वामपंथ एक सोच है, एक विचार है। इसमें एकता तो कमाल की है, और कई वर्षों तक इस विचारधारा ने भारत पर सफलतापूर्वक राज किया है। परंतु इस विचारधारा की भी एक कमजोरी है- गैर वामपंथी और हिंदुवादी व्यक्तित्वों से नफरत करना। जी हां, कभी कभी कुछ ऐसे व्यक्ति सामने आ जाते हैं, जिनके नाममात्र से वामपंथ का कोई भी सदस्य ऐसे तिलमिला उठता है, मानो किसी ने उसके छाती में छुरा घोंप दिया हो। ऐसे ही एक व्यक्ति हैं क्रांतिकारी और हिंदूवादी विचारक विनायक दामोदर सावरकर, जिनके नाम से ही वामपंथियों का कुछ ऐसा हाल हो जाता है
अभी हाल ही में जेएनयू के सुबनसर हॉस्टल के नजदीक एक सड़क का नाम बदलकर वीर सावरकर मार्ग रख दिया गया था, जिससे वामपंथियों को भयंकर मिर्ची लगी है। इस पर AISA की अध्यक्ष और जेएनयू छात्रसंघ की प्रेसिडेंट आइशी घोष कहती हैं-
‘’यह जेएनयू के विरासत के लिए शर्म की बात है कि ऐसे व्यक्ति के नाम पर यूनिवर्सिटी के मार्ग का नाम रखा गया है। उन्होंने कहा था कि सावरकर और उन जैसे लोगों के लिए जेएनयू में न कभी जगह था न कभी होगा”।
It's a shame to the legacy of JNU that this man's name has been put in this university.
Never did the university had space for Savarkar and his stooges and never will it have !#RejectHindutva@ndtv @BhimArmyChief @RanaAyyub @SFI_CEC @ttindia @IndiaToday pic.twitter.com/Q81PSkkpzq
— Aishe (ঐশী) (@aishe_ghosh) March 15, 2020
अब आइशी दीदी की बातों को उनके चेलों ने कुछ ज़्यादा ही सीरियसली ले लिया। दरअसल, सावरकर मार्ग के जवाब में लिबरलों ने मोहम्मद अली जिन्ना की तस्वीर लगा दी है। इतना ही नहीं जिन्ना मार्ग के बोर्ड पर वामपंथियों ने कालिख पोत दिया है। परंतु जैसे ही यह फोटो वायरल हुई, उसके तुरंत बाद वामपंथियों ने डैमेज कंट्रोल के लिए कालिख हटवाकर उस बोर्ड पर बाबा साहेब आम्बेडकर मार्ग छाप दिया।
Delhi: VD Savarkar Marg signage at Jawaharlal Nehru University has been vandalised, BR Ambedkar spray painted on it pic.twitter.com/602Qfc00qN
— ANI (@ANI) March 17, 2020
जेएनयू देश के उन चंद विश्वविद्यालयों में शामिल है जहां आज भी वामपंथियों का कब्जा है। पूरी दुनिया ने मार्क्स के बेतुके और असफल विचारों को नकार दिया है, पर जेएनयू एक ऐसी जगह है जहां इन वामपंथियों ने इसे जिंदा करने का ठेका लिया है।
परंतु जेएनयू के अधिकतर छात्र हों, या फिर कोई भी अन्य वामपंथी, ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं है, जो विनायक दामोदर सावरकर के नाम से न तिलमिलाता हो। आखिर ऐसा क्या है वीर सावरकर में, जिसके नाम मात्र से ही बड़े से बड़े वामपंथी के हाथ-पांव फूलने लगते हैं?
विनायक दामोदर सावरकर ब्रिटिश साम्राज्य से मोर्चा संभालने वाले क्रांतिकारियों में शामिल थे। 1897 के बाद महाराष्ट्र में अंग्रेजों के विरुद्ध उत्पन्न हुए विद्रोह से वे भी काफी प्रभावित हुए, और इंग्लैंड में बैरिस्टर बनने के बाद भी उन्होंने भारत को ब्रिटिश साम्राज्य से स्वतंत्र कराने के लिए अपना सर्वस्व अर्पण किया।
वीर सावरकर को अंग्रेजों ने एक झूठे केस के आधार पर आजीवन कारावास के लिए अंडमान के कुख्यात सेल्यूलर जेल भेज दिया। उनके साथ दस वर्षों तक काफी यातनाएँ हुई, और अंत में एक एमनेस्टी ऑर्डर के अंतर्गत उन्हें और उनके बड़े भ्राता गणेश बाबाराव सावरकर को भारत भूमि में रत्नागिरी के जेल में स्थानांतरित किया गया।
परंतु इस एमनेस्टी ऑर्डर को नेहरू और गांधी समर्थकों ने हमेशा दया याचिका के नाम से संबोधित कर वीर सावरकर के विरुद्ध अफवाहों का पहाड़ खड़ा कर दिया। चूंकि वीर सावरकर कई क्रांतिकारियों की भांति वामपंथी नहीं हुए, इसलिए उन्हें आजीवन गद्दार, चापलूस जैसे कई उपाधियों से अपमानित किया गया।
परंतु आज वीर सावरकर को भारत में उस दृष्टि से नहीं देखा जाता, जैसे वामपंथी चाहते थे। आज वीर सावरकर कई लोगों के लिए एक ऐसे व्यक्ति हैं जिनके साथ अन्याय हुआ था, और कुछ लोगों के लिए वीर सावरकर किसी आदर्श से कम नहीं हैं। जैसे जैसे भारत की स्वतन्त्रता में उनकी भूमिका उभर रही है, वीर सावरकर भारत में एक आदर्श का रूप लेते जा रहे हैं, और यही बात वामपंथियों के हृदय में शूल की भांति चुभ रही है।