कोरोना के बाद की दुनिया एकदम नई होगी, नया नेतृत्व होगा, नई सोच होगी और वातावरण में एक विशेष नयापन देखने को मिलेगा. भारत भी एक नई ताकत के रुप में पूरे विश्व के सामने आएगा और दुनियाभर के देश हमारे देश को किसी विश्वशक्ति से कम नहीं आकेंगे. भारत में कई बदलाव होंगे. व्यवहारिक बदलाव से लेकर शिक्षा, नौकरी के क्षेत्रों में भी नयापन देखने को मिलेगा.
जब दुनिया से कोरोना का अंत हो जाएगा तो भारत में फार्मा क्षेत्र को लेकर एक नई उत्साह देखने को मिलेगी. वजह साफ है कि भारत जेनरिक दवाओं का सबसे बड़ा सप्लायर देश है. दुनिया की बड़ी आबादी भारत के दवाओं पर निर्भर है. ऐसे में बी. फार्मा एक बी.टेक कोर्स की तरह ही होने वाला है. यानि भारतीय छात्रों और उनके अभिभावकों की पहली पसंद बी. फार्मा होने वाली है और जिस तरह से हम दवाओं का एक्सपोर्ट कर रहे हैं उसे देखते हुए यही कहा जा सकता है कि आने वाले दिनों में कर्मचारियों की मांग बढ़ेगी. जिससे इस क्षेत्र में नौकरियां बढ़ेंगी.
भारत में जब बच्चा पढ़ना शुरू करता है तो अभिभावकों की बड़ी तमन्ना होती है कि उनका बेटा या बेटी इंजीनियर या डॉक्टर बने लेकिन कोरोना के बाद आने वाले समय में इस सोच में व्यापक बदलाव आने वाला है। कोरोना के कारण पूरे विश्व में फ़ार्मा सैक्टर को एक नये प्रकार का बूस्ट मिला है. जिसके बाद न सिर्फ इस क्षेत्र की मांग बढ़ रही है बल्कि इस क्षेत्र में काम करने की रुचि भी बढ़ने वाली है।
भारत अभी वैश्विक स्तर पर फ़ार्मा क्षेत्र में अव्वल है। भारत 12.1 बिलियन डॉलर के कुल निर्यात के साथ सबसे बड़े दवा निर्यातकों में से एक है, यह वैश्विक बाजार में 3.4 प्रतिशत है, और दवा उत्पादों के शीर्ष वैश्विक निर्यातकों की सूची में 9 वें स्थान पर है।
पिछले एक या दो वर्षों को छोड़कर, पिछले दशक में फार्मास्युटिकल उद्योग में दो अंकों के दर से वृद्धि हुई है।
भारतीय फार्मास्युटिकल एलायंस (आईपीए) के अनुसार– सन फार्मा और ल्यूपिन जैसी शीर्ष घरेलू दवा निर्माता कंपनियों का प्रतिनिधित्व करने वाले भारतीय फार्मा एलायंस के अनुसार भारतीय फार्मा उद्योग 38 बिलियन डॉलर से 2030 तक 120-130 बिलियन डॉलर तक बढ़ने की उम्मीद है। यह उम्मीद कोरोना से पहले लगाई गयी थी यानि कोरोना के बाद इसके कई गुना बढ़ने की उम्मीद की जा सकती है।
कोरोना से निपटने के लिए अमेरिका ने भी HCQ और पैरासिटामॉल दवा के लिए निवेदन किया था जिसके बाद भारत ने 108 देशों को यह दावा निर्यात करने का फैसला लिया था। यही नहीं अमेरिका को HCQ देने के एवज में अमेरिका की खाद्य और औषधि विभाग यानि FDA जो पहले भारतीय कंपनियों को परेशान करती थी, उसने अब सिप्ला की जेनेरिक एसिड ड्रग और पेरिफेनजेन टैबलेट जैसी भारतीय कंपनियों और दवाओं पर लगाए गए रोक को हटा लिया।
जब विश्व इंटरनेट युग में प्रवेश कर चुका था और वैश्विक स्तर पर इंजीनियर की मांग बढ़ी थी तब भारत में बारहवीं के बाद इंजीनियरिंग यानि Btech करने वाले छात्रों में भी भारी उछाल देखने को मिला था। जिससे पूछो वह B.Teach ही करना चाहता था।
इस बात का अंदाजा हम HRD मंत्रालय द्वारा वर्ष 2015-16 में कराये गए All India Survey On Higher Education से ही स्पष्ट हो जाता है। इसके अनुसार वर्ष 2011-12 में B Tech में enrolment लेने वालों की संख्या 32 लाख 71 हजार से ऊपर थी जो आगे के वर्षों में बढ़ता ही गया और वर्ष 2015-16 में यह बढ़ कर 42 लाख हो गया।
यही अगर हम B Pharma में छात्रों के enrolment को देखे तो यह 2011-12 में मात्र 1 लाख 27 हजार था जो 2015-16 में बढ़ कर 1 लाख 90 हजार हुआ।
यही हाल मास्टर और फिर Phd में देखने को मिलता है। भारत के इंजीनियरिंग कॉलेजों के अनुभव को दर्शाता है, अच्छे वेतन के वादे और पेशे के लिए एक सांस्कृतिक आत्मीयता ने हजारों छात्रों को इस विकल्प को चुनने के लिए तैयार किया है।
लेकिन कोरोना ने भारत की फ़ार्मा सैक्टर को में व्यापक बदलाव लाएगा। जिस तरह से भारत के दवाओं की मांग दुनिया में तेजी से बढ़ रही है उससे फार्मेसियों और दवा कंपनियों दोनों का विस्तार होगा। ये कंपनियाँ अच्छे पैकेज देकर छात्रों को मौके देंगी और रिसर्च में भी निवेश किया जाएगा।
कंपनियों के विस्तार से छात्रों में भी नई उम्मीद जागेगी और वे B Pharma की ओर आकर्षित होंगे। इससे न सिर्फ कॉलेजों के B Pharma की खाली सीट भरेंगी बल्कि कोर्स की मांग बढ्ने पर फार्मा कंपनियाँ भी बेहतर सुविधाओं के साथ नए फ़ार्मा कॉलेजों में भी निवेश करेंगे। भारतीयों के पास पहले से ही बेहतर विशेषज्ञता है लेकिन इसके बाद भारत इस क्षेत्र में बेताज बादशाह बन जाएगा। जिस तरह IT sector ने भारत में विकास किया है अब फ़ार्मा सैक्टर भी उसी रफ्तार से आगे बढ़ेगा।