पालघर की लिंचिंग से बैकफुट पर आ चुके वामपंथियों को अपना एजेंडा फैलाने के लिए अदद अवसर की तलाश थी। परन्तु उनके लाख चाहने पर भी ये अवसर उनके हाथ नहीं लग रहा था। ऐसे में बेबस लिबरल भाजपा के युवा सांसद तेजस्वी सूर्या के एक पुराने ट्वीट पर ही टूट पड़े।
2015 में तेजस्वी सूर्या ने तारिक फतेह के एक बयान को शेयर किया, जिसमें अरबी प्रांतों में महिलाओं के साथ हो रहे यौन शोषण पर हमला किया गया था। अपने दोगलेपन के लिए दक्षिणपंथियों के कोपभाजन का शिकार बन रहे लिबरल ब्रिगेड को मानो जीवनदान मिल गया, और उन्होंने इसका भरपूर फायदा उठाने का प्रयास किया।
परन्तु इस पूरे प्रकरण में वामपंथियों ने एक बात पर फिर से गौर नहीं किया और वो था मामले की सच्चाई। ये बातें तो समानता और नारी सशक्तिकरण की करते हैं, लेकिन कट्टरपंथियों इस्लामियों के इशारों पर नाचने से पहले ये एक बार भी नहीं सोचेंगे।जैसा इस ट्वीट में दिख रहा है, तेजस्वी ने अपना कोई मत नहीं ऐड किया। परन्तु वामपंथियों को उससे क्या? उनके लिए तो एजेंडा ऊंचा रहे हमारा सदैव सर्वोपरि रहा है। वामपंथियों को समर्थन के लिए स्वघोषित फेमिनिस्ट भी सामने आ गई, जो तेजस्वी के ट्वीट को लेकर घड़ियाली आंसू बहाने लगीं।
यह सोचकर भी अजीब लगता है कि जो नारीवादी महिला को एक खरोंच भी लगने नहीं देना चाहते हैं, वे अरबी समुदाय में व्याप्त FGM (फीमेल खतना) यानी महिलाओं के गुप्तांग काटे जाने पर चुप क्यों हो जाते हैं? तारिक फतह ने स्वराज्य पत्रिका के लिए जो इंटरव्यू में यह बयान दिया था, उसमें इसी अंधविश्वास पर करारा प्रहार किया गया था। उन्होंने बताया था कि कैसे लड़कियों को उनकी इच्छा के विरुद्ध इस बर्बरता से गुजरना पड़ता है। इस बर्बरता की असर पीड़िता पर कितना पड़ता है, उसका अंदाजा लगाना लगभग असम्भव है।
इसी संबंध में तेजस्वी ने यह ट्वीट शेयर किया था। जिस महिला के गुप्तांग पर प्रहार हुआ हो, वह कैसे यौन सुख का आनंद उठा सकती है? क्या ये राक्षसी प्रवृत्ति नहीं है? इसके विरुद्ध आवाज उठाने वाला व्यक्ति नारी विरोधी कैसे हुआ? क्या महिलाओं और उनके यौन जीवन संबंधी बातें करना नारी सशक्तिकरण के विरुद्ध है?
सच कहें तो तेजस्वी सूर्या नारी विरोधी नहीं हैं। उल्टे उनकी प्रशंसा करनी चाहिए कि उन्होंने ऐसे संवेदनशील मुद्दे पर बात करने की हिम्मत की। जो काम गला फाड़ फाड़ कर चिल्लाने वाली नारीवादी नहीं कर पाई, वह एक कथित नारीविरोधी पुरुष ने कर दिखाया।
https://twitter.com/shubh19822/status/1252193242919038977?s=20
इस लड़ाई में तो फेमिनिस्टों को सबसे आगे होना चाहिए था। परन्तु ऐसा कुछ भी देखने को नहीं मिला। उल्टे उसी आदमी को लपेटे में लेना शुरू कर दिया, जिसने इस बर्बरता के विरुद्ध आवाज उठाने का साहस किया। वैसे भी, यदि ये वास्तव में नारीवादी होते, तो हिजाब और नकाब जैसे दमनकारी परिधानों का महिमामंडन ही क्यों करते?
अरबी समुदाय के प्रति इन नारिवादियों का प्रेम देखने लायक हैं। कल पूरा दिन उनका इसी में बीत गया कि कैसे तेजस्वी सूर्या को अरबी देशों में महिलाओं पर हो रहे अत्याचार के बारे में बोलने का कोई अधिकार नहीं है। इसीलिए रोहिणी सिंह हो या शहला राशिद, सभी कथित नारीवादी तेजस्वी के परिपक्व विचारों का समर्थन करने के बजाए उसी को अपमानित करते दिखी।
The Modi govt has worked hard to build a strong relationship with Arab countries, even the OIC. Sushma Swaraj even addressed the OIC as EAM. Millions of Indians live and work in Gulf countries. Through their communal tweets, RW trolls are doing some serious diplomatic damage.
— Nidhi Razdan (@Nidhi) April 20, 2020
Even BJP spokespersons.
— Vijaita Singh (@vijaita) April 20, 2020
https://twitter.com/shubh19822/status/1252158535053406209?s=19
मजे की बात तो यह है कि द क्विंट ने फराह कादर से एक लेख लिखवाया था, “यौन सुख के लिए एक भारतीय नारी की तलाश”। मतलब फराह कादर करें तो कूल, तेजस्वी करें तो रूड? सही कहा था मोदीजी ने…
(Insert हिपोक्रेसी की भी सीमा होती है)
सच कहें तो तेजस्वी सूर्या ने भारतीयों पर बड़ा उपकार किया है। हमें खुलकर FGM जैसी कुप्रथाओं के विरुद्ध आवाज उठानी चाहिए। इसके साथ ही वामपंथियों के रूदाली ने एक बार फिर सिद्ध कर दिया कि वे सिर्फ नाम के नारीवादी हैं, असल में वे उतने ही नारी विरोधी हैं जितना कि अपनी महिलाओं पर अत्याचार करने वाला अरबी समाज होता है।