मध्य प्रदेश के स्पीकर ने Karnataka का नाटक दोहराया, Governor ने कमलनाथ सरकार को दिया 24 घंटे का अल्टीमेटम

मध्य प्रदेश चला कर्नाटक की राह

मध्य प्रदेश

जबसे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस का साथ छोड़ा है, मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकार के रातों की नींद और दिन का चैन उड़ सा गया है। मध्य प्रदेश के विधानसभा स्पीकर ने ने 16 मार्च को तय फ्लोर टेस्ट यानि विश्वास मत की परीक्षा को टालने का प्रयास किया परन्तु राज्यपाल ने 24 घंटे का अल्टीमेटम दिया है। परंतु  स्पीकर के इस कदम से कर्नाटक की यादें एक बार फिर ताज़ा हो गयी हैं। कर्नाटक में जब सरकार को बचाने के लिए तत्कालीन स्पीकर के आर रमेश कुमार (K R Ramesh kumar) ने फ्लोर टेस्ट को रोकने की जी तोड़ कोशिश की थी।

मध्य प्रदेश विधानसभा का बजट सत्र सोमवार से शुरू हुआ। ऐसा माना जा रहा था कि विश्वास मत का आयोजन किसी भी स्थिति में होगा। मध्य प्रदेश के राज्यपाल लालजी टंडन ने कहा, “सभी को संविधान के आदेशों का पालन करना चाहिए, ताकि मध्यप्रदेश की संप्रभुता कायम रहे”। इसके बावजूद मध्य प्रदेश विधानसभा के स्पीकर ने कोरोना का हवाला देते हुए 26 मार्च तक सदन को स्थगित कर दिया।

इस निर्णय पर आपत्ति जताते हुए भाजपा ने पहले राज्यपाल के समक्ष अपने विधायकों को पेश किया, और फिर सुप्रीम कोर्ट में इस निर्णय के विरुद्ध याचिका दर्ज की। भाजपा ने याचिका में मांग की है कि निर्णय के 12 घंटों के भीतर ही फ्लोर टेस्ट हो, जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने कल तक का समय दिया है।  वहीं मध्य प्रदेश के राज्यपाल लालजी टंडन ने मध्य प्रदेश स्पीकर की एक न सुनी, और मध्यप्रदेश सरकार को व्हिप जारी करते हुए निर्देश दिया की फ्लोर टेस्ट कल ही हो।  

इसमें कोई दो राय नहीं है कि कमलनाथ सरकार के दिन लद गए हैं। उनके 6 बागी विधायकों का त्यागपत्र पहले ही स्वीकृत किया गया है। यदि बाकी 16 बागी विधायकों का त्यागपत्र स्वीकार होता है, तो इसका अर्थ होगा कि 230 सदस्यीय की संख्या गिरने के साथ कांग्रेस के विधायकों की कुल संख्या 100 से भी नीचे गिर जाएगी। परंतु यह ऐसा पहली बार नहीं हुआ है।

पिछले वर्ष कर्नाटक में 15 से ज़्यादा कांग्रेसी विधायकों ने विद्रोह किया था, जिससे कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीएस की गठबंधन सरकार अल्पमत में आ गयी। इसके बाद भी वहां के स्पीकर फ्लोर टेस्ट कराने में आनाकानी कर रहे थे। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद वे फ्लोर टेस्ट कराने से कन्नी काट रहे थे। इसके बावजूद कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीएस की सरकार गिर गयी, जबकि कांग्रेस के बागी 15 विधायक भाजपा में न केवल शामिल हुए, अपितु उपचुनाव में भारी मतों से विजयी होते हुए सत्ता में वापिस भी आए।

सदन के अध्यक्ष यानि स्पीकर का मुख्य काम होता है सदन की कार्यवाही को सुचारु रूप से चलाना, उसे स्थगित करना नहीं। ऐसे में मध्य प्रदेश के स्पीकर द्वारा लिया गया कदम हर स्थिति में निंदनीय था। स्पीकर का पद एक संवैधानिक पद है, जिसे सदन यानि विधानसभा में सबसे ज़्यादा शक्ति दी जाती है। ऐसे संवैधानिक पद पर बैठने वाला व्यक्ति किसी एक गुट के प्रति पक्षपाती नहीं होना चाहिए, परंतु मध्य प्रदेश के स्पीकर पर ये बात लागू नहीं होती।

वहीं दूसरी ओर महाराष्ट्र में अभी भी विधानसभा का सत्र चल रहा है, जहां कोरोनावायरस का असर सबसे ज़्यादा है, और कांग्रेस यहाँ भी सत्ताधारी गठबंधन का हिस्सा है। इतना ही नहीं, यहाँ भी स्पीकर कांग्रेस के ही विधायक नाना पटोले हैं। फिर मध्य प्रदेश में ऐसी क्या खास बात है, जो यहाँ सत्र को वुहान वायरस के नाम पर स्थगित करने की आवश्यकता आन पड़ी?

मध्य प्रदेश सरकार के स्पीकर ने निश्चित रूप से इस निर्णय से एक गलत अवधारणा स्थापित की है। सरकार को बचाने के लिए कांग्रेस पार्टी किस हद तक गिर सकती है, ये इस बात से सिद्ध होता है, पर बकरे की अम्मा आखिर कब तक खैर मनाएगी?  वही हुआ भी और राज्यपाल ने निष्पक्ष होकर विश्वास मत के लिए 24 घंटे का समय दे दिया है।

 

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