सुधीर ने DNA में जैसे ही ज़मीन जिहाद का मामला उठाया, लिबरलों की ज़मीन खतरे में पड़ गयी

सुधीर चौधरी

ज़ी न्यूज़ के पत्रकार और डीएनए शो के होस्ट सुधीर चौधरी अपने बेबाक विचारों के लिए जाने जाते हैं। आप इनका समर्थन करें या विरोध करें, वो आपकी इच्छा, परंतु आप इन्हें अनदेखा तो बिलकुल नहीं कर सकते। हाल ही में सुधीर चौधरी ने कश्मीर में एक उदाहरण के जरिये आतंकवादियों के ज़मीन जिहाद पर प्रकाश क्या डाला, कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी बौखला गए और उन्हें खरी खोटी सुनाने लगे।

अपने डीएनए शो में सुधीर चौधरी ने जम्मू-कश्मीर में आबादी के जरिये जम्मू क्षेत्र के इस्लामीकरण के नापाक प्रयास को उजागर किया। सुधीर चौधरी ने अपनी रिपोर्ट में कहा, “रोशनी एक्ट एक बहुत बड़ा घोटाला था जिसमें अवैध कब्जा करने वालों को बेशकीमती ज़मीनें कौड़ियों के भाव बेच दी गयी थीं। फिलहाल ये मामला जम्मू-कश्मीर के हाई कोर्ट में लंबित है परंतु ये एक बहुत बड़ी साजिश थी। आरोपों की माने तो हिन्दू बहुल जम्मू में अवैध कब्जे वाली सरकारी ज़मीन का मालिक केवल एक ‘धर्म विशेष’ के लोगों को बनाया गया।”

इसके अलावा सुधीर चौधरी ने जिहाद के अनेकों प्रकार को विस्तार से बताते हुए रोशनी एक्ट के दुष्परिणामों को न केवल उजागर किया, अपितु आतंकवादियों के साथ पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेताओं की सांठगांठ को भी सबके समक्ष एक्स्पोज किया।

परंतु यह रोशनी एक्ट था क्या? इस अधिनियम के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर में सरकारी ज़मीन पर जो भी अवैध कब्जा करता, उसे ही उस क्षेत्र का वास्तविक स्वामी भी बना दिया जाता। इस तरह से राज्य में इस्लामी कट्टरपंथियों की पहुंच जम्मू क्षेत्र तक बढ़ाने के लिए सरकारी स्तर पर वर्षों तक धांधलेबाजी की जाती रही। इससे न सिर्फ देश के राजकोष को नुकसान पहुंचा, अपितु धर्म के आधार पर लोगों को ज़मीन अवैध रूप से पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस की सरकारों द्वारा आवंटित की जाती रही।

जब कठुआ मामला विवादों के घेरे में आया, तो उसी वक्त जम्मू के गुज्जर और बकरवाल समुदाय ने भी इस एक्ट के विरोध में अपनी आवाज़ उठानी शुरू कर दी, क्योंकि पीडीपी सरकार ने रोशनी एक्ट के जरिये रोहिंग्या घुसपैठियों को अवैध रूप से बसाना शुरू कर दिया था। अंतत: 2018 में राष्ट्रपति शासन लगने के उपरांत इस कपटी अधिनियम को निरस्त कर किया गया

अब ऐसे गंभीर मामलों को सुधीर चौधरी उजागर करें और हमारे तथाकथित बुद्धिजीवी शांत बैठे रहे, ऐसा भला हो सकता है क्या? द प्रिंट के पत्रकार कैरवी ग्रेवाल द्वारा लिखे गए आर्टिकल, काँग्रेस भाजपा आज तक पर कवि सम्मेलन कर रहे हैं और सुधीर चौधरी ज़मीन जिहाद रच रहे हैं” में साफ दिखाई दे रहा है कि कैसे सुधीर चौधरी के इस बयान से वामपंथी तमतमाए हैं। विश्वास नहीं होता तो इसी लेख के एक extract को पढ़िये,

ज़ी न्यूज़ के एंकर एक बार के लिए अलग राह पर चल पड़े हैं। उन्होंने एक बड़ा ही विचित्र कॉन्सेप्ट बताया, जो कोरोना वायरस नहीं, ज़मीन जिहाद है। सुधीर चौधरी मानो अपनी पीठ थपथपाते हुए बताने लगे, “मीडिया सिंधिया के राजनीतिक दांव पेंच सुलझाने में लगी हुई है, जबकि यहाँ ज़्यादा गंभीर समस्याओं पर कोई ध्यान ही नहीं दे रहा है”।

परंतु जनाब की पोल तभी खुल गयी जब उसी लेख में पत्रकार महोदय ने यह पोस्ट किया –

यहाँ लिखा है, “अपने आश्चर्यजनक दावों को समर्थन देने के लिए चौधरी रोशनी एक्ट जैसे किसी कानून के बारे में कुछ बताने लगे, पर जितना बताया वो मेरे नज़रिये में वैमनस्य से परिपूर्ण और खतरनाक था। उन्होंने एक चार्ट भी दिखाया, जिसे समझना मेरे बस की बात नहीं थी”।

मतलब पत्रकार महोदय को पता कुछ न हो, पर ज्ञान बांचना आवश्यक है। परंतु द प्रिंट अकेला नहीं था, जिसने सुधीर चौधरी के इस विश्लेषण पर इतना हो हल्ला मचाया। बेइज्जती करवाने में स्वर्ण पदकधारी पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने सुधीर चौधरी को सांप्रदायिक घोषित करते हुए ट्वीट किया, “ये चैनल जिस प्रकार से सांप्रदायिक वैमनस्य फैला रहा है, वो काफी हैरानी भरा, शर्मनाक और खतरनाक है। ये चैनल एक मोदी समर्थक सांसद द्वारा संचालित किया जा रहा है। क्या सरकार कोई एक्शन लेगी?”

 

परंतु सुधीर चौधरी यूं ही वामपंथियों के हिट लिस्ट पर नहीं आए हैं। वे ऐसी जगह रिपोर्टिंग करते हैं, जहां जाने से पहले बड़े से बड़ा वामपंथी पत्रकार भी सोचता है। जब 2016 में बंगाल में इस्लामी कट्टरपंथियों ने धूलागढ़ में उत्पात मचाया था, तब ये सुधीर चौधरी ही थे, जिन्होंने इन घटनाओं को कवर करने का साहस किया। उनके विरुद्ध बंगाल सरकार ने एफ़आईआर भी दर्ज करवाई, परंतु सुधीर टस से मस नहीं हुए। ये सुधीर चौधरी के कवरेज का ही परिणाम था कि जिस विशाल जंगोत्रा को वामपंथी कठुआ केस का मुख्य दोषी बनाने पर तुले हुए थे, वो न केवल निर्दोष सिद्ध हूआ, अपितु जम्मू-कश्मीर के स्थानीय प्रशासन के कार्रवाई के तौर तरीकों पर भी सवाल उठे।

सच कहें तो सुधीर चौधरी देश के उन चुनिन्दा पत्रकारों में से एक हैं, जो सस्ती लोकप्रियता के लिए तथ्यों से खिलवाड़ करने में विश्वास नहीं करते। उनके तौर तरीकों पर निस्संदेह कुछ लोग सवाल उठाते हैं, पर जिस समय अधिकतर पत्रकार अपने आप को श्रेष्ठ  दिखाने के के चक्कर में पत्रकारिता का उपहास उड़ाते हैं, उस लिहाज से सुधीर चौधरी ऐसे पत्रकारों से लाख गुना बेहतर हैं।

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