‘मैं दुकानदार नहीं हूँ’, दोनों ही एजेंडा चलाते हैं पर पलड़ा रविश कुमार का भारी है

कौन ज़्यादा वामपंथी?

PC: Samachar4media

रवीश कुमार एक बार फिर सुर्खियों में है। मोदी सरकार को कोसे बिना जिनकी सुबह की चाय नहीं पचती, उस पत्रकार ने एक बार फिर किसी व्यक्ति को निशाने पर लिया है। परंतु इस बार निशाने पर नरेंद्र मोदी है, और न ही दक्षिणपंथ से संबन्धित कोई राजनेता या कलाकार, अपितु उन्हीं की चैनल की शान रहे पत्रकार और वर्तमान में इंडिया टुडे के पत्रकार राजदीप सरदेसाई हैं।

हाल ही में न्यूज़ 24 द्वारा आयोजित मंथन नामक कार्यक्रम में रवीश कुमार मंच पर उपस्थित थे। उनसे न्यूज 24 के एग्जीक्यूटिव एडिटर मानक गुप्ता ने प्रश्न किया, ‘आप बहुत ज्यादा नेगेटिव नहीं है, जैसा कि राजदीप ने कहा था’, अभी मानक सवाल पूरा ही करते कि जिसके जवाब में ही रवीश ने राजदीप पर टिप्पणी की, “मानक मैं दुकानदार नहीं हूँ। आप जिनका नाम लेकर आए हैं, मैं बैलेंसवादी नहीं हूँ… ये सच्चाई है कि मीडिया लोकतंत्र की हत्या का आयोजन कर रहा है और यह सकारात्मकता या नकारात्मकता का मामला नहीं है….अगर आप मर्डर को मर्डर नहीं कहेंगे तो फिर आप क्या कहेंगे? ये सब पूरी तरह से गलत है, यहाँ कोई बैलेंस नहीं है”

 

अब रवीश कुमार को कौन नहीं जानता। जनाब ‘Forever Lonely’ मोड में अपना काम करते हैं। मैगसेसे छोड़िए, महोदय को नोबल पुरस्कार भी मिल जाये, तो भी वो मोदी का रोना रोएँगे। पर कुछ भी कहिए, इस रवीश भैयाजी ने पते की बात बोली है। राजनीति हो या पत्रकारिता, या तो आप वामपंथी हो सकते हो या फिर दक्षिणपंथी हो सकते हो। आप निष्पक्ष नहीं हो सकते, क्योंकि निष्पक्षता तो छलावा है, जिसे आप पूर्णतया इन दोनों क्षेत्रों में कभी लागू नहीं कर सकते।

रवीश कुमार और राजदीप सरदेसाई एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। दोनों एनडीटीवी चैनल की शान रहे हैं, दोनों पत्रकारिता के लिए कम, और फेक न्यूज़ के लिए ज़्यादा जाने जाते हैं। दोनों के लिए नरेंद्र मोदी किसी दुस्वप्न से कम नहीं है। परंतु जिस तरह से रवीश कुमार ने राजदीप को आड़े हाथों लिया है, वो काफी कुछ कह गया, विशेषकर तब, जब दोनों पत्रकार एक ही संगठन का वर्षों तक हिस्सा रहे हों।

फिलहाल, रवीश कुमार के सितारे गर्दिश में है। पूर्वोत्तर दिल्ली में हुए दंगों के उपरांत रवीश कुमार ने अपने प्राइम टाइम शो में दावा किया था कि दिल्ली के दंगों में पिस्तौल के साथ खड़ा व्यक्ति मोहम्मद शाहरुख नहीं, बल्कि अनुराग मिश्रा है। यानि इन दंगों में भी जनाब अपने एजेंडे को साधने में लगे हुए थे। इतना ही नहीं, रवीश कुमार तो यहाँ तक बोल उठे कि उन्हें पुलिस अधिकारियों की रिपोर्ट पर एक बार में यकीन नहीं होता है। परंतु रवीश यहीं पर नहीं रुके। जनाब ने तो ये तक कह दिया कि उन्हें पुलिस अधिकारियों की रिपोर्ट पर एक बार में यकीन नहीं होता है। उनके अनुसार जब तक उन्हें दोबारा रिपोर्ट नहीं दी जाती कि इस शख्स का नाम क्या है तब तक वे शंका ज़ाहिर करते रहेंगे और शाहरूख को अनुराग बताते रहेंगे।

परंतु ये तो कुछ भी नहीं है, रवीश कुमार तो कमाल के सहिष्णु पत्रकार है, इतना कि एनडीटीवी के एक शो में अखिलेश ने एक पत्रकार को मारने तक की बात कह दी थी इसके बावजूद भी रवीश कुमार ने अखिलेश के बयान पर आपत्ती नहीं जताई। दरअसल, एक पत्रकार ने पहले कभी अखिलेश को औरंगजेब कह दिया था जिस पर अखिलेश ने कहा,मेरी गलती है कि मैंने दिल्ली से लखनऊ बुलाकर पत्रकार को कहा कि मुझे औरंगजेब लिखने के लिए तुम्हें जितने पैसे मिले, उससे दोगुना मुझसे ले लेते।” अखिलेश बोले, मुझसे यही गलती हो गई। मुझे भी औरंगजेब की तरह तलवार निकालनी चाहिए और उस शख्स को उसी समय खत्म कर देना चाहिए था।”

सच कहें तो रवीश कुमार अपने लेवल के गजब के पत्रकार हैं। पत्रकारिता की बलि चढ़ जाए परंतु प्रोपगैंडा चलना चाहिए। ऐसे ही थोड़ी न इन्हें मैगसेसे का अवार्ड मिला है, चाहे इसके लिए अपने पूर्व सहयोगी और प्रशिक्षक की बेइज्जती ही क्यों न करनी पड़े।

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