आपातकाल के दौरान संविधान में जबरदस्ती डाला गया समाजवाद, इसे तुरंत हटाओ: BJP MP राकेश सिन्हा

बहुत बढ़िया राकेश सिन्हा

समाजवाद

कोरोना की खबर के बीच लोकसभा में कार्रवाई जारी है। सदन अपना काम कर रहा है। इसी बीच लोकसभा में भाजपा के सांसद प्रोफेसर राकेश सिन्हा एक प्रस्ताव लाने जा रहे हैं जिससे विपक्ष में विस्फोट होने की उम्मीद है। उन्होंने सदन को संविधान के प्रस्तावना से socialism शब्द हटाने के लिए प्रस्ताव लाने का नोटिस दिया है। socialism का अर्थ होता है समाजवाद।

उन्होंने इस शब्द को हटाने की मांग पर तर्क दिया है कि वर्तमान परिदृश्य में यह शब्द “निरर्थक” है, और “economic thinking without a particular thought” के लिए इसे हटाना आवश्यक है। बता दें की संविधान की में लिखा है कि WE, THE PEOPLE OF INDIA, having solemnly resolved to constitute India into a SOVEREIGN SOCIALIST SECULAR DEMOCRATIC REPUBLIC  and to secure to all its citizens.

राज्यसभा सदस्य राकेश सिन्हा द्वारा तैयार किये गए इस प्रस्ताव में यह कहा गया है कि आपातकाल लागू होने के कारण इस शब्द को संविधान की प्रस्तावना में बिना किसी चर्चा के ही शामिल कर लिया गया है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना को संविधान की आत्मा कहा जाता है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना मूल रूप से जवाहरलाल नेहरू द्वारा प्रस्तुत किये गए ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ पर आधारित है।

राकेश सिन्हा का कहना है कि आज के दौर में समाजवाद शब्द का कोई महत्व नहीं रह गया है। राकेश सिन्हा का प्रस्ताव है कि समाजवाद को प्रस्तावना से हटा कर बिना किसी खास़ विचारधारा के आर्थिक सोच को जगह दी जानी चाहिए। अगर सदन में यह प्रस्ताव पास हो जाता है तो परंपरा के अनुसार प्रस्ताव को संबंधित मंत्रालय को भेज दिया जाएगा। इसके बाद मंत्रालय चाहे तो इस प्रस्ताव पर क़ानून ला सकता है।

बता दें कि प्रस्तावना के मूल स्वरूप में ये समाजवाद नहीं था लेकिन आपातकाल को समय की जरूरत बताते हुए इंदिरा गांधी ने उस दौर में लगातार कई संविधान संशोधन किये। 40वें और 41वें संशोधन के जरिये संविधान के कई प्रावधानों को बदलने के बाद 42वां संशोधन पास किया गया इसी संशोधन के कारण संविधान को कंस्टीट्यूशन ऑफ इंदिरा कहा जाने लगा था। इसके जरिये भारतीय संविधान की प्रस्तावना तक में बदलाव कर दिए गए थे और socialism और secularism शब्द जोड़ा गया था।

Socialism शब्द नेहरूवियन अर्थव्यवस्था का परिचायक है जो जवाहरलाल नेहरु के समय ही निरर्थक हो चुकी थी। उसी सोच को आगे बढ़ाते हुए इन्दिरा गांधी ने प्रस्तावना में बदलाव कर इसे जोड़ा। दोनों ही प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और इन्दिरा गांधी के दौर में जमीनी सुधार और बैंको तथा इंडस्ट्रीज के राष्ट्रीयकरण ने भारत की अर्थव्यवस्था को कछुए की रफ्तार से भी धीरे कर दिया और भारत अन्य देशों के मुक़ाबले पिछड़ता चला गया।

हालांकि, भारत ने 1991 के दौर में नेहरू और इन्दिरा के समाजवाद की बड़ियों में जकड़ी अर्थव्यवस्था को छोड़ पूंजीवादी बाजार की तरफ रुख किया लेकिन संविधान में आज भी समाजवाद व्याप्त है।

अगर आज के परिपेक्ष्य में देखा जाए तो समाजवाद सभी देशों में फेल हो चुका है, उदाहरण के तौर पर वेनेजुयेला का क्या हाल हुआ है यह सभी को पता है। कुछ वर्षो से यह देश राजनीतिक उठापटक से गुजर रहा है। कभी कच्चे तेल के सबसे बड़े रिजर्व रखने वाला वेनेजुएला में समाजवाद ने लोगों को गरीब बना दिया। इसी वजह से भारत को भी इस नेहरूवादी सोच को पीछे छोड़ना होगा जिससे देश आर्थिक प्रगति कर सके। भारत में भी बिहार राज्य को अगर देखा जाए तो समाजवाद का विकास पर कितना गहरा असर होता है देखा जा सकता है। स्वतंत्रता के बाद आज तक यह राज्य विकास की पटरी पर नहीं दौड़ सका है और कारण बस यहां के समाजवादी नेता हैं। चाहे वो नितीश कुमार हो या लालू यादव या फिर जय प्रकाश नारायण, इन सभी ने बिहार को बनाने से अधिक बांटने पर ज़ोर दिया। यही कारण था कि नीति आयोग की हाल में जारी की गयी रैंकिंग SDG India Index 2019 में सबसे पीछे था।

Socialism या समाजवाद की भारत या विश्व में कहीं भी प्रासंगिकता नहीं है। Free Market या पूंजीवादी बाजार ही भविष्य है और भारत को इसी पर अधिक ध्यान देना चाहिए। socialism के संविधान के प्रस्तावना से हटाकर नेहरू की नीतियों से पीछा छुड़ाना होगा जिससे भारत एक खुला बाजार हो। इसके लिए आवश्यक है सरकार संविधान में संशोधन कर इस शब्ध को सर्वथा के लिए हटा दे।

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