कोरोना वायरस को लेकर चीन और ऑस्ट्रेलिया में विवाद गहराता जा रहा है। चीन जिस तरह से बौखला कर गलती पर गलती किए जा रहा है, उससे ऐसा लगता है कि आने वाले महीनों में चीन के खिलाफ देशों के गुट की अगुवाई अमेरिका नहीं बल्कि ऑस्ट्रेलिया करेगा।
चीन न सिर्फ ऑस्ट्रेलिया को धमकी दे रहा है बल्कि द्विपक्षीय रिश्तों और Diplomatic प्रोटोकॉल के नियम भी तोड़ रहा है। हाल ही में चीन के ऑस्ट्रेलिया में राजदूत Cheng Jingye ने यह स्वीकार किया था कि उन्होंने उनके और ऑस्ट्रेलिया के विदेश विभाग और व्यापार विभाग (DFAT) के सेक्रेट्ररी Frances Adamson के बीच हुई विस्तृत बातचीत को कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स के सामने उजागर किया था। इसके बाद DFAT ने खेद व्यक्त किया और कहा था कि चीन के दूतावास ने एक बयान जारी किया है, जिसमें आधिकारिक राजनयिक बातचीत का विवरण दिया गया है। ऑस्ट्रेलिया के विदेश विभाग और व्यापार विभाग लंबे समय से चली आ रही डिप्लोमैटिक प्रोटोकॉल का उल्लंघन का जवाब उल्लंघन करते हुए वह स्वयं जवाब नहीं देगा।
चीन ने सिर्फ यही नहीं किया बल्कि रोज अपने मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स के द्वारा ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ एजेंडा चला रहा है। ग्लोबल टाइम्स में एक संपादकीय लेख छापा गया जिसमें यह कहा गया कि, ‘अब से वाशिंगटन चीन के बारे में कुछ भी सकारात्मक नहीं कहेगा और लगातार हमारी निंदा करता रहेगा है। इसके ऑस्ट्रेलिया जैसे कुछ अनुयायी हैं। लेकिन ये देश मुश्किल से ही हमें प्रभावित कर सकते हैं।‘
इतना ही नहीं ग्लोबल टाइम्स के संपादक Hu Xijin ने वीबो पर ऑस्ट्रेलिया की तुलना जूतों पर चिपके Chewing gum (च्युइंग गम) से कर दी। उन्होंने लिखा कि, “ऑस्ट्रेलिया एक ऐसा देश है जिससे हमेशा परेशानी होती है। यह देश च्यूइंग गम की तरह है जो चीन के जूतों पर चिपका हुआ है। इसे हटाने के लिए रगड़ने के लिए आपको एक पत्थर ढूंढना पड़ता है।”
चीन की धमकियों के बावजूद ऑस्ट्रेलिया ने कदम पीछे नहीं खींचे हैं और यह बात चीन को चिंतित करती जा रही है। ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मोरिसन ने भी चीन के खिलाफ वुहान वायरस के उत्पत्ति की स्वतंत्र जांच की वकालत फिर से की है। यहाँ यह ध्यान देने वाली बात है कि चीन स्वतंत्र जांच से इतना घबरा क्यों रहा है? ऑस्ट्रेलिया तथा अन्य देशों ने तो स्वतंत्र जांच की बात की है जिसके परिणाम चीन के पक्ष में भी आ सकते है अगर उसने गलती नहीं की होगी। यानि अगर चीन ने इस वायरस को जानबूझकर नहीं फैलाया है तो उसे इस जांच से डरने की आवश्यकता ही नहीं है। पर फिर भी चीन डर रहा है क्योंकि चीन ने गलती की है। यही नहीं ऑस्ट्रेलिया का आर्थिक बहिष्कार करने की धमकी दे कर चीन ने सीनाजोरी भी करने की कोशिश की है।
बावजूद इसके बुधवार को ऑस्ट्रेलिया के पीएम मॉरिसन ने कहा कि उनकी सरकार “निश्चित रूप से वह सभी कार्रवाई करेगी जो उचित होगी।” कैनबरा में संवाददाताओं से उन्होंने कहा था, “यह एक ऐसा वायरस है, जिसने दुनिया भर में 200,000 से अधिक लोगों की जान ले ली है। इसने वैश्विक अर्थव्यवस्था को बंद कर दिया है। इस वायरस का प्रभाव असाधारण हैं।” उन्होंने आगे कहा कि, “अब पूरी दुनिया यह जानना चाहती है और इस महामारी का स्वतंत्र मूल्यांकन करना चाहती है, जिससे हम सबक सीख सकें और फिर भविष्य में इसे होने से रोक सकते हैं।”
यानि देखा जाए तो चीन के खिलाफ आने वाले देशों में ऑस्ट्रेलिया सबसे प्रखर रूप से आगे आ चुका है और उसके अपने कारण भी हैं। पहले तो चीन ने वहाँ से मास्क चुरा लिए और जब स्वतंत्र जांच की बात होने लगी तो आर्थिक बहिष्कार की धमकी देने लगा। यही नहीं हद तो तब पार हो गयी जब उसने डिप्लोमैटिक प्रोटोकॉल के नियमों की धज्जियां उड़ा दी। भले ही चीन और ऑस्ट्रेलिया के ट्रेड रिलेशन अच्छे और और चीन ऑस्ट्रेलिया का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार रहा हो, अब कोरोना ने इन दोनों के सम्बन्धों को हाशिए पर ला दिया है। ऑस्ट्रेलिया ने भी अपने और वैश्विक हित में चीन को आईना दिखाया है साथ ही अन्य देशों को भी सीख दे रहा है।
धीरे-धीरे ही सही पर कई देश अब ऑस्ट्रेलिया की तरह ही चीन के खिलाफ बोलना शुरू कर चुके हैं और ऐसा लगता है आने वाले समय में चीन के खिलाफ होने वाले कार्रवाई का नेतृत्व अमेरिका नहीं बल्कि ऑस्ट्रेलिया करेगा और इसमें भारत को भी ऑस्ट्रेलिया का साथ देना चाहिए।