दुनिया में यदि एक चीज़ हमेशा यथावत रहेगी, तो वो है वामपंथियों की मोदी सरकार के प्रति घृणा। मोदी सरकार यदि विपरीत दिशा में फूँक भी मार दे, तो वो भी उन्हें नागवार गुज़रता है। हाल ही में पीएम मोदी ने वुहान वायरस में आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति एवं राहत कार्य के लिए पीएम केयर फंड (PM Care Fund) का ऐलान किया, जिसमें लोग बड़ी मात्रा में दान कर रहे हैं। इतना ही नहीं, अक्षय कुमार, कार्तिक आर्यन जैसे फिल्म अभिनेता और कई अन्य हस्तियों ने भी पीएम केयर फंड में अपनी पूंजी का कुछ हिस्सा दान कर इस महामारी से लड़ने में अपनी प्रतिबद्धता का परिचय दिया है।
परंतु देश में कुछ अच्छा हो, और वामपंथी उसपर प्रतिक्रिया भी न दे, ऐसा हो सकता है क्या? पीएम केयर फंड पर भी इन सभी को आपत्ति होने लगी, इन सभी ने जमकर पीएम मोदी को की आलोचना की। शशि थरूर ने तंज़ कसते हुए ट्वीट किया, “प्राइम मिनिस्टर नेशनल रिलीफ फंड (PMNRF) का नाम बदलकर ही PM-CARES क्यों नहीं कर दिया जाता है। इसके लिए अलग चैरिटेबल फंड बनाने की क्या जरूरत है, जिसके नियम और खर्चे पूरी तरह से अपारदर्शी हैं। पीएमओ इंडिया को इस अनुचित कदम का जवाब देना ही पड़ेगा”।
This is important. Why not simply rename PMNRF as PM-CARES, given the PM's penchant for catchy acronyms, instead of creating a separate Public Charitable Trust whose rules & expenditure are totally opaque? @PMOIndia you owe the country an explanation for this highly unusual step. https://t.co/qRhX0T1PmB
— Shashi Tharoor (@ShashiTharoor) March 30, 2020
परंतु बात यहीं पर नहीं रुकी। कांग्रेस के प्रवक्ता सलमान सोज कहते हैं, “पीएम के नेशनल रिलीफ़ फंड के अंतर्गत अभी भी 3800 करोड़ खर्च नहीं हुए है। COVID 19 के परिप्रेक्ष्य में हुआ दान क्या वहाँ नहीं आ सकता? पीएम CARE का क्यों निर्माण हुआ? पीएम के साथ 3 मंत्री इस फंड के सदस्य कैसे?”
अब ऐसे मामले में भला हमारे स्वघोषित इतिहासकार रामचंद्र गुहा कैसे पीछे रह सकते थे? रामचंद्र गुहा भी कूद पड़े, और कहते हैं, “जब पीएमएनआरएफ़ पहले से ही मौजूद है, तो एक विशेष पीएम केयर फंड की क्या ज़रूरत? क्या एक भीषण त्रासदी को भी अपने फायदे लिए भुना रहे हैं पीएम मोदी?”
परंतु हैरान मत होइए, यह लिबरल ब्रिगेड यूं ही नहीं कहलाते। यह पीएम मोदी से इतनी नफरत करते हैं, कि आवश्यकता आने पर यह भारत का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपमान करने से भी पीछे नहीं हटेंगे, और ये बात भला विद्या कृष्णन से बेहतर कौन समझ सकता है? विद्या कृष्णन ने हाल ही में एटलांटिक मैगज़ीन के लिए एक विवादास्पद लेख लिखा, जिसमें न केवल उन्होंने भारत की वुहान वायरस से लड़ाई को सीएए और एनआरसी से जोड़ने का प्रयास किया, अपितु भारत के ध्वज को अपमानजनक स्थिति में एटलांटिक मैगज़ीन में पेश भी करवाया। इतना ही नहीं, जब प्रसार भारती ने निर्णय लिया कि lockdown के दौरान डीडी नेशनल पर रामायण और महाभारत सहित कई प्रसिद्ध सीरियल्स का प्रसारण किया जाएगा, तो उसपर भी लिबरलों को समस्या होने लगी।
यह निर्णय कुछ लोगों के दिल में शूल की भांति चुभने लगा। वामपंथी ब्रिगेड को यहां भी एक साजिश नजर आई और स्वभाव अनुसार वे इस निर्णय पर भी रूदाली करने लगे।
इस रूदाली का प्रारंभ हुआ लिबरल ब्रिगेड की पोस्टर गर्ल राणा अय्यूब के ट्वीट से। राणा अय्यूब ने ट्वीट कर कहा, “यहां एक बच्चा गरीबी और भुखमरी से मर गया, पर नहीं, हमें तो रामायण दिखानी है।” फिर क्या था, सागरिका घोष हो, या फिर मृणाल पाण्डे, सभी वामपंथियों की जलन स्पष्ट दिखाई दे रही थी। 22 मार्च को लगाए गए जनता कर्फ़्यू की अप्रत्याशित सफलता पर इनकी प्रतिक्रिया के बारे में जितना कम बोलें, उतना ही अच्छा।
कुछ लोग संसार में ऐसे होते हैं, कि उन्हे संसार के सभी सुख यदि मिल भी जायें, तो भी ये रोना रोएंगे कि यह तो बहुत कम है। ऐसे ही वामपंथियों के साथ हिसाब, जिन्हें अब इस बात से जलन हो रही है कि PM मोदी द्वारा स्थापित PM केयर फंड को जनता से इतना समर्थन क्यों मिल रहा है।