बीबीसी को इस बार फिर भारत की ओर से करारा झटका लगा है। दिल्ली हिंसा की एकतरफा रिपोर्टिंग से नाराज प्रसार भारती के सीईओ शशि शेखर वेम्पती ने बीबीसी के एक कार्यक्रम में जाने से इंकार कर दिया है। उन्होने पूर्वोत्तर दिल्ली पर बीबीसी के पक्षपाती रिपोर्टिंग का हवाला दिया है, जिसमें पूरे प्रकरण का दोष केवल हिन्दुओं पर डाला गया है।
प्रसार भारती के सीईओ शशि शेखर वेम्पती को हाल ही में बीबीसी द्वारा आयोजित ‘इंडियन स्पोर्ट्सवूमन ऑफ द इयर’ समारोह में हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित किया गया था। परंतु शशि शेखर ने इस प्रस्ताव को सिरे से ठुकरा दिया है।
बीबीसी के डाइरेक्टर जनरल टोनी हॉल को लिखे एक पत्र में उन्होंने बताया, “आपके एक पत्रकार योगिता लिमये ने 3 मार्च 2020 को एक रिपोर्ट लिखी थी, जिसमें दिल्ली के दंगों की पक्षपाती कवरेज हुई थी। यहां आप ‘हिंदुओं द्वारा किए गए हमले’ की बात कर रहे हैं, परंतु दिल्ली पुलिस पर हुए हमलों का उल्लेख तक नहीं कर रहे हैं। आपके लेखक ने अंकित शर्मा की हत्या के बारे में भी कोई उल्लेख नहीं किया”। बता दें कि पूर्वोत्तर दिल्ली में भड़के दंगों में दिल्ली पुलिस के हेड कॉन्स्टेबल रतन लाल और आईबी के सुरक्षा सहायक अंकित शर्मा को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था।
इसी बारे में आगे प्रसार भारती के सीईओ ने लिखा, “ये काफी निराशाजनक है कि बीबीसी ने दिल्ली की हिंसा का ऐसा वन साइडेड वर्जन पेश किया है, जो केवल सांप्रदायिकता को भड़काता है, और कुछ नहीं करता। इसके कारण वर्दी में तैनात हमारे बहादुर जवानों की जान भी खतरे में थी”। इसके अलावा शशि शेखर ने बीबीसी को अन्य देशों की संप्रभुता को सम्मान देने की सलाह भी दी।
अब ये पहली बार नहीं है, जब बीबीसी के पक्षपाती कवरेज के कारण उसे भारतीयों की आलोचना का शिकार बनना पड़ा हो। पूर्वोत्तर दिल्ली के दंगों को जिस तरह से बीबीसी ने कवर किया, उसमें पक्षपात की दुर्गंध साफ आती है। विश्वास नहीं होता तो इसे देख लीजिये।
आजादी के बाद से ही BBC ने मानों भारत को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लज्जित करने की शपथ ले ली हो। कई प्रकार से भारत विरोधी प्रोपगैंडा फैलाने में बीबीसी, विशेषकर उसके क्षेत्रीय पोर्टल्स और रेडियो का बहुत बड़ा हाथ रहा है। जबसे मोदी सरकार ने सत्ता संभाली है, बीबीसी का भारत विरोधी पक्ष कुछ ज़्यादा ही मुखर रहा है। बीबीसी पत्रकारिता के प्रति कितनी प्रतिबद्ध है, इसका अंदाज़ा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि यह लोग स्वरा भास्कर और ध्रुव राठी जैसे फेक न्यूज़ के दलालों से फेक न्यूज़ से निपटने के लिए सहारा मांगते है।
जब पीएम मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटवाने का निर्णय पारित कराया, तब से BBC हाथ धोकर भारत के पीछे पड़ चुका है। कश्मीर के मुद्दे पर BBC ने जितनी फेक न्यूज़ फैलाई, उस पर तो आराम से एक महाकाव्य रचा जा सकता है। कश्मीर के मुद्दे पर BBC ने प्रोपोगेंडा जारी रखने के लिए अपने प्रसारण का समय बढ़ा दिया था।
बीबीसी ने एक वीडियो को अपने ट्विटर हैंडल पर पोस्ट कर यह दावा किया था कि कश्मीर में विरोध प्रदर्शन कर रहे लोगों पर पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे। साथ ही वीडियो में यह भी दावा किया गया था कि भारत सरकार ऐसे किसी भी प्रदर्शन के ना होने का दावा कर रही है जबकि BBC के रिपोर्टर्स ने ऐसे प्रदर्शनों को होते देखा है। यही नहीं भारत को बदनाम करने के लिए एक लंबा चौड़ा लेख लिखा था जिसमें उसने मर्यादा की सारी सीमाएं लांघते हुए भगवान राम के सहारे भारत को एक मुस्लिम विरोधी राष्ट्र घोषित करने की कोशिश की थी। अब तो जब BBC और प्रोपगैंडा शब्द एक साथ बोले जाते हैं, तो मन में केवल एक प्रश्न उठता है, “दोनों अलग अलग होते हैं क्या?”