कोरोना के मामले बढ़ते जा रहे हैं, अभी तक न कोई दवा बनी है और न ही वैक्क्सिन। लेकिन दो दिन पहले अमेरिका ने भी भारत से मदद मांगी थी और कहा था कि भारत हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वाइन (Hydroxychloroquine) पर लगा बैन हटा दे। अमेरिका के राष्ट्रपति कई दिनों से कोरोना के खिलाफ हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वाइन का प्रचार कर रहे हैं। हालांकि, यह भी सिद्ध नहीं हुआ है कि दवा कितनी कारगर है लेकिन कई देशों ने भारत से इस दवा की मांग की है। क्योंकि भारत ही इस दवा का सबसे बड़ा एक्स्पोर्टर है। लेकिन जैसे ही हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वाइन की मांग बढ़ी वैसे ही भारत विरोधी तत्वो ने इस दवा के खिलाफ भी अभियान शुरू कर दिया है। विश्व भर की मीडिया, BBC से लेकर वनशिंगटन पोस्ट तक सभी ने अब इस दवा के खिलाफ अभियान आरंभ कर दिया है। कई तरह के इंटरव्यू छापे जा रहे हैं जिससे इस दवा की क्रेडिबिलिटी पर ही सवाल खड़े किये जाने लगे।
वॉशिंग्टन पोस्ट ने एक लेख प्रकाशित करते हुए लिखा “क्यों ट्रम्प एक 86 वर्ष पुराने दवा को कोरोना वायरस के खिलाफ गेम चेंजर कह रहे हैं।” इस मीडिया हाउस ने National Institute for Allergy and Infectious Diseases के प्रमुख एंथनी एस. फौसी के हवाले से लिखा है कि उन्होंने ने भी इस दवा के गेम चेंजर होने खंडन किया है।
वहीं BBC ने भी इसी तरह की एक रिपोर्ट प्रकाशित की। उसमें Lancet medical journal का हवाला देते हुए इस दवा के बारे में चेतावनी लिखी गयी कि अगर खुराक को सावधानी से नियंत्रित नहीं किया गया तो हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वाइन के खतरनाक दुष्प्रभाव हो सकते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने कहा कि उनके पास कोई निश्चित सबूत नहीं है। वहीं VOX ने एक लेख प्रकाशित किया है जिसमें इस दवा के दुष्परिणामों को ही बताया गया है और यह कहने की कोशिश की गयी है कि इस दवा के ऊपर अभी शोध चल रहा है इसीलिए इसे देना खतरे से खाली नहीं है। VOX ने लिखा है कि कोविड -19 का इलाज करने के लिए हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन का उपयोग के प्रति साक्ष्य कमजोर हैं। इन सभी का यही कहना है कि इस दवा को अभी अप्रूव नहीं किया गया है लेकिन फिर भी अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प इस दवा का प्रचार क्यों कर रहे हैं।
वहीं न्यू यॉर्क मैगजीन ने लिखा है कि शोधकर्ताओं ने इसकी प्रभावकारिता में संदेह व्यक्त किया है। वहीं यह भी लिख दिया है कि ट्रम्प के इस दवा के बारे में दावा करने के बाद lupus के रोगियों के लिए दवा नहीं मिल पा रहा है।
गार्जियन की रिपोर्ट के मुताबिक, चीन में एक मरीज को यह दवा दी गई, जिससे उसकी तबीयत और खराब हो गई। वहीं चार रोगियों में दस्त होने की शिकायत मिली। यूरोपीय दवा एजेंसी के अनुसार, कोरोना वायरस के रोगियों को हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वाइन नहीं दिया जाना चाहिए, जब तक कि कोई इमरजेंसी न हो।
Stat news ने तो ट्रम्प के दावे पर फ़ैक्ट चेक कर दिया था।
एक तरह से देखा जाए तो सभी ने अप्रत्यक्ष रूप से भारत का ही विरोध किया है क्योंकि भारत इस दवा का सबसे बड़ा एक्सपोर्टर है। फ्रांस में 40 कोरोनो वायरस रोगियों को हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दिया गया था। उनमें से आधे से अधिक तीन से छह दिनों में अच्छा फील करने लगे। अध्ययन ने सुझाव दिया कि मलेरिया रोधी दवा Sars-CoV-2 से संक्रमण को धीमा कर सकती है। यह वायरस को शरीर में प्रवेश करने से रोकता है।
डॉक्टरों समेत वैज्ञानिकों ने अभी इस बारे में कोई भी पुख्ता जानकारी नहीं होने की बात कही है। इतना जरूर है कि जहां कोरोना का संक्रमण ज्यादा है, वहां इस दवा को लेने की इजाजत जरूर दी गई है। पिछले दिनों भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद ने SARS-CoV-2 वायरस से होने वाली बीमारी के उपचार के लिए हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वाइन के उपयोग का सुझाव दिया था।
इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च के महानिदेशक बलराम भार्गव ने हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वाइन की कोरोना वायरस संक्रमण के संदिग्ध या संक्रमित मरीजों की देखभाल करने वाले स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं, जिनमें डॉक्टर, नर्स, सफाई कर्मचारी, हेल्पर आदि के इलाज के लिए सिफारिश की थी।
बता दें कि भारत, हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वाइन (HCQ) का दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक है, जिसने वित्तीय वर्ष 2019 में 51 मिलियन डॉलर मूल्य की दवा का निर्यात किया था। यह देश से 19 बिलियन डॉलर फार्मा के क्षेत्र में होने वाले निर्यात का एक छोटा हिस्सा है।
हालांकि, वित्तीय वर्ष 2020 के फरवरी तक निर्यात 36 मिलियन डॉलर तक गिर गया था। लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के इस दवा के लिए प्रचार करने के कारण, इस सस्ती दवा की वैश्विक मांग अचानक बढ़ गई है। ब्राजील और सार्क देशों ने भारत से दवा की मांग की है। ऐसे अब पूरा विश्व इस दवा के लिए भारत की ओर देख रहा है। इसी के मद्दे नजर भारत ने इस दवा के निर्यात से प्रतिबंध हटा लिया है, लेकिन ग्लोबल मीडिया ने अपने भारत विरोधी एजेंडे के लिए लोगों का जीवन ताक पर रख कर इस दवा के खिलाफ अभियान चला रहे हैं।