योगी सरकार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सीएए विरोधी दंगाइयों के पोस्टर हटाने के निर्देश दिए हैं। उच्च न्यायालय के दो न्यायाधीशों ने स्वत: संज्ञान लेते हुए न केवल यूपी की योगी सरकार को फटकार लगाई है बल्कि तत्काल प्रभाव से दंगाइयों के पोस्टर्स हटाने के लिए भी कहा है।
परंतु योगी सरकार ने इस निर्णय के सामने न झुकते हुए बताया कि वे दंगाइयों की पहचान उजागर करते रहेंगे। योगी सरकार के प्रमुख सलाहकारों में से एक, श्री मृत्युंजय कुमार ने ट्वीट किया, “दंगाइयों के पोस्टर हटाने के हाइकोर्ट के आदेश को सही परिपेक्ष्य में समझने की ज़रूरत है। सिर्फ उनके पोस्टर हटेंगे, उनके खिलाफ लगी धाराएं नहीं। दंगाइयों की पहचान उजागर करने की लड़ाई हम आगे तक लड़ेंगे। योगीराज में दंगाइयों पर ‘नरमी’ असंभव”।
दंगाइयों के पोस्टर हटाने के हाइकोर्ट के आदेश को सही परिपेक्ष्य में समझने की ज़रूरत है। सिर्फ उनके पोस्टर हटेंगे, उनके खिलाफ लगी धाराएं नही।
दंगाइयों की पहचान उजागर करने की लड़ाई हम आगे तक लड़ेंगे।
योगीराज में दंगाइयों से "नरमी" असंभव https://t.co/Ee35le76ha— Mrityunjay Kumar (@MrityunjayUP) March 9, 2020
इसके अलावा एएनआई से बातचीत के दौरान शलभ मणि त्रिपाठी के हवाले से ये भी पता चला कि सरकार इस निर्णय को चुनौती देने पर विचार भी कर रही है। “अभी हम लोग इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर गहन विचार कर रहे हैं। इसमें देखा जा रहा है कि किसके आधार पर पोस्टर हटाने का आदेश दिया गया है। हमारे विशेषज्ञ इसे जांच रहे हैं। सरकार तय करेगी कि अब कौन से विकल्प का सहारा लिया जाएगा। मुख्यमंत्री को इस पर फैसला लेना होगा। लेकिन यह तय है कि सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने वाले लोगों को बिल्कुल नहीं बख्शा जाएगा”।
अमर उजाला की रिपोर्ट के मुताबिक यूपी की योगी सरकार हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे सकती है। सरकार की ओर से स्पेशल लीव पिटिशन दाखिल करने की तैयारी शुरू कर दी गई है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक यूपी की 23 करोड़ आबादी की सुरक्षा के लिए अगर सुप्रीम कोर्ट भी जाना पड़े तो इसमें योगी सरकार पीछे नहीं हटेगी। सूत्रों के मुताबिक इस संबंध में योगी सरकार सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकीलों से भी राय लेगी। उसके बाद सरकार उच्च न्यायालय के फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देने का निर्णय करेगी।
बता दें कि योगी सरकार के आदेश अनुसार लखनऊ में दंगाइयों के पोस्टर्स सार्वजनिक किए गए थे। इस आदेश के अनुसार, “प्रशासन ने दंगाइयों को संपत्ति के नुकसान की वसूली का नोटिस भी दिया है। लखनऊ में हिंसा फैलाने वाले सभी उपद्रवियों के पोस्टर और बैनर लगाए जाएंगे। नोटिस के बाद भी जुर्माना नहीं देने पर इनकी संपत्ति कुर्क की जाएगी”। इन चिन्हित दंगाइयों से कुल 1 करोड़ 55 लाख 62 हज़ार 337 रुपये की वसूली होनी है। इन दंगाइयों के फोटो के साथ उनका नाम और पता तक इन पोस्टर्स पर छापा गया था।
इस निर्णय पर इलाहाबाद हाई कोर्ट के दो जजों, मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और जस्टिस रमेश सिन्हा ने मामले का स्वत: संज्ञान लिया और सरकार को फटकार लगाते हुए इन पोस्टर्स को तुरंत हटाने का हुक्म दिया, क्योंकि ये निर्णय उनके अनुसार आरोपियों के ‘निजता के अधिकार का हनन है’। हालांकि इस विचार के सार्वजनिक होते ही सोशल मीडिया की ओर से कोर्ट के इस निर्णय पर विवाद खड़ा किया, और कई सोशल मीडिया यूजर्स ने इस निर्णय की जमकर आलोचना की।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्णय पर योगी सरकार ने जिस तरह से अपना पक्ष रखा है, उससे साफ पता चलता है कि वे अपने निर्णय से एक कदम भी पीछे नहीं हटने वाली। एक ओर जहां दंगाइयों से निपटने में कई सरकारें असहज दिख रही हैं, तो वहीं योगी आदित्यनाथ और उनके नेतृत्व में प्रशासन ने पूरे देश के लिए एक मिशाल पेश किया है, और उन्हें किसी के दबाव में भी अपने वर्तमान पक्ष से एक कदम भी पीछे नहीं हटना चाहिए।