में इस स्थान पर संग्रहालय बनने से यह सभी को अपनी ओर आकर्षित करेगा। केंद्र सरकार के इन सभी पाँच स्थलो को अलग से विकसित करने दौरान भारत के विविध संस्कृतियों का भी प्रचार प्रसार होगा। भारत के इन प्राचीन नगरों का गौरव वापस लौट आएगा।