एक साल पहले ईरान और इटली चीन के पास पहुंचे, चीन ने कोरोना और OBOR देकर दोनों को बर्बाद कर दिया

OBOR

चीन का महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट OBOR यानि “One Belt One Road” पहले ही कोरोना की चपेट में आ चुका है। कोरोना के डर से ना सिर्फ सभी देशों ने चीनी मजदूरों को वापस चीन भगाना शुरू कर दिया, बल्कि चीन की ओर से भी फंडिंग को रोक दिया गया था। OBOR तो अब पूरी तरह फेल हो चुका है, लेकिन इस प्रोजेक्ट में हिस्सा लेने वाले देश पूरी तरह बर्बाद हो चुके हैं। पहले तो चीन ने बड़ी ही चालाकी से सभी देशों को आर्थिक तौर पर लूटा, और रही सही कसर कोरोनावायरस ने पूरी कर दी, जिसके कारण अब कुछ देशों का हाल बेहाल हो चुका है और ईरान और इटली जैसे देश देशों के सबसे उपयुक्त उदाहरण हैं।

ईरान और इटली, इन दोनों देशों ने वर्ष 2019 में ही OBOR में शामिल होने का फैसला लिया था। जी7 का सदस्य देश होने के नाते जी7 ने इटली को OBOR में शामिल होने से पहले चेताया था कि इटली की संप्रभुता और सुरक्षा के लिए यह प्रोजेक्ट खतरनाक साबित हो सकता है, लेकिन फिर भी इटली ने चीन के साथ आगे बढ़ने का ही फैसला लिया। ऐसे ही पिछले वर्ष जिस तरह ईरान को पश्चिमी देशों के प्रतिबंध का सामना करना पड़ा और उसे पूरी तरह नकार दिया गया था, तो ईरान ने चीन के साथ नज़दीकियां बढ़ाने के लिए इस प्रोजेक्ट में हिस्सेदारी करने का रास्ता चुना। लेकिन OBOR का हिस्सा बनते ही कुछ ऐसा हुआ जिसके कारण आज इन दोनों देशो को बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है।

दरअसल, OBOR का हिस्सा बनते ही चीनी प्रोजेक्ट्स पर काम करने के लिए बड़ी संख्या में चीनी मजदूर चीन से ईरान और इटली जाने लगे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, ईरान के कॉम शहर से ईरान में कोरोना फैला। कॉम वही शहर है जहां चीन OBOR के तहत एक 2000 मील लंबे रेल रोड नेटवर्क का निर्माण कर रहा है। इस नेटवर्क के माध्यम से चीन तुर्की और फिर यूरोप तक पहुँच बनाना चाहता था।

इस वर्ष जनवरी में चीन में जैसे ही कोरोना फैला, वैसे ही चीनी मजदूरों के माध्यम से यह वायरस ईरान और इटली में भी फैल गया। इटली और ईरान, इन दोनों की अर्थव्यवस्थाएँ बहुत कमजोर रही हैं। इटली की बात करें तो पिछले 10 सालों में देश में तीन बार मंदी आ चुकी है और बेरोजगारी दर अभी वहाँ 10 प्रतिशत से भी ज़्यादा है। वर्ष 2018 के आंकड़ों के मुताबिक युवाओं में बेरोजगारी दर तो और भी ज़्यादा 30 प्रतिशत से भी ऊपर है। इटली  के कर्ज़ और देश की GDP का Ratio 135 प्रतिशत है। इससे समझा जा सकता है कि इटली की आर्थिक हालत बेहद खस्ता है।

वहीं ईरान की सच्चाई तो पूरी दुनिया को ही पता है। वर्ष 2015 में Iran न्यूक्लियर डील के बाद जब Iran पर अमेरिकी प्रतिबंधों का प्रभाव कम किया गया था, तो Iran की अर्थव्यवस्था में वर्ष 2016 में 10 प्रतिशत से ज़्यादा की दर से विकास हुआ था। हालांकि, वर्ष 2017 में ट्रम्प प्रशासन द्वारा इस डील को रद्द करने और दोबारा कड़े प्रतिबंध लगाने की वजह से Iran की अर्थव्यवस्था लगातार सिकुड़ती जा रही है। वर्ष 2019 में IMF ने अनुमान लगाया था कि Iran की अर्थव्यवस्था 6 प्रतिशत तक कम हो सकती है।

Iran एक तेल समृद्ध देश है जिसकी अर्थव्यवस्था को मूलतः क्रूड ऑयल के एक्सपोर्ट से ही सहारा मिलता है। लेकिन वर्ष 2017 में ट्रम्प प्रशासन ने CAATSA लाकर उन सभी देशों पर भी प्रतिबंध की धमकी दी, जो Iran के साथ अपने आर्थिक रिश्ते बरकरार रखना चाहते थे। इसका नतीजा यह हुआ कि दुनिया के अधिकतर देशों ने Iran से कच्चा तेल खरीदना बंद कर दिया और Iran के ऑयल एक्सपोर्ट में भारी कमी देखने को मिली।

ईरानी अर्थव्यवस्था आज इस कदर तक बर्बाद हो चुकी है कि Iran ने 6 दशकों में पहली बार IMF से 5 बिलियन डॉलर का आपातकाल लोन लेने की अर्जी दायर की है। अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद ईरान की अर्थव्यवस्था बेहद कमजोर हो गयी थी, और अब OBOR में हिस्सा लेने के कारण उसकी अर्थव्यवस्था गर्त में जा चुकी है। वहीं इटली का हाल यह है कि वहाँ पर कोरोना से होने वाली कुल मौतों ने चीन का आंकड़ा पार कर लिया है।

इरान में भी कोरोना ने भयंकर तांडव मचाया हुआ है। गुरुवार को ईरान के स्वास्थ्य और चिकित्सा शिक्षा मंत्री ने पुष्टि की कि बुधवार को 1,091 नए मामलों के साथ देश में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या 18,407 पर पहुंच गई है। स्वास्थ्य मंत्रालय के जनसंपर्क और सूचना केन्द्र के प्रमुख कियानुश जहांपुर ने ट्वीट किया, ‘मध्य-पूर्व के देशों में ईरान पर कोरोना का असर भयावह है। यहां हर घंटे 50 नागरिक इस घातक वायरस से संक्रमित हो रहे हैं। वहीं हर 10 मिनट में यह वायरस एक ईरानी को मौत के मुंह में धकेल रहा है।’

ज़ाहिर है पिछले वर्ष चीन के जिस प्रोजेक्ट पर ईरान और इटली ने अपनी बेहतरी के लिए हस्ताक्षर किए थे, उसी प्रोजेक्ट के कारण ईरान और इटली को अपने हजारों नागरिकों और अर्थव्यवस्था की बलि देनी पड़ रही है। चीन का OBOR प्रोजेक्ट इन देशों के लिए किसी श्राप से कम साबित नहीं हुआ है।

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