यूरोप से खदेड़े जाने के बाद चीन की शातिर नजर भारतीय कंपनियों पर, HDFC बना पहला शिकार

कोरोना हमला के बाद चीन का आर्थिक हमला

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कोरोना से पूरी दुनिया की कंपनियों को कमजोर करने के बाद अब चीन ने उन कंपनियों की खरीद को शुरू कर दिया है ताकि दुनिया के सभी देशों में चीन का प्रभाव बढ़ जाये। पहले हमने आपको बताया था कि कैसे चीन यूरोप के कुछ देशों जैसे फ्रांस और इटली में वित्तीय तौर पर कमजोर कंपनियों में हिस्सेदारी खरीद रहा है, और इन देशों की अर्थव्यवस्थाओं को हाईजैक करने की कोशिश कर रहा है, वहीं अब चीन ने यही काम भारत में शुरू कर दिया है और भारत में चीन का सबसे पहला शिकार बना है Housing Development Finance Corporation यानि HDFC!

दरअसल, अब यह खबर सामने आई है कि चीन के सरकारी बैंक Peoples Banks of China यानि PBC ने भारत के सबसे बड़े बैंकों में से एक HDFC में 1 प्रतिशत की हिस्सेदारी खरीद ली है। PBC ने HDFC के एक करोड़ 74 लाख 92 हज़ार शेयर्स खरीदे हैं। चीन ने ऐसा कदम तब उठाया है जब पिछले महीने ही HDFC के शेयर्स में 25 प्रतिशत की कमी देखने को मिली थी।

इससे पहले हमने आपको बताया था कि कैसे चीन कोरोना से पीड़ित कंपनियों पर घात लगाकर बैठा है। कोरोना के कारण आज स्पेन और इटली की कई ऐसी कंपनियां हैं जिन्हें निवेश की ज़रूरत है, और चीन इसी फिराक में बैठा है कि कैसे भी मौका पाकर इनमें निवेश कर लिया जाए। ये सभी कंपनियां इसके बाद चीनी सरकार की मुट्ठी में हो जाएंगी। इस खतरे का अहसास अब यूरोप की सरकारों को भी चुका है।

यूरोप की कई सरकारें कोरोना महामारी के बीच ही अपने विदेशी निवेश (FDI) से जुड़े नियमों में बदलाव कर रही हैं। इसका एक उदाहरण हमें तब देखने को मिला जब बीते सोमवार को इटली की सरकार ने नियमों में बदलाव कर किसी विदेशी कंपनी द्वारा बैंक, ट्रांसपोर्ट, बीमा, ऊर्जा और स्वास्थ्य क्षेत्रों की कंपनियों के टेकओवर पर प्रतिबंध लगा दिया

कुछ इसी तरह के नियम स्पेन ने बनाए हैं। स्पेन के नियमों के मुताबिक अगर किसी देश को स्पेन की कंपनी में 10 प्रतिशत से ज़्यादा निवेश करना है, तो उसे पहले स्पेन की सरकार से इजाज़त लेनी होगी। इसी तरह के नियम जर्मनी ने भी बनाए हैं जिसके बाद किसी विदेशी कंपनी द्वारा जर्मनी की कंपनी को टेकओवर करना मुश्किल हो जाएगा।

इससे स्पष्ट होता है कि कोरोना के कारण चीन का प्रॉफ़िट कमाने का प्लान सिर्फ मास्क या मेडिकल सप्लाई बेचने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि वह इसके माध्यम से दुनिया पर अपना कब्जा करना चाहता है, फिर चाहे वह विदेशी कंपनियों पर कब्जा करके हो या फिर वहां हुवावे जैसी विवादित कंपनियों के पक्ष में ज़मीन तैयार करने के माध्यम से हो।

चीन अभी कोरोना से ग्रसित देशों को मेडिकल सप्लाई बेच रहा है और फिर अपने आप को इनके दोस्त की तरह प्रस्तुत करने की कोशिश कर रहा है। कोरोना की तबाही के बाद जब इन देशों के पास पैसों की कमी होगी, तो चीन अपने इसी प्रभाव और नकली दोस्ती को दिखाकर इन्हें बड़े-बड़े लोन देगा और इस प्रकार जैसे उसने OBOR के जरिये दुनिया के कई देशों को कर्ज़ जाल में फंसाया, वैसे ही अब भी वह कई देशों को अपने कोरोना-जाल में फंसा लेगा।

स्पष्ट है कि चीन का यह सहयोग स्वार्थ से भरा है और चीन इस संकट के समय में भी अपने आर्थिक और रणनीतिक एजेंडे को ही प्राथमिकता दे रहा है। ऐसे में सभी देशों के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वे कोरोना के साथ-साथ चीन के आर्थिक आक्रमण से भी बचें। कहीं ऐसा ना हो कि दुनिया चीनी वायरस से तो निजात पाले, लेकिन उनके देश की अर्थव्यवस्था पर चीनी सरकार वायरस बनकर हमले करना शुरू कर दे और फिर ये देश चाहकर भी कुछ नहीं कर पाएंगे। भारत और भारत की कंपनियों को भी सतर्क रहकर चीन के एजेंडे से सावधान रहने की ज़रूरत है।

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