पिछले कुछ वर्षों में विश्व के कई देश अनेक महामारियों जैसे इबोला येल्लो फीवर, SARAS, MERS और हाल में कोरोना वायरस से जूझ रहे हैं, परंतु इनमें से किसी भी महामारी का व्यापक असर भारत पर नहीं हुआ है। वास्तव में देखा जाए तो विश्व की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाला देश होने के बावजूद भारत में इन महामारियों से प्रभावित होने की जनसंख्या अपेक्षाकृत काफी कम है।
वैज्ञानिकों और डॉक्टरों का मानना है कि भारत बाकी देशों के मुक़ाबले अपनी humid और गर्म मौसम के कारण कोरोना वायरस जैसे महामारियों से बचने के लिए अधिक सुरक्षित है क्योंकि ऐसी जलवायु परिस्थिति किसी भी वायरस को फैलने से रोकता है। हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष के के अग्रवाल का कहना है कि, “वायरस कम तापमान पसंद करते हैं, यही वजह है कि वे जापान और दक्षिण कोरिया जैसे ठंडे और कम नमी वाले क्षेत्रों में तेजी से फैलते हैं। वहीं Critical Care, RTIICS के प्रमुख सोरेन पांजा ने बताया कि “NCoV जिस भौगोलिक क्षेत्रों में फैला है उससे पता चलता है कि यह अब तक ठंडे जलवायु वाले देशों तक ही सीमित है’।
बता दें कि भारत विश्व की सबसे पुरानी, ऐतिहासिक और अविरल सभ्यताओं में से एक है। इस पृथ्वी पर हजारों वर्षों से जीवन मौजूद है। इन हजारों वर्षों में कई बार कभी प्रकृतिक तो कभी मानवकृत कारणों से पृथ्वी की सभ्यताओं का विनाश हुआ है। रोमन हो या पर्शियन या मेसोपोटामिया की सभ्यता हो सभी नष्ट हो चुकी हैं लेकिन भारत की सभ्यता सनातन है और निरंतर चलती आ रही है।
मानव सभ्यता के इतिहास में भारत अधिकतर समय विश्व के एक चौथाई जनसंख्या का केंद्र रहा है और इतने ही प्रतिशत में विश्व की अर्थव्यवस्था में योगदान दिया है। अगर ऐसा हो पाया है तो भारत की भौगोलिक स्थिति के कारण ही हो पाया है।
भारतीय उपमहाद्वीप की भगौलिक स्थिति ही उसे पृथ्वी की सबसे अधिक रहने योग्य स्थान बनाती है।
भारतीय उपमहाद्वीप के भागौलीक स्थिति के कारण ही यह कई भयंकर प्रकृतिक आपदाओं से बचा हुआ है। भारतीय उपमहाद्वीप एक प्रायद्वीप है, जो तीन ओर से समुद्र से घिरा है और उत्तर में महान हिमालय से। इसलिए भारतीय क्षेत्र को एक उप महाद्वीप का दर्जा प्राप्त है। पश्चिमी सीमा ही एकमात्र सीमा है जिसके माध्यम से मानव प्रवेश संभव है, और इतिहास देखें तो पश्चिमी सीमा ही एक क्षेत्र है जिससे मुगलों और हूणों जैसे आक्रमणकारियों ने भारत में प्रवेश किया। भारत की जलवायु में काफ़ी क्षेत्रीय विविधता पायी जाती है और जलवायवीय तत्वों के वितरण पर भारत की कर्क रेखा पर अवस्थिति का स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है। भारतीय जलवायु में वर्ष में चार ऋतुएँ होती हैं जो शायद विश्व के किसी भी कोने में नहीं होते हैं। पृथ्वी के अन्य हिस्सों में या तो अत्यधिक सर्दी होती है या फिर अत्यधिक गर्मी। तापमान के वितरण मे भी पर्याप्त विविधता देखने को मिलती है। समुद्र तटीय भागों के तापमान में वर्ष भर समानता रहती है लेकिन उत्तरी मैदानों और थार के मरुस्थल में तापमान की वार्षिक रेंज काफ़ी ज्यादा होती है। वर्षा पश्चिमी घाट के पश्चिमी तट पर और पूर्वोत्तर की पहाड़ियों में सर्वाधिक होती है।
अगर भारत की स्थिति देखें तो उत्तर भारत में गंगा के मैदानी इलाके विश्व के सबसे अधिक जनसंख्या वाले क्षेत्रों में से एक हैं। इसी क्षेत्र में वाराणसी भी है दुनिया के सबसे प्राचीनतम शहरों में से एक है। भारत की सिंधु नदी का मैदानी इलाका भी विश्व के सबसे उपजाऊ क्षेत्रों में आता है। इन दोनों ही मैदानी इलाकों के उपजाऊ होने के कारण हिमालय से निकलने वाली नदियों का जाल है जो हिमालय से मिलने वाले पानी से साल भर भरा रहता है।
तिब्बत इन नदियों का उद्गम है और दुनिया की छत कहा जाता है क्योंकि यह बहुत ऊँचे पठार पर स्थित है। तिब्बत पृथ्वी की दो सबसे पुरानी सभ्यता यानि भारतीय और चीनी सभ्यता के बीच आने वाला क्षेत्र है जहां से लगभग 10 प्रमुख नदियां निकलती हैं। उदाहरण के लिए सिंधु, सतलज, ब्रह्मपुत्र, इरावदी, साल्वीन और मेकांग हैं।
भारत को 6 हजार वर्ष पूर्व ही भगौलीक स्थिति के महत्व के बारे में पता था और यह कई ग्रन्थों में भी लिखा गया है। विष्णु पुराण में स्पष्ट लिखा है:
उत्तरं यत समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणं।
वर्ष तद भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः।।
इसका अर्थ यह है कि “समुद्र के उत्तर से लेकर हिमालय के दक्षिण में जो देश है वही भारत है और यहाँ के लोग भारतीय हैं।”
वहीं इसी तरह अगर शक्तिपीठों का भौगोलिक स्थिति देखे तो वे बलूचिस्तान से लेकर त्रिपुरा, कश्मीर से कन्याकुमारी / जाफना तक फैले हुए हैं। यह एक बनावटी स्थिति नहीं है। जब आदि शंकराचार्य ने चार धामों की स्थापना की थी तब ये चारों, देश के चारों कोनों में रणनीतिक रूप से स्थापित थे।
भारत की सभ्यता अगर आज भी अविरल चल रही है तो बस इस देश की भागौलीक स्थिति के कारण।