मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार का काउंटडाउन शुरू, अमित शाह मैदान में उतर चुके हैं

मध्य प्रदेश

जल्द ही हमें मध्यप्रदेश से कमलनाथ सरकार ‘Exit’ होती दिखाई दे सकती है। ऐसा इसलिए क्योंकि अब कमान खुद गृह मंत्री और भाजपा के पूर्व अध्यक्ष अमित शाह ने अपने हाथों में ले ली है और अब भाजपा मध्य प्रदेश में ऑपरेशन लॉटस चला चुकी है। पिछले कुछ समय में जिस तरह कमलनाथ सरकार ने भाजपा के पूर्व मंत्रियों और भाजपा के विधायकों के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाया हुआ है, उसके कारण अब भाजपा ने यह निश्चय कर लिया है कि अब की बार MP में ऑपरेशन लॉटस को कामयाब करना ही है।

इसी कड़ी में दिल्ली में शाह के साथ 7 मार्च यानि शनिवार को एक नहीं बल्कि कई दौर में प्रदेश के नेता व केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेद्र प्रधान से बातचीत की। प्रधान भी मप्र से ही राज्यसभा सदस्य हैं। इस बात की पूरी उम्मीद है कि भाजपा मध्य प्रदेश कांग्रेस को कमजोर पाकर बड़ा दांव खेलना चाहती है। मध्य प्रदेश कांग्रेस पहले ही सिंधिया और कमलनाथ खेमे में बंट चुकी है। ऐसे में मध्य प्रदेश सरकार लोगों की आशाओं पर खरा उतरने में पूरी तरह असफल सिद्ध हुई है। यही कारण है कि BJP भी अब ऑपरेशन लॉटस को साकार करने में लगी है और अमित शाह के आने से अब इसके साकार होने की उम्मीदें बढ़ गयी है। वहीं दूसरी तरफ कांग्रेसी खेमे में हलचल बढ़ गयी है और कमलनाथ भी अपने विधायकों की बैठक बुला रहे हैं।

7 मार्च यानि शनिवार की रात सीएम निवास पर मुख्यमंत्री कमलनाथ, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह समेत राजनीतिक मामलों की समिति के सदस्यों ने डैमेज कंट्रोल को लेकर फिर बैठक की। इसके अलावा कमलनाथ ने अपने विधायकों को भोपाल में रहने के लिए ही फरमान जारी किया है। दो दिन पहले ही दिल्ली से 6 विधायकों को विशेष विमान से भोपाल लाया गया था। इनमें बसपा की रामबाई और संजीव सिंह, सपा के राजेश शुक्ला और तीन कांग्रेस विधायक ऐदल सिंह कंसाना, रणवीर जाटव तथा कमलेश जाटव शामिल थे। वहीं कांग्रेस को समर्थन दे रहे निर्दलीय MLA सुरेन्द्र सिंह शेरा ने भी कमलनाथ की टेंशन को बढ़ा दिया है। दरअसल, शेरा पिछले तीन दिनों से लापता थे, उसके बाद कल वे आखिरकार सामने आए और कमलनाथ से उन्होंने मुलाक़ात की। लेकिन देर रात शेरा फिर दिल्ली चले गए जिसके बाद फिर कमलनाथ खेमे को उनपर संशय हो गया है।

भाजपा के लिए कमलनाथ सरकार को किनारे करना इसलिए भी आसान है क्योंकि मध्य प्रदेश कांग्रेस कई गुटों में बंटी हुई है। मध्य प्रदेश कांग्रेस की सबसे बड़ी समस्या यह है कि यहां एक से ज़्यादा पॉवर सेंटर मौजूद हैं। कांग्रेस का एक खेमा ऐसा है जो ज्योतिरादित्य सिंधिया का समर्थन करता है, तो वहीं सीएम कमलनाथ और दिग्विजय सिंह का अलग ही खेमा दिखाई देता है। यही कारण है कि पिछले कुछ महीनों से सिंधिया और कमलनाथ के बीच तल्खी बढ़ती दिखाई दे दे रही है।

हाल ही में यह तल्खी तब उजागर हुई जब एक तरफ सिंधिया ने कमलनाथ के खिलाफ सड़क पर उतरने की धमकी दे डाली तो वहीं कमलनाथ ने भी उन्हें ऐसा करने की चेतावनी दे दी। सिंधिया के बागी तेवर तब भी देखने को मिले थे, जब सिंधिया ने बीते शनिवार को राज्य कांग्रेस की बैठक को समय से पहले ही छोड़ दिया। माना जा रहा था कि सिंधिया नाराज़ होकर बैठक से निकले थे। अब राज्यसभा से सांसद चुने जाने में अड़ंगा अड़ने से सिंधिया की नाराजगी और बढ़ सकती है।

कमलनाथ और दिग्विजय सिंह कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में गिने जाते हैं जो हमेशा से ही गांधी परिवार की चाटुकारिता करते आये हैं। ऐसे में दोनों ही गांधी परिवार के करीबी माने जाते हैं, वहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया कई बार खुलकर पार्टी के हाइकमान के खिलाफ बोल चुके हैं।

यही कारण है कि अब भाजपा को भी राज्य में अपने ऑपरेशन लॉटस के कामयाब होने की पूरी उम्मीद है। इस पूरे प्रकरण में अमित शाह की एंट्री ने BJP के हौसलों को और ज़्यादा मजबूत कर दिया है। अब देखना यह होगा कि आने वाले दिनों में MP की सियासत किस ओर करवट लेती है।

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