चुनावों में ‘आप’ को जीताने के बाद अब दिल्ली की जनता क्यों सड़जी को गाली दे रही है?

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पिछले कुछ महीनों में दिल्ली ने सब कुछ देखा है, कॉस्मेटिक विरोध प्रदर्शनों से लेकर मॉब लिंचिंग और दंगों तक। मुफ्तखोरी राजनीति और लोकलुभावन वादों के आधार पर केजरीवाल को भले कुर्सी मिल गयी हो, परंतु उसने पूरी दिल्ली को जला कर रख दिया है। यदि आप दिल्ली के दंगों के पीछे के प्रमुख कारण पर गौर करें तो इसमें आम आदमी पार्टी का हाथ खुलकर सामने आया है। जिस तरह से उपद्रव को बढ़ावा देकर और कानून व्यवस्था की धज्जियां उड़ाते हुए आम आदमी पार्टी के कई नेता सामने आए, उससे स्पष्ट हो जाता है कि वे वास्तव में दिल्ली के हितों के प्रति कितने हितैषी हैं।

पिछले ढाई महीनों में आम आदमी पार्टी के विधायक सक्रिय रूप से सीएए विरोध के नाम पर उपद्रव करने वाले दंगाइयों और आतंकियों को खुला छोड़ दिया है। उन्होंने पुलिस को इस तरह से नकारात्मक रूप में पेश किया, कि दंगाइयों को पुलिस वालों पर हमला करने की छूट भी मिल गयी।

जिस शाहीन बाग में भारत विरोधी, विशेषकर हिन्दू विरोधी भावनाओं और तत्वों को खुलेआम बढ़ावा दिया गया, वो शुरू से ही सीएए और एनआरसी पर भ्रामक खबरें फैलाने में लगा हुआ था। इसके मुख्य आयोजकों में से एक था शर्जील इमाम, और जल्द ही उसका पीएफ़आई से कनेक्शन भी खुलकर सामने आया। शाहीन बाग कभी भी एक शांतिपूर्ण धरना प्रदर्शन नहीं था, क्योंकि ये राष्ट्रद्रोह को बढ़ावा देने वाले हर एक्टिविटी का गढ़ बनने लगा था।

शाहीन बाग जैसी जगह पर ही इमरान हुसैन और अमानतुल्लाह खान को इन प्रदर्शनों में हिस्सा लेते और उग्रवादी भीड़ को भड़काते हुए देखा गया था। तत्कालीन उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने शाहीन बाग के उपद्रवियों को न केवल अपना समर्थन दिया, बल्कि दिल्ली पुलिस के विरुद्ध हिंसा भड़काने के झूठे आरोप भी लगाए –

अमानतुल्लाह खान ने खुलेआम मुसलमानों को भड़काया, और उसके विरुद्ध दिल्ली पुलिस ने एफ़आईआर भी दर्ज की है, जिसमें अमानतुल्लाह पर दंगे भड़काने, आगजनी और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के आरोप भी दर्ज है। परंतु अमानतुल्लाह के विरुद्ध कोई भी एक्शन लेने की बजाए आम आदमी पार्टी दिल्ली पुलिस के विरुद्ध आरोप मढ़ने में लगी हुई थी –

शाहीन बाग के प्रदर्शनों से मुसलमानों ने भर भर कर आम आदमी पार्टी को वोट दिया। ओखला से अमानतुल्लाह खान को लगभग 80 प्रतिशत वोट मिले। जितनी भी सीटें मुसलमान बहुल थीं, वहाँ आम आदमी पार्टी एकतरफा मत से जीती। उदाहरण के तौर पर बालीमारन में इमरान हुसैन ने भाजपा की लता सोढ़ी को 36172 मतों से हराया। मटिया महल में पाँच बार के विधायक शोएब इकबाल 67250 मतों से जीते। इसी तरह मुस्तफाबाद से हाजी युनूस 98850 मतों से विजयी हुए। सीलमपुर, मुस्तफाबाद और मटिया महल में अप्रत्याशित वोटर टर्न आउट दिखा, जहां कोई भी सीट 70 प्रतिशत से कम मतदान की नहीं देखी। तो क्या अब भी आप कहेंगे कि शाहीन बाग का राजनीति से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं था?

इतना ही नहीं, प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने वाले भी आम आदमी पार्टी के सदस्य निकले। जहां एक ओर एक व्यक्ति शाहीन बाग में पिस्तौल लहरा रहा था, तो वहीं दूसरे व्यक्ति ने गोलियां चलाते हुए कहा, “सिर्फ हिंदुओं की चलेगी”। परंतु दोनों ही आम आदमी पार्टी के सदस्य। एक व्यक्ति का नाम निकला मोहम्मद लुक़मान चौधरी, जो आम आदमी पार्टी के पार्षद अब्दुल मजीद खान से संबंध भी रखते थे –

वहीं दूसरे व्यक्ति का नाम था कपिल गुज्जर, जिसके पिताजी भी उसी की तरह आम आदमी पार्टी के सदस्य हैं। दिल्ली पुलिस ने कपिल के फोन से ये सभी जानकारी अपने टेक्निकल टीम की सहायता से निकालने में सफलता पायी। ऐसे में भाजपा पर सभी चीजों का दोष डालने का आम आदमी पार्टी का पैंतरा पूरी तरह फ्लॉप हुआ –

