2012 में निर्भया के साथ हुए अन्याय पर कई वर्षों बाद आखिरकार न्याय मिल गया है। निर्भया के दुष्कर्म और उसकी जघन्यतम हत्या के चारों दोषियों को शुक्रवार सुबह फांसी पर लटका दिया गया है। एक तरह से वर्षों तक लंबित न्याय की लड़ाई अंजाम तक पहुंचाई गई, तो वहीं देश जो कुछ ऐसे लोगों का वास्तविक स्वरूप भी दिखा, हो दोषियों को बचाने के नाम पर नैतिकता की सभी सीमाएं लांघ रहे थे।
चाहे वह एमएल शर्मा, या अभी दोषियों का बचाव कर रहे अधिवक्ता एपी सिंह, दोनों ने देश के अनेक लोगों, विशेषकर पीड़िता की मां आशा देवी के भावनाओं के साथ खिलवाड़ करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। आशा देवी को एक समय एपी सिंह ने ये भी चुनौती दी, कि दोषियों को अनंत काल तक फांसी नहीं होगी।
हमारे देश के कानून व्यवस्था की त्रुटियों का फायदा उठाकर इन दोनों अधिवक्ताओं ने फांसी के दंड को कई सालों तक टाले रखा। दया याचिका के नाम पर दोषियों के अधिवक्ताओं ने जिस तरह से न्यायपालिका और देश के कानून व्यवस्था का मज़ाक उड़ाया, उससे स्पष्ट पता चलता है कि कैसे इन लोगों के लिए न्याय, नैतिकता जैसी चीजें कोई मायने नहीं रखती।
ये जानते हुए भी कि निर्भया के दोषियों को फांसी पर लटकने से कोई नहीं रोक सकता, एपी सिंह जैसे लोगों ने फांसी रोकने में कोई कसर नहीं छोड़ी। हद तो तब हो गई जब इन्होंने निर्भया के चरित्र को लेकर उसकी मां से ही प्रश्न करना शुरू कर दिया।
पर फिर ये तो एपी सिंह ठहरे। यह प्रारंभ से ही इस विषय पर ऐसे आपत्तिजनक बयानों के लिए सुर्खियों में रहे हैं। जनाब ने तो यहां तक कहा था कि यदि यह कांड उसके बेटी के साथ हुआ होता, तो वह उसे जिंदा जला देता।
वहीं एमएल शर्मा को आप कम मत समझिएगा। एपी सिंह डाल डाल तो एमएल शर्मा पात पात। महोदय कहते हैं- “हमारे समाज में लड़कियां किसी अनजान व्यक्ति के साथ 7:30 से 8:30 बजे रात के बाद बाहर ही नहीं निकलती। एक महिला फूल के समान होती है, जिसे हर समय प्रोटेक्शन चाहिए”।
याकूब मेमन वाला घटनाक्रम दोहराते हुए दोषियों के वकील ने देर रात को सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे खटखटाए, ताकि फांसी पर रोक लगे। यह न्याय का माखौल उड़ाना नहीं तो और क्या है?
आधी रात तक निर्भया की मां को न्याय के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ी है। इस व्यवहार से बचाव पक्ष के अधिवक्ता ने ना सिर्फ निर्भया के परिवार के ज़ख्मों पर नमक रगड़ा है, अपितु पूरे समाज को अपने व्यवहार से शर्मसार किया है।
परन्तु ऐसा अनंत काल तक नहीं चल सकता। ऐसे अधिवक्ताओं को न्याय तंत्र का मज़ाक उड़ाने के लिए अवसर नहीं प्रदान किया जा सकता है। एडिशनल सेशंस जज धर्मेद्र राणा ने भी एमएल शर्मा के व्यवहार पर फटकार लगाते हुए कहा कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया को ऐसे लोगों को न्यायपालिका का मज़ाक उड़ाने के अवसर नहीं मिलने चाहिए।
देश के न्यायालयों पर पहले से ही बहुत बोझ है, और ऐसे में दुष्कर्मियों और आतंकवादियों को अर्धरात्रि हियरिंग का कोई अधिकार नहीं है। अब जब निर्भया के दोषी मर चुके है, तो अब न्यायपालिका को एमएल शर्मा और एपी सिंह जैसे अवसरवादियों के विरुद्ध कार्रवाई करने में जरा भी देरी नहीं करनी चाहिए।