कल यानि सोमवार को मुख्यमंत्री की शपथ लेने वाले शिवराज सिंह चौहान ने मंगलवार को विश्वास मत हासिल कर लिया। सुबह 11 बजे विधानसभा की कार्यवाही शुरू हुई। चूंकि कोरोना की वजह से कांग्रेस का एक भी विधायक सदन में नहीं पहुंचा, इसलिए शिवराज ने सर्वसम्मति से विश्वास मत जीत लिया। सभी विधायकों ने ‘हां’ कहकर विश्वास मत प्रस्ताव पारित कर दिया। मामा जी के नाम से मशहूर शिवराज सिंह चौहान को चालाक राजनीतिज्ञ नहीं माना जाता है । इस बार मध्य प्रदेश की राजनीति में एक साल, 3 महीने और 6 दिन के इंतज़ार के बाद कमलनाथ को झटका देते हुए जिस तरह से उन्होंने फिर से BJP को सत्ता में वापसी कराई है उससे यह धारणा मिट्टी के घड़े के समान टूट गयी।
शिवराज सिंह चौहान ने चौथी बार मुख्यमंत्री पद संभाला है। एक वर्ष पहले जब चुनाव हुए और कांग्रेस ने मामूली अंतर से बढ़त हासिल करने के बाद सरकार बना ली तब सभी ने यह कहा कि शिवराज सिंह चौहान का जादू समाप्त हो चुका है। उस समय किसी ने ये नहीं देखा था कि BJP को सीटें भले ही कम मिली थीं, लेकिन वोट प्रतिशत अधिक था। सभी विशेषज्ञ यह कह रहे थे कि BJP को कूटनीतिक चाल चलते हुए मध्य प्रदेश में सरकार बना लेनी चाहिए थी लेकिन शिवराज सिंह चौहान ने हामी नहीं भरी।
एक साल, 3 महीने बाद जैसे ही उन्होंने देखा कि अब समय अनुकूल हो गया है और ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व से खफा हैं, तब उन्होंने अपना पत्ता खोला। इसके बाद ज्योतिरादित्य सहित कांग्रेस के 22 MLAs को भी BJP शामिल करा लिया। इससे BJP बहुमत में आ गयी और कमलनाथ ने सरकार गिरने के डर से इस्तीफा दे दिया।
बता दें कि पिछले कुछ दिनों से मध्य प्रदेश की राजनीति में काफी उथल-पुथल मची हुई थी। यह सारा खेल कांग्रेस के पूर्व नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के इस्तीफे के बाद शुरू हुआ था। इसके बाद उनका समर्थन करने वाले विधायकों ने भी इस्तीफा दे दिया था। अब सिंधिया भाजपा में शामिल हो चुके हैं। 11 मार्च को कांग्रेस के 22 बागी विधायकों के विधायक के पद से अपना त्यागपत्र देने से सियासी संकट पैदा हुआ। इनमें से 6 के इस्तीफे विधानसभा अध्यक्ष ने तुरंत स्वीकार कर लिया था, जबकि 16 बागी विधायकों के इस्तीफे एक दिन बाद मंजूर हुए थे। इससे कमलनाथ की सरकार अल्पमत में आ गई थी। मध्य प्रदेश के राज्यपाल लालजी टंडन ने पहले कमलनाथ सरकार को विधानसभा में फ्लोर टेस्ट कराने को कहा था। हालांकि, इसके बाद कोरोना वायरस का हवाला देते हुए स्पीकर ने सदन की कार्यवाही को 26 मार्च तक के लिए स्थगित कर दी थी।
इसके बाद शिवराज सिंह ने कमान अपने हाथ में लेते हुए मामले को सुप्रीम कोर्ट में ले जाने का फैसला किया, जहां निर्णय उनके पक्ष में आया। सुप्रीम कोर्ट ने स्पीकर के इस फैसले को पलटते हुए 20 मार्च को 5 बजे तक फ्लोर टेस्ट कराने का आदेश दिया था।
15 साल तक मध्य प्रदेश के सीएम रहे शिवराज सिंह चौहान भाजपा पार्टी के एक बड़े चहरों में से एक हैं जिन्होंने प्रदेश की जनता का विश्वास जीतकर लगातार इतने सालों तक राज किया है। हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में पार्टी ने पूरा तख़्ता पलट कर कांग्रेस का सफाया करते हुए 29 में से 28 सीटें जीती थी और इसका श्रेय शिवराज चौहान की कारगार रणनीति को जाता है। दिलचस्प बात यह है कि, शिवराज सिंह चौहान ने आम चुनाव के नतीजे आने से पहले ही इस बात का दावा किया था कि वह राज्य की 27 सीटें जीतने में सफल होंगे जो नतीजों के बाद देखने को मिला भी। यही नहीं मध्य प्रदेश की राजनीति में शुरू से ही शिवराज सिंह चौहान का दबदबा देखने को मिला है और यहां की जनता में उनके प्रति एक अपनापन झलकता है। यही नहीं उन्होंने पार्टी की सदस्यता अभियान की भी कमान संभाली थी।
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ के शपथ ग्रहण समारोह के दौरान भी वे अपनी बातों से अपने विरोधियों समेत सभी का दिल जीतने में कामयाब रहे थे। उन्होंने कहा था कि ”मेरा राजकीय राजनीति को छोड़कर केंद्र में जाने का कोई विचार नहीं है, मध्यप्रदेश मेरे लिए मंदिर है और यहाँ की जनता मेरे लिए भगवान के समान है| मेरे घर के दरवाज़े सभी नागरिकों के लिए खुले हैं और वे जब चाहे मुझसे बेझिझक मिलने के लिए आ सकते हैं। मैं उनकी हमेशा की तरह मदद करने की भरपूर कोशिश करूंगा।”
उन्होंने फिर से अब मध्य प्रदेश की कमान संभाल ली है और अब यह दावे के साथ कहा जा सकता है कि मध्यप्रदेश की राजनीति में शिवराज सिंह चौहान एक ऐसे नेता हैं जो न सिर्फ जनता में लोकप्रिय हैं बल्कि कूटनीति और रणनीति में भी उनका कोई सानी नहीं है।