चीन लगातार दुनिया के सामने यह दावा कर रहा है कि कोरोनावायरस अब उसके यहाँ से हमेशा के लिए जा चुका है और लोग इसकी खुशियाँ मना रहे हैं, दूसरी तरफ चीन दुनिया को बड़ी मात्रा में मेडिकल सप्लाई और टेस्टिंग किट्स बेच-बेचकर अच्छा खासा मुनाफा भी कमा रहा है, जिसको लेकर चीन में काफी उत्साह है, लेकिन चीन का यह उत्साह जल्द ही ठंडा पड़ने वाला है। ऐसा इसलिए क्योंकि सभी देश बड़े पैमाने पर चीन से अपनी कंपनियों को बाहर निकालने का विचार कर रहे हैं। जापान पहले ही इसकी घोषणा कर चुका है, अब दक्षिण कोरियन और अमेरिकी कंपनी भी चीन से बाहर जाना चाहती हैं और भारत सरकार इसी मौके की तलाश में है।
Trade Promotion Council of India के मुताबिक भारत सरकार अब अपने आप को चीन के अच्छे विकल्प के तौर पर प्रस्तुत करने की कोशिश में है। भारत सरकार लगातार उच्च-स्तरीय बैठकें कर यह सुनिश्चित करने में लगी हैं कि पूर्वी एशियाई देशों में उमड़े चीन विरोधी गुस्से को कैसे अपने फायदे में इस्तेमाल किया जाए। इसके अच्छे परिणाम दिखने शुरू भी हो चुके हैं। दरअसल, अब दक्षिण कोरिया और अमेरिका की कंपनियाँ चीन से अपना सारा सामान समेटकर भारत आने पर विचार कर रही हैं।
इकोनोमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट की माने तो लगभग 200 अमेरिकी कंपनियाँ अपनी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स को भारत शिफ्ट कर सकती हैं। US-India Strategic and Partnership Forum के अध्यक्ष मुकेश अघी के मुताबिक अमेरिका की ये कंपनियाँ लगातार इस मामले पर मंथन कर रही हैं कि कैसे भारत में निवेश कर भारत को चीन के समक्ष एक अच्छे विकल्प के तौर पर उबारा जा सकता है। मुकेश अघी ने यह भी कहा कि भारत को जल्द से जल्द देश में व्यापार को आसान करने के लिए और भी ज़्यादा सुधारों को अंजाम देना चाहिए।
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक कोरिया की कंपनी भी चीन को छोड़कर भारत में आने को इच्छुक हैं। इसको लेकर चेन्नई में मौजूद कोरियन कोंसुलेट के साथ कई कोरियन कंपनियां लगातार संपर्क बनाए हुए हैं। कोरियन कांसुलेट के डेप्युटी काउंसल जनरल Yup Lee के मुताबिक भारत सरकार चाहती है कि पॉस्को और हुंडई स्टील भारत के आंध्र प्रदेश में अपनी फ़ैक्टरी लगाए। सूत्रों के मुताबिक उन्हें 5 हज़ार एकड़ भूमि और पोर्ट कनेक्टिविटी चाहिए। ली के मुताबिक और भी कई कोरियन कंपनियाँ जल्द से जल्द भारत आना चाहती हैं, लेकिन वुहान वायरस की वजह से अभी इसमें कुछ देरी हो सकती है, इसके साथ ही अभी वैश्विक बाज़ार में कारों की डिमांड भी कम ही है।
इसी तरह देश में कई एक्सपर्ट्स का मानना है कि सरकार को चीन से बाहर आने वाली जापानी कंपनियों को लुभाने के लिए भी जल्द से जल्द कदम उठाने चाहिए ताकि वे मलेशिया या दक्षिण पूर्व एशिया में ना जाकर भारत में अपना कारोबार स्थापित कर सकें।
कुल मिलाकर अभी सभी देश चीन को सबक सिखाने के मूड में है जिसके चलते चीन में मौजूद सभी कंपनियों को यह आभास हो चुका है कि उनका जल्द से जल्द चीन से बाहर निकलना ही सही रहेगा। अभी कुछ दिनों पहले ही भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जापान के PM शिजों आबे के बीच फोन पर बातचीत हुई थी जिसमें दोनों देशों के बीच कोविड-19 के दौर में आर्थिक सहयोग बढ़ाने पर चर्चा हुई थी। बता दें कि चीन में काम करने वाली जापानी कंपनियों को वहां से अपना बोरिया-बिस्तर समेट कर जापान में उत्पादन शुरू करने के लिए आबे सरकार ने 2 अरब डॉलर का फंड दिया है। जापान ने चीन से बाहर किसी अन्य देश में जाकर उत्पादन करने पर उन जापानी कंपनियों को 21.5 करोड़ डॉलर की सहायता का प्रस्ताव रखा है। भारत सरकार अब इन्हीं कंपनियों को भारत लाना चाहती है और अगर वह अपनी कोशिशों में सफल रहती है तो जल्द ही चीन की जगह भारत दुनिया का मैनुफेक्चुरिंग हब बन सकता है।