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पश्चिमी देशों के राइटविंग में मूर्ख भरे हैं, ट्रम्प, बोलसोनारो और जॉनसन उन्हीं में से एक हैं

अपने नागरिकों को मौत के मुंह में धकेलने वाले इन तीन वैश्विक नेताओं की पीएम मोदी के साथ तुलना हो ही नहीं सकती

Vikrant Thardak द्वारा Vikrant Thardak
30 April 2020
in विश्व
कोरोना
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कोरोनावायरस ने दुनिया में तबाही मचाने के साथ ही यह भी स्पष्ट कर दिया कि कौन सा नेता अपने देश को किसी आपदा से बचाने में कितना सक्षम है। आज अमेरिका, ब्राज़ील, UK और यूरोप के कई देश कोरोना की भयंकर तबाही से जूझ रहे हैं। भारत में कोरोना इसलिए काबू में हैं क्योंकि यहाँ भारत के PM नरेंद्र मोदी ने समय रहते कदम उठा लिए। हालांकि, पश्चिमी देशों के कई अति-दक्षिणपंथी नेताओं ने इस वायरस के खतरे को कम करके आँका, जिसकी वजह से इन नेताओं ने समय रहते कोई कदम नहीं उठाया और आज ये देश चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं। अमेरिका, ब्राज़ील और यूके इन देशों के सबसे बड़े उदाहरण हैं जहां अति-दक्षिणपंथी नेताओं ने अपने नागरिकों को मौत के मुंह में धकेल दिया।

उदाहरण के लिए UK में प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन शुरू में कठोर कदम उठाने में आनाकानी करते रहे जबकि बाकी यूरोप के कई देश पहले ही ऐसे कदम उठा चुके थे। जब पूरी दुनिया सबको social distancing अपनाने की बात कर रही थी, तब बोरिस कोरोना मरीजों से हाथ मिलाने की बात कर रहे थे। मार्च को बोरिस जॉनसन ने अपनी एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था, ‘मैं लगातार हाथ मिला रहा हूं। पिछली रात में अस्पताल में था, जहां मुझे लगता है कि कुछ कोरोना वायरस के मरीज़ भी थे और मैंने हर किसी से हाथ मिलाया। आपको ये जानकर अच्छा लगेगा कि मैं आगे भी हाथ मिलाता रहूंगा।’ उसके कुछ दिन बाद ही बोरिस को कोरोना पॉज़िटिव पाया गया था।

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Over the last 24 hours I have developed mild symptoms and tested positive for coronavirus.

I am now self-isolating, but I will continue to lead the government’s response via video-conference as we fight this virus.

Together we will beat this. #StayHomeSaveLives pic.twitter.com/9Te6aFP0Ri

— Boris Johnson (@BorisJohnson) March 27, 2020

हद तो तब हो गयी जब बोरिस कोरोना से ठीक होने के बाद दोबारा यह बोले कि उन्हें अब भी कोई हाथ मिलाने से नहीं रोक सकता। हाल ही में समाचार एजेंसी रॉयटर्स से बात करते हुए उन्होंने कहा ‘मैं बताना चाहता हूं कि मैं हाथ मिला रहा हूं। मैं दूसरी रात एक अस्पताल में था, जहां वास्तव में कुछ कोरोना वायरस के मरीज थे और मैंने हर किसी के साथ हाथ मिलाया, आपको यह जानकर खुशी होगी और मैं हाथ मिलाता रहूंगा…”। बोरिस के इसी ढीले-ढाले रवैये का यह असर था कि UK में 23 मार्च को जाकर लॉकडाउन किया गया, इससे पहले UK की सरकार हर्ड इम्यूनिटी को ही अपनाने पर विचार कर रही थी। बता दें कि शुरू में यूके में सरकार ने इस वायरस को रोकने के लिए ज़रूरी कदम उठाने की बजाय इसे अपनी 60 प्रतिशत जनसंख्या में फैलने को अनुमति दे दी थी,  इस अनुमति के पीछे का तर्क यह था कि इससे लोगों में इस बीमारी के प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी। हालांकि, जब यूके सरकार की कड़ी आलोचना की गयी, तो सरकार ने अपनी इस योजना से हाथ पीछे खींच लिए। अब UK में विपक्षी पार्टी इस बात पर ज़ोर दे रही हैं कि एक बार जब यह महामारी खत्म हो जाएगी तो वे बोरिस के खिलाफ स्वतंत्र जांच की मांग करेंगे।

