‘मोदीजी मेरे सिख भाइयों को वापस लाओ’ काबुल में 28 सिख मारे जाने के बाद CAA विरोधी अमरिंदर सिंह

इसे कहते हैं ‘पहले थूंको और फिर चाट लो’!

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काबुल के शोर बाज़ार में स्थित गुरुद्वारा गुरु हरराय साहिब पर हुए आतंकी हमले में 28 सिखों की निर्मम हत्या कर दी गई है। खुरासान मॉडयूल के आईएस आतंकियों ने इस हमले को कश्मीर में भारत की गतिविधियों का प्रत्युत्तर बताया।

इस हमले ने जहां एक ओर सिद्ध किया कि कैसे अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान में कट्टरपंथियों के रहते वहां के गैर मुस्लिम अल्पसंख्यक बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं है, तो वहीं इसने पंजाब के कथित ‘राष्ट्रवादी’ मुख्यमंत्री , कैप्टन अमरिंदर सिंह (सेवानिवृत्त) का दोमुंहा चेहरा भी सबके समक्ष उजागर हुआ।

भारत के विदेश मंत्री और पूर्व विदेश सेक्रेटरी रहे एस जयशंकर को ट्वीट लिखते हुए अमरिंदर सिंह कहते हैं, “प्रिय एस जयशंकर, अफगानिस्तान में ऐसे बहुत से सिख परिवार है जो भारत आना चाहते हैं। आपसे अनुरोध है कि शीघ्र-अतिशीघ्र उन्हें वहां से निकालें। संकट के समय ये हमारा धर्म है कि हम उनकी मदद करें”।

ये वही कैप्टन अमरिंदर सिंह है, जिन्होंने पंजाब के मुख्यमंत्री के तौर पर राज्य की विधानसभा में CAA के विरोध में प्रस्ताव पारित कराया था और बड़े घमंड में कहा था कि संसद को ऐसा कोई कानून पारित करने का अधिकार नहीं जिससे संविधान की आत्मा का अपमान हो और लोगों से उनके मूलभूत अधिकार छीन लिए जाएं।

सच कहें तो कैप्टन साहब की अजब ही दुनिया है। अपने आकाओं की प्रसन्नता के लिए महोदय CAA के विरुद्ध खड़े हो जाते हैं। परन्तु जब 28 निर्दोष सिक्खों की हत्या की जाती है, तो उन्हें केंद्र सरकार की याद आती है। CAA पर अमरिंदर सिंह जैसे राज्य नेताओं का कोई प्रभाव नहीं है, फिर भी उन्होंने इसके विरोध में प्रस्ताव पारित कराया। क्या वे CAA का विरोध कर अपने ही सिख भाइयों की जान खतरे में नहीं डाल रहे थे?

हालांकि, अभी CAA में अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से भागकर आए अल्पसंख्यकों के लिए प्रत्यक्ष नागरिकता का प्रावधान नहीं है, परन्तु यह निर्णय फिर भी सही दिशा में उठाया गया एक अहम कदम था। दिसंबर 2014 से पहले भारत की शरण में आए हिन्दू और सिख परिवार भारतीय नागरिकता के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे थे। CAA का ऐसे में विरोध कर कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सिद्ध किया कि उनके जैसे लोगों के लिए भी राजनीति सिद्धांत से ज़्यादा आवश्यक है।

कितनी विडंबना की बात है कि 28 सिखों की काबुल में हत्या के बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह को सुध आई। सरकार अपनी तरफ से ऐसे कई अल्पसंख्यकों को वापस ला सकती है, पर कैप्टन अमरिंदर सिंह को भी समझना होगा कि तुष्टिकरण की राजनीति के लिए वे अपनी संस्कृति और नैतिकता के साथ एक घटिया समझौता नहीं कर सकते।

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