अब जब डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत का दौरा करने का निर्णय लिया, दंगाइयों को आभास हुआ कि दिल्ली पुलिस और केंद्र सरकार इस समय थोड़ा संयम बरतेगी। इसी का फ़ायदा उठाते हुए शाहीन बाग के मॉडल को दोहराने का प्रयास जाफराबाद में किया गया, ताकि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हमारी छवि धूमिल हो सके। सीएए विरोध के नाम पर आम आदमी द्वारा प्रायोजित दंगाई जाफराबाद, मौजपुर और पूर्वोत्तर दिल्ली के कई इलाकों में ज़बरदस्त उपद्रव मचाने लगे। कई वीडियो स्पष्ट रूप से देखे भी गये थे कि कैसे इन दंगाइयों ने पूर्वोत्तर दिल्ली को जंग के मैदान में तब्दील कर दिया था। वामपंथियों ने स्वभाव अनुसार इसे हिन्दू आतंकवाद का रंग देने का प्रयास किया, परंतु दिल्ली पुलिस के हैड कांस्टेबल रतन लाल की हत्या और दंगों में मोहम्मद शाहरुख नामक व्यक्ति की भूमिका सामने आने के बाद पूरी दिल्ली में ज़बरदस्त आक्रोश उमड़ पड़ा, जिसका खामियाजा हाल ही में अरविंद केजरीवाल को भी भुगतना पड़ा। जब वे रतन लाल के परिवार को अपनी ‘संवेदना’ प्रकट करने मनीष सिसोदिया के साथ पहुंचे, तो उन्हें जनता के आक्रोश का सामना करना पड़ा, और उन्होंने ‘केजरीवाल वापस जाओ’ और ‘केजरीवाल मुर्दाबाद’ के नारे लगाए, जिसके कारण केजरीवाल को बाद में अपना रास्ता नापना पड़ा।

अभी हाल ही में आईबी के एक सुरक्षा सहायक अंकित शर्मा की हत्या की खबरें भी सामने आई, जिसका शव आम आदमी पार्टी के पार्षद ताहिर हुसैन के घर के पीछे बहने वाली नाले में फेंक दिया गया था। अंकित के परिवार ने ताहिर पर क्षेत्र में दंगा भड़काने और अंकित सहित 4 लोगों की बर्बर हत्या कराने का आरोप भी लगाया। इसके अलावा ताहिर हुसैन के अपराध को सिद्ध करने के लिए अनगिनत साक्ष्य और वीडियो उसके घर और उससे सटे क्षेत्रों से मिले हैं।

इसके बाद भी केजरीवाल ने केवल इतना कहा है कि आम आदमी पार्टी के नेता अगर गुनहगार हैं, तो उसे तुरंत गिरफ्तार करें, परंतु आम आदमी पार्टी की छवि को जो धक्का लगा है, उससे वे अब शायद ही उबर पाएंगे। जब से आम आदमी पार्टी ने सत्ता संभाली है, उसने दिल्लीवासियों को दुख दर्द देने के अलावा कुछ भी नहीं किया है।

आज़ादी के नारे मानो दिल्ली में एक आम बात हो गयी है, दंगे और आगजनी रोज़ की बात है, पुलिस अफसरों की हत्या कोई बड़ी बात नहीं है। ये अपने आप में केजरीवाल द्वारा फैलाये गए अराजकतावाद का सबसे बड़ा सबूत है, जिसका खामियाजा पूरे दिल्ली को भुगतना पड़ रहा है। अब केजरीवाल भले आरोप लगाए कि दिल्ली पुलिस उसके अंदर नहीं है, परंतु जनता इतनी भी बेवकूफ नहीं है। बहुत कम लोगों को पता है कि सीआरपीसी की धारा 129 और धारा 130 के अंतर्गत दिल्ली के एक्ज़ेक्यूटिव मैजिस्ट्रेट को विशेष अधिकार दिया गया है कि वो कहीं भी गैर कानूनी रूप से इकट्ठा हुए लोगों को हटा सके, जिसके लिए वो सेना की भी मदद ले सकता है, और ये सीधा केजरीवाल सरकार के अंतर्गत आता है। परंतु दिल्ली सरकार को इससे क्या, उनके लिए तो एजेंडा ऊंचा रहे हमारा।

जिस तरह केजरीवाल और उसकी आम आदमी पार्टी ने शुतुरमुर्ग की भांति अपना सिर ज़मीन में धंसा रखा है, उससे उनकी जवाबदेही खत्म नहीं हो सकती। वे अपने पार्टी के सदस्यों को सांप्रदायिकता के विरुद्ध आवाज़ उठाने के लिए कह सकते थे, पर उन्होंने ऐसा नहीं किया। वोटरों को अब आभास होने लगा है कि लोकलुभावन वादे हर समय एक अच्छे नेता का परिचय नहीं देता है। दिल्ली में जो कुछ भी हुआ है, उसके लिए देश कभी भी अरविंद केजरीवाल को क्षमा नहीं करेगा।

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