यही हाल अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का रहा। अमेरिका में आज कोरोना के कुल मामले 11 लाख होने को हैं, और यह डोनाल्ड ट्रम्प की सबसे बड़ी नाकामयाबी है। शुरुआत में ट्रम्प ने जोर देकर कहा था कि अमेरिका को कोरोना से डरने की कोई ज़रूरत नहीं है और चीन से निकला यह वायरस अमेरिका तक कभी पहुंच ही नहीं पाएगा, लेकिन आज जो कुछ अमेरिका में हो रहा है, वह शायद ट्रम्प ने भी कभी नहीं सोचा होगा। आज हालात इतने बेकाबू हो चुके हैं कि ट्रम्प चाहकर भी कुछ कर नहीं पा रहे हैं। अमेरिका में जब राष्ट्रपति ट्रम्प से पूछा गया कि क्या वे भी देश में लॉकडाउन के पक्ष में हैं, तो ट्रम्प ने साफ कहा “किसी बीमारी का इलाज़ उस बीमारी से भी खतरनाक नहीं हो सकता”। अमेरिका में सभी हेल्थ एक्सपर्ट्स इसी बात की चिंता में हैं कि ट्रम्प आखिर देश में लॉकडाउन घोषित क्यों नहीं कर रहे हैं?

ट्रम्प एक बिजनेसमैन है और शायद इसी कारण से वे बार-बार ऐसे बयान दे रहे हैं ताकि देश में व्यापारिक वातावरण अच्छा बना रहे। उदाहरण के लिए इस महीने की शुरुआत में उन्होंने एक बेहद गैर-जिम्मेदाराना बयान देते हुए कहा था कि वे चाहते हैं जल्द ही खेल दोबारा शुरू हो जाएं। इससे पहले वे देश में सभी कंपनियों को जल्द ही दोबारा सही से काम करने को लेकर भी इच्छा जता चुके हैं। वे जैसे भी करके बाज़ार को शांत करना चाहते हैं लेकिन इस जद्दोजहद में अमेरिका के लोग अपनी जान गंवाते जा रहे हैं।

इन दो अति-दक्षिणपंथी नेताओं के अलावा ब्राज़ील के राष्ट्रपति जेयर बोलसोनारो भी ऐसे एक नेता हैं, जिन्होंने जमकर इस बीमारी को कम करके आँका। बोलसोनारो कोरोनावायरस को हल्की सर्दी-खांसी बोलकर उसके खतरे को कम कर आंक रहे थे और अब हालत यह है कि यहां अस्पतालो की स्थिति बेहद दयनीय है जहां Refrigerator truck में शव के ऊपर शव रखे हैं और बुलडोजर मास ग्रेव (कब्र) बनाने में लगा दिए गए हैं। ब्राज़ील के कोरोना के कुल मामले 80 हज़ार के आसपास पहुँच गए हैं जिनमें से लगभग 5 हज़ार लोगों की मौत हो चुकी है। जब ब्राज़ील राज्यों ने कोरोना की रोकथाम के लिए लॉकडाउन लागू किया तो बोलसोनारो ने सभी राज्यों से इस लॉकडाउन को हटाने की मांग कर डाली। इतना ही नहीं, जो लोग इन लॉकडाउन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे थे, उन लोगों का भी बोलसोनारो ने समर्थन किया।

देखा जाये तो दुनिया के ये सभी अति-दक्षिणपंथी नेता कोरोना को रोकने में पूरी तरह असफल रहे हैं। इन्होंने अपनी मूर्खता से लाखों लोगों की जिंदगियों को खतरे में डाल दिया। हद तो यह है कि ये नेता अब भी कोई सीख लेने से इंकार कर रहे हैं। अमेरिका में अब भी राष्ट्रीय स्तर पर लॉकडाउन लागू नहीं किया गया है। UK में मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं और ब्राज़ील में स्थिति बद से बदतर हो रही है। इधर भारत में पीएम मोदी ने सभी वैश्विक नेताओं को पीछे छोड़ भारत को इस महामारी से बचाने में अब तक बड़ी कामयाबी हासिल की है। अमेरिका जैसे देशों के पास संसाधनो की कोई कमी नहीं है, अगर कमी है तो वह पीएम मोदी जैसे विज़नरी नेता की, जिसकी वजह से अमेरिका में इतनी तबाही देखने को मिली है। दुनिया के इन सभी नेताओं को आज पीएम मोदी से सीख लेने की आवश्यकता है।

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