कुछ लोग इस संसार में ऐसे हैं, जो महामारी के समय में भी प्रोपेगेंडा फैलाने से बाज नहीं आते। ऐसी ही एक पत्रकार हैं आरफा खानुम शेरवानी, जो द वायर जैसे भारत विरोधी, वामपंथी पोर्टल के लिए पत्रकारिता करती फिरती हैं। देश वुहान वायरस के संकट से जूझ रहा है, सरकार चाहती है कि देशवासियों को कम से कम दुष्परिणाम झेलने पड़े, परंतु कुछ जर्नलिस्ट का एक ही नारा, एक ही मंत्र है – प्राण जाये पर एजेंडा न जाये।
आरफा खानुम शेरवानी ने हाल ही में द वायर के लिए एक वीडियो की थी, जिसमें वे शाहीन बाग के अराजकता पर अपने विचार प्रकट कर रही हैं। 18 मिनट 56 सेकंड लंबी इस वीडियो में आरफा खानुम शेरवानी शाहीन बाग की अराजकता को एक संवैधानिक और लोकतान्त्रिक प्रदर्शन की आड़ में बचाने का भरसक प्रयास किया। उन्होंने यहां तक दावा किया कि कोरोना तो बस बहाना था, शाहीन बाग की बहादुर औरतों को आलोकतांत्रिक तरीके से जो हटाना था।
आरफा ने शाहीन बाग की एक प्रदर्शनकारी महिला का इंटरव्यू लेते हुए पूछा कि बताया जा रहा है कि महिलाओं के साथ छिना-झपटी हुई, जोर जबरदस्ती हुई, पुलिस ने लाठी भी चार्ज की थी. इस सवाल का जवाब देते हुए महिला प्रदर्शनकारी कहती है कि नहीं ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था. पुलिस ने लाठी नहीं चार्ज की थी. अब आप समझ सकते हैं कि आरफा उस महिला प्रदर्शनकारी से क्या कहवाना चाहती थीं.
अपने अप्रासंगिक विचारों को उचित सिद्ध करने हेतु आरफा खानुम शेरवानी ने अनेकों उदाहरण दिये, जिससे यह सिद्ध हो सके कि शाहीन बाग में तो संत आत्मा विराजते थे, जिनका हिंसा भड़काने से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं। इसी वीडियो में मोहतरमा ने यहां तक दावा किया कि जनता कर्फ़्यू के दौरान भी एक ‘law abiding citizen’ की तरह वहां की महिलाओं ने अपना प्रदर्शन किया, जिसे कोरोना की आड़ में दिल्ली पुलिस ने बड़ी बेरहमी से, और ज़बरदस्ती हटा दिया।
अब कोई इन मोहतरमा को बताएगा कि यह वुहान वायरस है, कोई मज़ाक नहीं। जो महामारी छूने से तेज़ी से फैलती जाये, उसमें किसी भी क्षेत्र में एक से ज़्यादा व्यक्ति का जमा होना खतरे से खाली नहीं, और शाहीन बाग के अराजकतावादी कोई VVIP नहीं हैं, जिनके लिए अलग से प्रशासन व्यवस्था करे। परंतु नहीं, दिल्ली पुलिस को यहां भी आरफा द्वारा नीचा दिखाना हैं जी। एजेंडा ऊंचा रहे हमारा का इससे प्रत्यक्ष प्रमाण और कहीं मिल सकता है क्या भला?
पर हैरान मत होइए, ये वही आरफा खानुम शेरवानी हैं, जिन्होंने सीएए के विरोध के नाम पर यह अफवाहें फैलाई थी कि दिल्ली पुलिस कार्रवाई के नाम पर जामिया मिलिया इस्लामिया की लड़कियों के साथ छेड़खानी कर रहे हैं। इस पर भी मोहतरमा ये कहने की हिमाकत रखती हैं कि उन्होंने ऐसा शिक्षकों और विद्यार्थियों से सुना है, और उन्होंने अपने दावे को स्पष्ट करने के लिए किसी गवाह को सामने भी नहीं लाया।
आरफा खानुम शेरवानी इस खेल में अकेली भी नहीं है। अभी कुछ ही दिन पहले कारवां मैगज़ीन की पत्रकार विद्या कृष्णन ने द एटलांटिक के लिए एक बेहद आपत्तीजनक लेख लिखते हुए न केवल राष्ट्र ध्वज को अपमानित किया, अपितु वुहान वायरस पर सरकार के लॉकडाउन को सीएए और एनआरसी से भी जोड़ दिया। अपने लेख में विद्या कृष्णन ने ये जताने का प्रयास किया है कि कैसे केंद्र सरकार द्वारा पारित नागरिकता संशोधन कानून वुहान वायरस से लडने में बाधा के रूप में सामने आ रही है। आपने ठीक पढ़ा, विद्या कृष्णन वुहान वायरस जैसी महामारी को CAA से जोड़ने का प्रयास कर रही थी। वुहान वायरस तो बस बहाना था, एजेंडा जो चलाना था –
Everything that's wrong with #India's #COVID19 response flows from Jan/Feb.
Instead of stockpiling, like all nations, Modi govt was tearing apart the social fabric with a pogrom & police brutality that set the tone for it
I write for @TheAtlantichttps://t.co/zeNPDJEr2O
— Vidya (@VidyaKrishnan) March 27, 2020
यही नहीं, विद्या कृष्णन ने यह भी बताया कि कैसे पीएम मोदी द्वारा घोषित लॉकडाउन अपने आप में गरीबों पर एक करारा प्रहार है, और अमीर वर्ग और मिडिल क्लास को इससे कोई हानि नहीं होगी। इसी को कहते हैं, नाच ना जाने, आंगन टेढ़ा।
आरफा खानुम शेरवानी ने इस वीडियो से स्पष्ट कर दिया कि उनके लिए केवल और केवल उनका निजी एजेंडा मायने रखता है, जनता की सुरक्षा उनके प्राथमिकता में कोई स्थान नहीं रखती। वुहान वायरस से जहां एक ओर पूरा भारत मोर्चा संभाले हुए हैं, वहीं आरफा खानुम शेरवानी जैसे लोग पूरे मेहनत की मटियामेट करने में एड़ी चोटी का ज़ोर लगा रही हैं।