दिल्ली उच्च न्यायालय से तबादला किए जाने के बाद सबसे अधिक चर्चित रहे न्यायाधीश एस मुरलीधर ने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ज्वाइन करने के अगले ही दिन अदालत के वकीलों से कहा है कि वह उन्हें ‘माई लॉर्ड’ और ‘योर लॉर्डशिप’ कह कर संबोधित न करें।
इस माह पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के जज के रूप में शपथ लेने वाले जस्टिस एस मुरलीधर ने सोमवार को एक नोट में कहा कि- बार के माननीय सदस्यों को जानकारी दी जाती है कि जस्टिस एस मुरलीधर ने ‘माई लॉर्ड’ या ‘योर लॉर्डशिप’ जैसे शब्दों का प्रयोग न करने का आग्रह किया है।
बता दें कि कुछ साल पहले हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने सदस्यों से जजों को सर या योर ऑनर कहकर संबोधित करने को कहा था। हालांकि इसके बावजूद कई वकील ‘योर लॉर्डशिप’ जैसे शब्दों का प्रयोग करते रहे।
ऐसे ही वर्ष 2014 में एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि न्यायाधीशों को सम्मानपूर्वक और सम्मानजनक तरीके से संबोधित किया जाना चाहिए, लेकिन उन्हें ‘माई लॉर्ड ’, ‘योर लॉर्डशिप’ या ‘योर ऑनर ’ कहना अनिवार्य नहीं है। खास बात यह है कि जिस खंडपीठ ने इस बात को कहा था उसमें SA Bobde भी थे जो अभी मुख्य न्यायधीश हैं।
जनवरी 2014 में जस्टिस एचएल दत्तू और जस्टिस एसए बोबडे की पीठ ने कहा था कि जजों को इन शब्दों से संबोधित करना अनिवार्य नहीं है। जजों को केवल सम्मानित तरीके से संबोधित किया जाना चाहिए। पीठ एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें ये मांग की गई थी कि जजों को ऐसे शब्दों से संबोधित नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि यह देश की मर्यादा के खिलाफ है। हालांकि कोर्ट ने कहा कि वो वकीलों को ये निर्देश नहीं दे सकते हैं कि वे किस तरह से कोर्ट को संबोधित करें। इसी आधार पर याचिका खारिज कर दी गई थी। वहीं साल 2009 में मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस चंद्रू ने भी वकीलों को इस तरह के संबोधन से मना किया था।
वर्ष 2007 में भी सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश, जस्टिस रवींद्र भट्ट (तब दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश) ने भी वकीलों को न्यायाधीशों को ” Your Lordship ” या ” My Lord” के रूप में संबोधित करने से बचने के लिए कहा था।
हालांकि साल 2006 में बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने एक प्रस्ताव पारित कर कहा था कि ‘माई लॉर्ड’ और ‘योर लॉर्डशिप’ जैसे संबोधन का उपयोग नहीं होना चाहिए क्योंकि यह भारत के औपनिवेशिक अतीत के अवशेष हैं। लेकिन फिर भी आज ये शब्द लगातार प्रयोग किए जा रहे हैं।
“Your Lordship” या “My Lord” की शुरुआत ब्रिटेन में हुई थी जहां हाई कोर्ट और Court of Appeals के जजों को इस तरह से संबोधित किया जाता था। लॉर्ड ब्रिटेन में एक टाइटल था जिसे उच्च कुलीन और आभिजात्य वर्ग के लोगों को दिया जाता था।
अंग्रेजों ने हमारी कानूनी प्रणाली को औपचारिक रूप दिया था यही कारण है कि न्यायाधीशों को “Your Lordship” या “My Lord” के रूप में संबोधित किया गया। हालांकि, तथ्य यह है कि वर्ष 1950 में एक संवैधानिक लोकतंत्र बना लेकिन आज भी ऐसा लगता है भरत ब्रिटेन के भाषा की बेड़ियों में ही जकड़े हुए हैं।
यही कारण है कि भारतीय न्यायाधीश लगातार उन्हें “माई लॉर्ड” या “योर लॉर्डशिप” के रूप में संबोधित करने की प्रथा को बंद करने को कह रहे हैं जिसे तत्काल प्रभाव में लाया जाना चाहिए। अगर वकीलों या आम जनता द्वारा इसे बहिष्कृत नहीं किया जाता है तो भारत कभी भी सामंतवादी समाज से बाहर नहीं आ पाएगा जहां कुछ लोग ही सब कुछ होते थे।