अन्याय करने वाले से ज़्यादा दोष अन्याय पर मौन रहने वाले का होता है। इसी बात को हाल ही में सिद्ध किया है यूरोपीय संघ ने, जिसने वुहान वायरस पर चीन की संलिप्तता को दर्शाती रिपोर्ट से हाथ पीछे खींच लिए। अंतर्राष्ट्रीय मीडिया के विभिन्न सूत्रों के अनुसार चीन ने हाल ही में यूरोपीय संघ पर दबाव डाला ताकि वो वुहान वायरस पर आधारित रिपोर्ट में संशोधन करे और उचित शब्दो का इस्तेमाल करे। चीन की धमकी और दबाव के आगे झुकना यूरोप की कमजोरी को दर्शाता है। इससे ये भी स्पष्ट है ये संघ जब कठोर कदम उठाने का वक्त आता है तो ये डर के मारे अपनेर कदम पींछे खींच लेता है।
टाइम्स में लिखे एक लेख में यूरोपीय संघ के एक राजनयिक Lutz Güllner ने कहा भी कि ‘इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद से चीन ने धमकी देना शुरू कर दिया था’। यूरोपीय संघ चीन की धमकियों के सामने डटकर खड़े होने की बजाय भीगी बिल्ली बन गया है जो बेहद शर्मनाक है।
इस रिपोर्ट में वुहान वायरस से निपटने में चीन की भूमिका पर भी प्रश्न किए गए थे, और चीन के अनुसार इस रिपोर्ट के जरिए उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बदनाम करने की साज़िश कि गई थी। चीनी राजनयिक यूरोपीय संघ के अधिकारीयों को उस रिपोर्ट को हटाने के लिए दबाव बनाने में कामयाब रहे जिसके कारण चीन को डर था कि बीजिंग की छवि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रभावित हो सकती है। पूरीदुनिया को महामारी की आग में धकेलने वाले चीन ने ऐसा करके एक बार फिर साबित कर दिया है कि वो अपने खिलाफ किसी भी प्रोपेगंडा को चलने नहीं देगा जो बीजिंग की छवि को धूमिल करे।
इसी को कहते हैं, रस्सी जल गई पर बल नहीं गया। वुहान वायरस को दुनिया भर में फैलाने के बाद भी चीन की अकड़ जस की तस है। यूरोपीय संघ पर दबाव डालकर जिस तरह से उन्होंने रिपोर्ट संशोधित कराई है, इससे स्पष्ट सिद्ध होता है कि कैसे चीन की क्रूर निरंकुश सत्ता वुहान वायरस पर जवाबदेही से बचने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाने को तैयार है।
हालांकि यह पहली बार नहीं है जब चीन ने किसी अंतरराष्ट्रीय संस्था पर इस तरह से दबाव डालकर वुहान वायरस पर जवाबदेही को कुचलने का प्रयास किया हो। अपनी वीटो पॉवर का दुरुपयोग कर चीन ने पहले ही UN सुरक्षा परिषद के होंठ सिल दिए हैं। इसके अलावा उसने ड्रग डिप्लोमेसी के अन्तर्गत कई आवश्यक मेडिकल उपकरण दुनिया भर के देशों को सप्लाई किए, जिनमें से अधिकतर दोयम दर्जे के निकले।
इसके साथ ही इस महामारी ने ये भी पूरी तरह से सिद्ध कर दिया है कि कैसे यूरोपीय संघ सिर्फ नाम के लिए है, असल में इसका एकता या कुशल कूटनीति से दूर दूर तक कोई नाता नहीं है। यूरोपीय यूनियन 27 देशों का एक समूह है। यह संगठन सदस्य राष्ट्रों को एकल बाजार के रूप में मान्यता देता है एवं इसके कानून सभी सदस्य राष्ट्रों पर लागू होते हैं जो सदस्य राष्ट्र के नागरिकों की चार तरह की स्वतंत्रताएं सुनिश्चित करता है:- लोग, सामान, सेवाएं एवं पूंजी का स्वतंत्र आदान-प्रदान। संघ सभी सदस्य राष्ट्रों के लिए एक तरह से व्यापार, मतस्य, क्षेत्रीय विकास की नीति पर अमल करता है।
परंतु जब जब वैश्विक समस्या आती है तब तब इस संगठन के देशों के बीच आपसी मतभेद बढ़ जाते हैं और यह उत्तरी यूरोप और दक्षिणी यूरोप में बंट जाते हैं। इस बार कोरोना के समय भी यही हुआ है। दक्षिणी यूरोप के देश जैसे इटली, स्पेन और फ्रांस जैसे देशों में कोरोना ने मौत का तांडव मचाया हुआ है जिससे ये देश सामाजिक और आर्थिक दोनों तौर पर तबाही के मुहाने पर खड़े हैं।
क्योंकि यूरोपियन संघ एकल बाजार को मान्यता देता है तो दक्षिणी यूरोप में हुए नुकसान की भरपाई का बोझ उत्तरी यूरोप के देशों जैसे जर्मनी और नीदरलैंड्स पर पड़ने लगा है।
ऐसे में जिस तरह से यूरोपीय संघ ने चीन के दबाव में अपनी रिपोर्ट संशोधित की है, उससे ना सिर्फ चीन की गुंडई सिद्ध होती है, बल्कि यूरोपीय संघ की विश्वसनीयता और जिम्मेदारी पर भी कई सवाल खड़े हो रहे हैं।