कोरोना वायरस के रोकथाम को लेकर अक्सर दुनियाभर की मीडिया में भारत सरकार के प्रयासों का मज़ाक उड़ाया जा रहा है और यह कहा जा रहा है कि भारत अपने यहां कोरोना के मामलों को underreport कर रहा है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार भारत में कोरोना के कुल मामले 1 हज़ार की संख्या को पार करने वाले हैं, लेकिन कई लोग बार-बार यह बात दोहरा रहे हैं कि भारत में इस वायरस का फैलाव तीसरे चरण में पहुंच चुका होगा और अब तक इस वायरस से लाखों लोग संक्रमित हो चुके होंगे।
अपनी इस बेतुकी बात को सही ठहराने के लिए ऐसे लोग तर्क देते हैं कि भारत सरकार दुनियाभर के मुक़ाबले बेहद कम लोगों के टेस्ट कर रही है। उदाहरण के लिए स्क्रॉल ने अपने एक लेख में एक ग्राफ से समझाया कि कैसे भारत में प्रति 10 लाख लोगों पर दुनिया के बाकी देशों के मुक़ाबले बेहद कम लोगों को ही कोरोना के लिए टेस्ट किया जा रहा है।
ग्राफ को देखकर समझा जा सकता है कि सिंगापुर में जहां प्रति 10 लाख लोगों पर 6,800 लोगों को टेस्ट किया जा रहा है, तो वहीं भारत में यह आंकड़ा सिर्फ 18 है। इसी प्रकार दक्षिण कोरिया, इटली और UK जैसे देश भी भारत से कई गुणा की दर पर अपने लोगों की टेस्टिंग कर रहे हैं।
स्क्रॉल, BBC और द प्रिंट जैसी वेबसाइट्स ने भी इन्हीं आंकड़ों को सामने रख यह दावा किया कि भारत में इतने कम टेस्ट्स से कोरोना को काबू में नहीं किया जा सकता। लेकिन क्या सिर्फ ये आंकड़े इस बात को सिद्ध करने के लिए काफी हैं कि भारत में टेस्टिंग कम करने की वजह से कोरोना बेकाबू हो जाएगा?
एक सच यह भी तो है कि जो देश अपने यहां ज़्यादा टेस्ट कर रहे हैं, उदाहरण के लिए इटली, UK और दक्षिण कोरिया, वहां कोरोना से ग्रसित लोगों की संख्या भी ज़्यादा निकल कर आ रही है। वहीं दूसरी ओर भारत में कम टेस्ट तो किए जा रहे हैं, लेकिन जिनके टेस्ट किए जा रहे हैं, उनमें से भी बहुत कम लोग ही वायरस से संक्रमित पाये जा रहे हैं। भारत में यह दर सिर्फ 2 प्रतिशत है, जो कि दुनिया में सबसे कम है। इसका कारण है कि भारत में अभी इस वायरस का फैलाव तीसरे चरण में नहीं पहुंचा है, जैसे कि कुछ लोग दावा कर रहे हैं।
We’re preparing to make India’s testing protocols more aggressive. To test is to know! Specially on what to do & where to focus after #Lockdown21
Also imp to note that early targeting/airlifting/isolation & surveillance seems to have worked – 2%positive cases per 100 tests. pic.twitter.com/L1ui10eESf— Prof. Shamika Ravi (@ShamikaRavi) March 28, 2020
अर्थशास्त्री शमिका रवि द्वारा जुटाये गए इन आंकड़ों को देखा जाए तो साफ समझ में आ जाएगा कि भारत कम टेस्ट करके भी ज़्यादा सुरक्षित क्यों है। भारत और जापान जैसे देश कम टेस्ट तो कर रहे हैं, लेकिन उनके यहां इस बात की संभावना बेहद कम है कि टेस्ट किए जा रहे व्यक्ति का रिज़ल्ट पॉज़िटिव आएगा। भारत में अगर 100 लोगों का टेस्ट किया जाता है, तो सिर्फ 2 लोग ही कोरोना पॉज़िटिव मिल रहे हैं, जबकि इटली में यह संख्या 22 है और ऑस्ट्रेलिया में 18 है। अमेरिका में यह दर 15 की है। यानि इन देशों को टेस्ट करने की ज़रूरत ज़्यादा है, भारत को नहीं।
इसके साथ ही भारत में कोरोना के मामलों के बढ़ने की trajectory भी दुनिया के अन्य देशों से नीचे है, क्योंकि भारत में कोरोना के मामले एकदम से नहीं, बल्कि धीरे-धीरे आगे बढ़ रही है, जो फिर इस बात को प्रमाणित करता है कि भारत में इस वायरस का कम्युनिटी ट्रांसमिशन शुरू नहीं हुआ है।
इस ग्राफ को देखकर समझ में आएगा कि भारत में अभी कोरोना के मामलों को दोगुना होने में 5 दिनों का समय लगता है जबकि अमेरिका में लगभग हर दूसरे दिन मामलों की संख्या दोगुनी हो जाती है। सही मायनों में अमेरिका को सबसे ज़्यादा टेस्ट्स करने की ज़रूरत है, भारत को नहीं।
कोरोना के खिलाफ लड़ाई लड़ने में राजनीतिक एजेंडे को बढ़ावा देने का वक्त नहीं है, बल्कि एकजुटता को बढ़ावा देने का वक्त है। भारत सरकार अब तक कोरोना के खिलाफ लड़ाई में मजबूत साबित हुई है और 21 दिनों के लॉकडाउन से इस वायरस के फैलाव को रोकने में बड़ी सहायता मिलने वाली है। अभी हम सब को मिलकर केंद्र और राज्य सरकारों का constructive criticism करने की ज़रूरत है, ना कि सिर्फ एजेंडे के लिए। सभी आंकड़ों को सामने रखकर ही हमें सरकार के कदमों की आलोचना या उनकी सराहना करनी चाहिए।