लगता है चीन द्वारा लगाई गई आग उसी के लिए भारी पड़ गई है। वुहान वायरस पर पहले ही विश्व भर के देशों का आक्रोश झेल रहे चीन के लिए अब उसका पीआर स्टंट भी उसी पर भारी पड़ रहा है। कोई भी व्यक्ति उसकी बातों और उसके सामान पर विश्वास करने को तैयार नहीं हैं। मेड इन चाइना का जो तंज भारत में काफी मशहूर था, वह आज विश्व भर में गूंज रहा है।
जैसे ही वुहान वायरस विश्व भर में फैलने लगा, और शक की सुई चीन की ओर मुड़ने लगी, तो अपनी छवि पर आंच ना आने देने के लिए चीन अपने मामलों की संख्या दुनिया से छुपाने लगा, और जरूरतमंद देशों को मास्क, PPE यानी सुरक्षा उपकरण और टेस्टिंग किट भारी मात्रा में बेचने लगा।
चीन अपने स्वभाव अनुसार एक विशाल प्रोपगेंडा वॉर को अंजाम दे रहा था, और अपने आप को विश्व के मसीहा के रूप में चित्रित करना चाहता था। चीन ने पिछले महीने लगभग चार अरब मास्क बेचे, ये जानते हुए भी कि कोई भी उसपर आंख मूंदकर विश्वास नहीं करेगा।
इस फोटो में जिस प्रकार से यह व्यक्ति चीनी झंडे को सुरक्षा उपकरण पर लगा रहा है, उससे आप समझ सकते हैं कि कैसे बीजिंग जी जान से इस पीआर कैंपेन में लगा है।
पर किसी व्यक्ति ने खूब कहा है, एक गधे को चाहे कितना भी सजा लो, वो घोड़ा नहीं बन जाएगा। चीन का यह पीआर कैंपेन औंधे मुंह गिर पड़ा, और धीरे-धीरे उसके घटिया उपकरणों की सच्चाई सबके समक्ष उजागर होने लगी। विश्व को इस बात पर बिल्कुल भी विश्वास नहीं है कि जिस वायरस ने अमेरिका, स्पेन, यूके और जर्मनी सहित कई देशों में त्राहिमाम मचा रखा है, उससे भला China को कुछ विशेष नुकसान कैसे नहीं हुआ। या यूँ कहें, चीन के सामान की घटिया क्वालिटी के कारण ये अब पूरे विश्व में बदनाम हो गया है और अब मेड इन चाइना टैगलाइन पूरे विश्व में इस्तेमाल किया जा रहा है जो खराब क्वालिटी को दर्शाता है।
डोनाल्ड ट्रंप ने तो ‘वुहान वायरस’ को ‘चाइनीज वायरस’ कहने की शुरुआत की थी, परन्तु अब कई लोग वुहान वायरस को मेड इन चाइना वायरस के नाम से संबोधित कर China पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से तंज कस रहे हैं। इस संबंध में पामेला जैलर ट्वीट करती हैं, “अमेज़न, आप जो भी वस्तु बेच रहे हो, उसमें चीनी उत्पाद पर मेड इन चाइना अवश्य लिखें। कई सामान ऐसे होते हैं, कि जब तक हाथ में आए नहीं, तब तक पता नहीं चलता कि यह मेड इन चाइना है। ये धोखेबाजी अब और नहीं चलेगी।”
https://twitter.com/PamelaGeller/status/1250489039431634944?s=20
चीन द्वारा भेजी गई मेडिकल इक्विपमेंट दुनिया भर में धड़ल्ले से रिजेक्ट हो रही है। इसका प्रारंभ हुआ स्पेन और चेक रिपब्लिक से, जिन्होंने China के ढोंग को उजागर करते हुए उनके टेस्ट किट को दोयम दर्जे का बताया। स्थिति इतनी खराब थी कि चीन ने हो 640000 टेस्ट किट स्पेन को भेजे थे, उनमें से केवल 30 प्रतिशत ही कामचलाउ निकले।
फिर क्या था, एक के बाद एक कई देशों ने चीन के घटिया माल को रिजेक्ट करना शुरू कर दिया। हॉलैंड ने जब पाया था कि 13 लाख मास्क में से आधे से ज़्यादा घटिया दर्जे के निकले, तो उन्होंने बाकी का कंसाइनमेंट तुरंत वापिस भेज दिया। पाकिस्तान को जो मास्क चीन ने भेजे थे, उसके बारे में जितना कम बोलें उतना ही अच्छा!
भारत भी चीन के घटिया माल से अछूता नहीं रहा। China से भारत ने 170000 PPE किट मंगाए, जिनमें से लगभग 63000 किट दोयम दर्जे के निकले। इन किट्स को डीआरडीओ भेजा गया था, जहां ये सेफ्टी चेक में ही फुस्स सिद्ध हुए।
बात सिर्फ यहीं पर खत्म नहीं होती। ऐसा भी सुनने में आ रहा है कि चीन में नए मामलों की बढ़ोत्तरी को दबाया जा रहा है, और ऐसे में चीन से किसी भी प्रकार का सम्बन्ध रखना मृत्यु को निमंत्रण देने के समान है।
वहीं बीजिंग को अभी भी केवल और केवल धनोपार्जन सर्वोपरि दिख रहा है। हाल ही में China के कस्टम्स डिपार्टमेंट ने चीन में स्थित अमेरिकी कम्पनियों द्वारा अमेरिका को भेजे जा रहे राहत सामग्री में अड़ंगा डालने का प्रयास किया था।
ऐसी घटनाएं इस बात को स्पष्ट करती हैं कि बीजिंग का मास्क डिप्लोमेसी पूरी तरह से असफल सिद्ध हुआ है। जैसे जैसे ड्रैगन के घटिया मेडिकल उपकरण दुनिया भर में रिजेक्ट हो रहे हैं, वैसे ही चीन भी पतन की ओर अग्रसर हो रहा है।