येस बैंक की कहानी एक बैंक की ही नहीं, बल्कि एक परिवार की भी कहानी है। शुरू से ही येस बैंक की कहानी, कपूर फैमिली की, दोस्ती की, रिश्ते की और फिर आखिर में विश्वासघात की कहानी भी रही है। वर्ष 1999 में अशोक कपूर (ABN amro bank के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष) और राणा कपूर (ANZ Grendlays Bank के पूर्व अध्यक्ष) साथ आए और नेदरलैंड्स के robobank के साथ मिलकर दोनों ने नॉन बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनी शुरू करने की योजना बनाई। कुल मिलाकर दो पूर्व उच्च स्तर के बैंकर्स एक विदेशी कंपनी के साथ मिलकर एक नया बिजनेस शुरू करना चाहते थे।
अशोक कपूर और राणा कपूर को वर्ष 2004 में बैंकिंग लाइसेंस मिल गया था और वर्ष 2005 में ही इस बैंक ने अपने आप को स्टॉक मार्केर्ट में लिस्टिड करा लिया था और अपने आप को सार्वजनिक निवेश के लिए ओपन कर लिया था। भारत में किसी कंपनी का उसके स्थापित होने के महज़ एक साल के अंदर ही स्टॉक मार्केट पर लिस्टिड होना बिलकुल नयी बात थी। अशोक कपूर बैंक के चेयरमैन बने जबकि राणा ने बैंक के MD और CEO का पद संभाला और दोनों ने बैंक की नियमित कार्यवाही को मॉनिटर करना शुरू कर दिया।
बाद में दोनों ने अपनी दोस्ती को रिश्ते में बदल लिया और अशोक कपूर की पत्नी मधुर की बहन की शादी राणा कपूर से कर दी गयी। इस प्रकार अशोक कपूर और राणा कपूर एक दूसरे के रिश्तेदार बन गए। परिवार और बैंक में वर्ष 2008 तक सब कुछ एक दम नॉर्मल चला और तब हुए मुंबई में 26/11 के हमले। उन हमलों में trident होटल में ठहरे अशोक कपूर की हत्या कर दी गयी थी। अशोक कपूर के निधन के बाद राणा कपूर ने अशोक के परिवार को किनारे कर बैंक के प्रशासन को अपने हाथों में लेने का भरपूर प्रयास किया। इतना ही नहीं, राणा ने कंपनी के इतिहास से भी अशोक का नामो निशान मिटाने का प्रयास किया। उदाहरण के तौर पर वर्ष 2012 में जब राणा येस बैंक के इतिहास के बारे में बता रहे थे, तो उन्होंने अशोक का ज़िक्र तक नहीं किया। उस कार्यक्रम में राणा ने अपने आप को ही बैंक के एकमात्र मालिक और संस्थापक के तौर पर पेश करने की कोशिश की।
राणा का यह व्यवहार बेशक अशोक के परिवार को अच्छा नहीं लगा। अशोक के परिवार की भी बैंक में 10.29 प्रतिशत हिस्सेदारी थी, जो कि राणा की 11.77 प्रतिशत हिस्सेदारी से थोड़ा ही कम था। अशोक की बेटी शगुन ने राणा का विरोध करना शुरू किया और बाद में येस बैंक के बोर्ड में चुने जाने के लिए उन्होंने नामांकन दाखिल कर दिया। हालांकि, बाद में राणा और उसके समर्थकों ने मिलकर शगुन और उसके परिवार को इसकी इजाजत नहीं दी, जिसके बाद अशोक के परिवार ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया ।
वर्ष 2015 में कोर्ट ने अशोक के परिवार के पक्ष में फैसला सुनाया, और आखिर अशोक की पत्नी मधु को येस बैंक के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में शामिल कर लिया गया। तभी से येस बैंक में दोनों पक्षों के बीच पावर को लेकर खींचतान जारी रही और बैंक की वित्तीय हालत खस्ता होती गयी। राणा कपूर ने बाद में अपनी विफलताओं और बढ़ते NPAs को अकाउंटिंग में धांधली के बल पर छुपाने की भरपूर कोशिश की, लेकिन RBI को संकेत मिल चुके थे कि बैंक में सब कुछ सही नहीं चल रहा है, वहीं येस बैंक जो पिछले कुछ समय में निजी निवेशकों का सबसे पसंदीदा बैंक बन चुका था।
पिछले कुछ सालों में जिन भी बड़ी कंपनियों ने येस बैंक से बड़ा लोन लिया था, उन सभी को बड़ा वित्तीय घाटा झेलना पड़ा है। उदाहरण के तौर पर आप एस्सेल ग्रुप, CG पावर, अनिल अंबानी ग्रुप, दीवान हाउसिंग फाइनेंस और वीडियोकॉन जैसी कंपनियों को देख सकते हैं।
उद्योगपतियों के बीच में येस बैंक की ऐसी छवि बन गयी थी कि अगर कोई भी बैंक किसी को लोन देने से मना कर देगा तो राणा कपूर का येस बैंक तो उसे आखिर लोन दे ही देगा। येस बैंक ने ऐसे ऐसे प्रोजेक्ट्स के लिए लोन दिया हुआ था जो अन्य बैंकों में कोई भी लोन प्राप्त करने के लिए क्वालिफाइ ही नहीं करते थे।
अब कंपनी ने अपने सभी ऑपरेशन को बंद कर दिए हैं और RBI ने कंपनी की मैनेजमेंट को अपने हाथों में ले लिया है। येस बैंक की कहानी को राणा कपूर के टैलंट, उसके लालच, उसके साथी को दिये विश्वासघात और उसकी रिस्क लेने की क्षमता की कहानी भी कहा जा सकता है।