वुहान वायरस से निपटने में पूरा संसार प्रयासरत है और अपने नागरिकों की रक्षा हेतु वे हरसंभव प्रयास कर रहे हैं। अमेरिका भी इसी दिशा में काम कर रहा है और हाल ही में उसने भारत में फंसे 1300 से अधिक नागरिकों को बाहर निकालने का प्रबंध भी किया था।
हालांकि यहां आ गई मुसीबत. दरअसल, 1300 में से मात्र 10 अमेरिकी ही अपने देश जाने को तैयार हैं। बाकी का मानना है कि भारत जैसी सुविधाएं उन्हें शायद ही अमेरिका में मिले। प्रीति गांधी के एक ट्वीट के अनुसार, “अधिकतर अमेरिकी भारत नहीं छोड़ना चाहते, क्योंकि वे यहां ज़्यादा सुरक्षित महसूस कर रहे हैं। कई लोग अंतिम समय पर अपने हाथ पीछे खींच रहे हैं, वह भी तब जब अमेरिकियों ने सभी प्रबंध कर रखे हैं“।
Most Americans don't want to leave from India, feel safer here; Several developing cold feet at the last moment even after the US Govt has made arrangements for flights to take them back home. #IndiaFightsCoronahttps://t.co/hm0VcoDvsR
— Priti Gandhi (Modi ka Parivar) (@MrsGandhi) April 12, 2020
बता दें कि वुहान वायरस से यदि कोई सबसे ज़्यादा प्रभावित है, तो वह है अमेरिका। 5 लाख से भी ज्यादा लोग संक्रमित है और 22000 से भी ज़्यादा लोग मृत्यु को प्राप्त हो चुके हैं। उधर भारत में लगभग 9000 लोग इस महामारी से संक्रमित है, और लगभग 300 लोग मृत्यु को प्राप्त हो चुके हैं।
परन्तु ऐसा क्या हुआ कि अमेरिकियों को भारत अभी ज़्यादा सुरक्षित लगने लगा है? दरअसल, अमेरिकी भी इस बात से अनभिज्ञ नहीं हैं कि भारत के मुकाबले अमेरिका की हालत बहुत ज़्यादा खराब है। जिनके पास कोई स्वास्थ्य बीमा नहीं है, उन्हें अपने खर्चे पर उपचार कराना पड़ रहा है।
उधर भारत में ऐसा कुछ नहीं है। यहां सभी लोगों का मुफ्त में इलाज हो रहा है, और इसके अलावा जो सक्षम है, उन्हें भी काफी सस्ते दर पर उच्चतम सुविधाएं प्रदान की गई हैं। यही नहीं, भारत अमेरिका की हर प्रकार से सहायता भी कर रहा है।
अभी हाल ही में भारत ने अमेरिका और ब्राज़ील सहित कई देशों को वुहान वायरस से निपटने में कारगर हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वाइन की खेप निर्यात करने को स्वीकृति दी है। भारत HCQ (Hydroxychloroquine) का दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक है, जिसने वित्तीय वर्ष 2019 में 51 मिलियन डॉलर मूल्य की दवा का निर्यात किया था। यह देश से 19 बिलियन डॉलर फार्मा के क्षेत्र से होने वाले निर्यात का एक छोटा हिस्सा है।
भारतीय फार्मास्युटिकल एलायंस (आईपीए) के महासचिव सुदर्शन जैन के अनुसार, भारत दुनिया के 70 प्रतिशत हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वाइन की आपूर्ति करता है। यह भी जानना आवश्यक है कि केंद्र ने ही पहले ही Ipca Laboratories and Cadila Healthcare से 100 मिलियन टैबलेट बनाने का ऑर्डर दे दिया था।
निर्माताओं का दावा है कि भारतीय बाजार के लिए पर्याप्त स्टॉक है, और साथ ही भारत के पास इतनी दवा है कि वह इन दवाओं को निर्यात कर सकता है। बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के अनुसार स्थानीय स्तर पर आपूर्ति के बारे में चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। भारत आवश्यकता पड़ने पर प्रति माह लगभग 100 टन दवा बना सकता है, क्योंकि इस दवा के बनाने की क्षमता को आसानी से बढ़ाया जा सकता है।
इतना ही नहीं, जिन विदेशी सैलानियों को वुहान वायरस से संक्रमित पाया गया, उनके इलाज में भी भारत ने कोई कसर नहीं छोड़ी। कई मरीज़ भारत की सस्ती, पर गुणवत्तापूर्ण सुविधाओं की प्रशंसा करते नहीं थक रहे हैं। शायद यही कारण है कि स्थिति सुधरने तक अमेरिकी भी भारत छोड़कर कहीं नहीं जाना चाहते।