कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में से एक ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 18 सालों बाद कांग्रेस छोड़ दिया है। सिंधिया के जाते ही अब कयास लगाए जा रहे हैं कि कांग्रेस से नाराज व उपेक्षित युवा नेता भाजपा का दामन थाम सकते हैं। इन नेताओं में सबसे ज्यादा चर्चा राजस्थान के डिप्टी सीएम सचिन पायलट की है।
मालूम हो कि पायलट और अशोक गहलोत के विचारों में हमेशा 36 का आंकड़ा रहता है। बात तो यहां तक पहुंच गई है कि राजस्थान कांग्रेस दो खेमे में बंटी हुई है। पहला गहलोत गुट है और दूसरा पायलट गुट। अब जिसके हाथ में सीएम की कुर्सी होती है वही राज्य में धौंक जमाता है। कुछ ऐसा ही हमें राजस्थान में देखने को मिल रहा है।
दरअसल, राजस्थान की गहलोत सरकार ने सत्ता में रहते हुए एक साल के अंदर करीब 25 करोड़ के विज्ञापन अखबारों व अन्य प्रकाशन संस्थाओं को दिए, लेकिन इन विज्ञापनों में गहलोत ने सिर्फ अपनी तस्वीर ही छपावाई। डिप्टी सीएम सचिन पायलट की एक भी तस्वीर इन विज्ञापनों में कहीं नहीं प्रकाशित की गई। राजस्थान की स्टेट इन्फोर्मेशन एंड पब्लिक रिलेशन डिपार्टमेंट ने इस बात की पुष्टि की है।
जनसत्ता की एक रिपोर्ट के अनुसार, सहीराम गोदारा नाम के एक वकील ने आरटीआई दायर कर राजस्थान की गहलोत सरकार से विज्ञापन के संबंध में जवाब मांगा था। आरटीआई की जवाब में राजस्थान सरकार ने दिसंबर 2018 से लेकर नवंबर 2019 के बीच के दौरान प्रकाशित विज्ञापनों का ब्यौरा दिया, जो 62 राष्ट्रीय व क्षेत्रीय अखबारों में प्रकाशित हुई थी। इन विज्ञापनों पर गहलोत ने कुल 25 करोड़ रुपए खर्च किए थे।
इंडियन एक्सप्रेस ने जब सीएम गहलोत से पूछा कि डिप्टी सीएम सचिन पायलट की तस्वीर विज्ञापन में क्यों नहीं थी? तो गहलोत ने जवाब दिया कि वे सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन कर रहे थे।
हालांकि सीएम गहलोत भले ही सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का हवाला दे लें लेकिन सच तो ये है कि वे युवा सचिन पायलट और उनके विधायकों से बहुत डरते हैं और इसी वजह से उन्होंने (गहलोत) सरकारी विज्ञापनों में पायलट को जगह नहीं दी।
इससे पहले भी पायलट और गहलोत के बीच तल्खी देखी गई थी। जब राजस्थान के जेके लोन अस्पताल में 100 से अधिक बच्चों की मौत हो गई थी तो पायलट ने सीएम गहलोत पर निशाना साधते हुए कहा था-
”बच्चों की मौत पर हमें जिम्मेदारी तय करनी होगी। पूर्व की सरकार के कार्यकाल में क्या हुआ इस पर चर्चा करने से बेहतर है कि हमें कोई हल ढूंढना चाहिए। वसुंधरा राजे की सरकार चली गई है, जनता ने हमें राजस्थान की कमान दी है तो जिम्मेदारी भी हमारी हुई।” बता दें कि गहलोत ने बच्चों की मौत पर बेहद गैर जिम्मेदाराना बयान दिया था जिस पर पायलट ने तंज कसा था।
वास्तव में सचिन पायल ने बीते 5 सालों तक राज्य में सीएम बनने के लिए खूब मेहनत किया। राजस्थान में कांग्रेस जीती भी लेकिन कुर्सी किसी और के हाथों चली गई, जो वास्तव में योग्य नहीं था। ऐसा नहीं था कि पायलट ने कुर्सी पाने के लिए जोर नहीं लगाया था। उन्होंने गहलोत के रास्ते में कई दिनों तक रोड़ा अटकाया लेकिन कांग्रेस की आलाकमान ने फिर से अपने ओल्ड गॉर्ड्स पर भरोसा किया और युवा पायलट को किनारे का रास्ता दिखाया।
आज भले ही पायलट डिप्टी सीएम के पद पर राज्य सरकार में कार्य कर रहे हैं लेकिन इसका मलाल उनके विचारों, बयानों और कामकाजों में साफ तौर पर देखा जा सकता है। खून की घूंट पीकर उपमुख्यमंत्री बनने वाले पायलट को राज्य में सीएम बनने की इच्छा तो होगी ही, इस बात का संकेत सरकार बनने के पहले से ही देखा रहा है। कई मौकों पर युवा पायलट और बुजुर्ग गहलोत में मतभेद देखा गया।
जब सिंधिया ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थामा तो पायलट ने गहलोत समेत अन्य कांग्रेसी नेताओं की तरह उन्हें गद्दार या दल्ला नहीं कहा। उन्होंने साफ तौर पर कांग्रेस को चेताया कि अगर सिंधिया की बात मानी गई होती तो वे कांग्रेस नहीं छोड़ते। इस बयान से साफ है कि सिंधिया के फैसले का पायलट ने कोई विरोध नहीं किया।
Rajasthan Deputy Chief Minister Sachin Pilot on #KotaChildDeaths: I think our response to this could have been more compassionate and sensitive. After being in power for 13 months I think it serves no purpose to blame the previous Govt's misdeeds. Accountability should be fixed. pic.twitter.com/kpD9uxMfUy
— ANI (@ANI) January 4, 2020
ऐसे में कांग्रेस के युवा नेता सचिन पायलट अपने 20 के आसपास विधायकों की फौज लेकर सीएम की कुर्सी के लिए दिल्ली में कूच कर सकते हैं। भाजपा राजस्थान के आला नेताओं ने भी सचिन पायलट के आने का सिग्नल दे दिया है। अगर ऐसा होता है तो यह कांग्रेस के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं होगा। वहीं भाजपा को सिंधिया के बाद एक और युवा रत्न मिलेगा, जिससे दोनों राज्यों में पार्टी की स्थिति मजबूत होगी।