पाकिस्तान-बांग्लादेश में शुक्रवार की नमाज़ से फैल रहा कोरोना, रोकने गयी पुलिस पर हुआ ताबड़-तोड़ प्रहार

भारत के पश्चिम और पूर्व में कभी भी कोरोना-विस्फोट हो सकता है

पूरी दुनिया में कोरोना के पॉज़िटिव मामलों संख्या एक मिलियन पार कर चुकी है और सभी डॉक्टर सोशल डिस्टेन्सिंग को बढ़ावा देने का सलाह दे रहे हैं। परंतु एक वर्ग ऐसा है कि उन्हें सोशल डिस्टेन्सिंग का S भी नहीं पता है और अगर पता है तो जान बुझ कर नजरंदाज कर रहे हैं। यह वर्ग को एक साथ नमाज पढ़ने के लिए पुलिस तक को नहीं छोड़ रहा है और हाथापाई पर उतर रहे हैं। पाकिस्तान के कराची के लियाकतबाद इलाके में शुक्रवार की नमाज के दौरान पुलिस और अन्य लोगों के बीच झड़प हो गई। घटना के बाद पुलिस ने मस्जिद के मौलवी सहित सात लोगों को लॉकडाउन का उल्लंघन करने के आरोप में गिरफ्तार किया है। यह घटना सरकार की ओर से तीन घंटे के लिए लगाए गए पूर्ण लॉकडाउन के दौरान हुई। यह घटना सिर्फ पाकिस्तान में ही नहीं हो रही है बल्कि बांग्लादेश और भारत में भी हो रही है। तबलीगी जमात के कांड तो सभी को पता ही है। अब यह आंकड़ा सामने आ रहा है कि भारत में जितने भी पॉज़िटिव केस आए हैं उनमें से लगभग 30 प्रतिशत पॉज़िटिव केस तबलीगी से ही है।

दरअसल, लाख मना करने के बावजूद कई देशों में लोग नमाज पढ़ने के लिए मस्जिद में जा ही रहे हैं और किसी भी प्रकार का सोशल डिस्टेन्सिंग तो उन्हें समझ ही नहीं आ रहा है कि ये होता क्या है!!

कोरोना वायरस के फैलते संक्रमण को देखते हुए सिंध सरकार ने शुक्रवार को 12 बजे से तीन बजे तक पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा की थी। सिंध की तरह ही पाकिस्तान के अन्य प्रांतों में भी शुक्रवार की नमाज पर रोक लगा दी गई थी। लेकिन नामजियों को इससे क्या। जब मस्जिद के एक व्यक्ति को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस पहुंची तब पुलिस की गाड़ी को निशाना बना कर लोगों ने पत्थर फेंके। मामला इतना गरमा गया कि कुछ स्थानीय लोगों ने कुछ पुलिस वालों को अपने घरों में शरण दी और उन्हें उपद्रवियों से बचाया। आखिर यह लॉक डाउन किसके लिए लगाया गया था? आसान जवाब है लोगों को वुहान वायरस से बचाने के लिए लेकिन नमाज पढ़ने वालों को यह बात समझ ही नहीं आ रही है।

पाकिस्तान में कई धार्मिक गुरु लोगों से लॉकडाउन के नियमों का पालन ना करने और मस्जिदों में जमा होने का आग्रह कर रहे हैं। मुफ्ती मुनीब उर रहमान ने तो टीवी पर लोगों को संदेश दिया कि मजहब ही उन्हें इस मुश्किल घड़ी में बचाएगा, इसलिए उन्हें मस्जिद जाना बंद नहीं करना चाहिए। मुफ्ती मुनीब उर रहमान पाकिस्तान की उस कमिटी के अध्यक्ष हैं जो ईद और रमजान जैसे महत्वपूर्ण पर्वों की तारीख तय करती है। बांग्लादेश में भी शुक्रवार हो यही देखने को मिला। Reuters की रिपोर्ट के अनुसार र्स  कई लोगों ने सरकार द्वारा लोगों से घर पर रहने की अपील के बावजूद मस्जिदों में ही नमाज अदा की। बांग्लादेश के शीर्ष धार्मिक निकाय इस्लामिक फाउंडेशन ने कहा है कि बुजुर्ग लोगों और बुखार या खांसी वाले लोगों को घर पर प्रार्थना करनी चाहिए। यहाँ ध्यान देने वाली बात है कि इस निकाए ने मस्जिद में नमाज पर रोक नहीं लगाई है यानि बुजुर्गों को छोड़ कर सभी आ सकते हैं।

पाकिस्तान और बांग्लादेश में लगातार हो रहे जमा हो रही भीड़ और फिर नमाज पर रोक लगाने के बाद हुई हाथापाई से यह समझना मुश्किल नहीं है कि लोग अपने स्वास्थ्य से ऊपर अपने धर्म हो ही रख रहे हैं। इसी तरह धर्म को बढ़ावा देने का नतीजा मलेशिया, ईरान और दक्षिण कोरिया देख चुका है और भारत में तबलीगीओं के कारण देखा जा रहा है। भारत में कोरोना से होने वाले कुल केस में से 1000 से अधिक तो निज़ामुद्दीन के मरकज में शामिल होने से फैला है। बावजूद इसके ये सुधरने का नाम नहीं ले रहे हैं और उल्टे रोकने वाली पुलिस पर ही हमला कर रहें है।  ऐसा लगता है कि ये कभी सुधरने वाले नहीं है। ऐसे लोग न सिर्फ समाज को संक्रमित कर रहे हैं बल्कि अपने घर वालों को भी।

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