दुनियाभर में चीन का इकोनॉमिक बायकॉट शुरु हो चुका है और इससे ड्रैगन में हताशा बढ़ रही है

कोरोना के बाद चीन को कोरोना समझकर दुनियाभर के देश भागेंगे

वुहान वायरस के कारण ऐसा प्रतीत होता है कि चीन ने अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार दी है। अब कई देश आर्थिक तौर पर चीन का बहिष्कार करने के लिए पूरी तरह कमर कस चुके हैं। चूंकि यह महामारी चीन से फैसी है, इसलिए इसमें कोई दो राय नहीं है कि चीन से वैश्विक फैक्ट्री का टैग शत प्रतिशत छिनने वाला है, जिसके लिए ऑस्ट्रेलिया ने अपनी ओर से पूरी तरह कमर कस ली है।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि ऑस्ट्रेलिया के साथ विश्वासघात करने में चीन ने कोई कसर नहीं छोड़ी है। इसके बाद भी चीन चाहता है कि ऑस्ट्रेलिया सब कुछ भूलकर उसकी जी हुजूरी करे। लेकिन ऑस्ट्रेलिया अब चीन की एक सुनने को तैयार नहीं। चीन ने ऑस्ट्रेलिया से जो आवश्यक सुरक्षा उपकरण हड़पे, उसके लिए ऑस्ट्रेलिया में चीनी विरोधी भावनाओं को खूब बढ़ावा से रहा है। स्वयं प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन चाहते हैं कि महामारी खत्म होने पर चीन के विरुद्ध एक निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच होनी ही चाहिए।

इससे चीन काफी बुरी तरह बौखला गया है, और अब वे ऑस्ट्रेलिया को खुलेआम धमकी देने लगा है। चीन ने ऑस्ट्रेलिया को धमकी दी है कि यदि उसने चीन विरोधी भावनाओं पर नियंत्रण नहीं रखा तो फिर चीन उसका आर्थिक बहिष्कार भी कर सकता है।

यूं ही यह कहावत नहीं कही जाती, उल्टा चोर कोतवाल को डांटे। परन्तु ऑस्ट्रेलिया इन धमकियों के ठीक उलट चीन को चुनौती देते हुए मानो कहा, निकल चीन पहली फुरसत में निकल।

चीनी राजदूत ने अभी हाल ही में कहा, चीनी जनता ऑस्ट्रेलिया के व्यवहार से काफी रूष्ट है। जनता का मूड चीन में बद से बदतर  जो रहा है। ऐसे देश हम क्यों जाएं, जो हमारा मित्र ही ना बन सके?”

ऑस्ट्रेलिया भी चुप नहीं बैठा रहा। व्यापार मंत्री साइमन बर्मिंघम ने कहा कि चीन चाहे कुछ कर ले, ऑस्ट्रेलिया अपने बयान से टस से मस नहीं होगा।

चीन को सच में लेने के देने पड़ गए हैं। कोरोना के बाद चीन से कई हज़ार कंपनियाँ अब अपना सारा समेटकर दूसरे देशों में जाने की तैयारी कर रही हैं। अपनी पिछली रिपोर्ट में हमने आपको बताया था कि 1 हज़ार से ज़्यादा कंपनियाँ जल्द ही चीन को छोड़कर भारत में अपने कारखाने स्थापित कर सकती हैं।

हालांकि, सिर्फ भारत ही नहीं है जो इन कंपनियों का सबसे पसंदीदा ठिकाना बना हुआ है, बल्कि बड़ी संख्या में ये कंपनियाँ दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में भी जा रही हैं, और वियतनाम इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। वियतनाम ने अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड वॉर का सबसे ज़्यादा फायदा उठाया था और अब कोरोना के समय में भी चीन से बाहर जाने वाली कंपनियों का सबसे ज़्यादा पसंदीदा इनवेस्टमेंट डेस्टिनेशन वियतनाम ही बना हुआ है। ऐसे में चीन से बाहर जाने वाली कंपनियों को लुभाने के लिए अब भारत और वियतनाम आमने सामने आ चुके हैं।

शायद इसीलिए ऑस्ट्रेलिया भी दक्षिण चीन सागर में चीन को आँख दिखाने के लिए अपने जंगी जहाजों को दक्षिण चीन सागर में भेज चुका है। इतना ही नहीं, ये दोनों देश मिलकर इसी हफ्ते दक्षिण चीन सागर में युद्धाभ्यास भी कर चुके हैं।

इस युद्धाभ्यास में तीन अमेरिकी और एक ऑस्ट्रेलिया के जंगी जहाज ने हिस्सा लिया था। अमेरिका ने चीन को धमकी जारी करते हुए कहा था कि दक्षिण चीन सागर में उसकी तानाशाही नहीं चलेगी। बीते बुधवार को अमेरिकी विदेश सचिव माइक पोंपियों ने कहा था।

अमेरिका दक्षिण चीन सागर में चीन की गुंडागर्दी की निंदा करता है। हम चीन द्वारा ताइवान पर दबाव बनाने और वियतनाम की वेसेल्स को निशाना बनाने की भी निंदा करते हैं”।

ये सब घटनाएँ अपने आप में बहुत गंभीर और बड़ी हैं और ये सब पिछले एक महीने के दौरान ही घटी हैं। इसका मतलब स्पष्ट है – अब चीन चाहकर भी अपनी गुंडागर्दी के बल पर दुनिया को नहीं खुका सकता, और उसके दिन अब लद चुके हैं।

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