भारत के मुसलमानों में अन्य समुदायों की तुलना में बहुत अधिक संक्रमण दर है। इसके पीछे प्राथमिक कारण मध्य पूर्वी देशों में रहने वाले लाखों मुसलमान हैं जो भारत में अपने परिवारों में लौटते समय कोरोना वायरस लाए थे, और तब्लीगी जमात घटना।
तब से लेकर अगर आज तक देखा जाए तो रोज कोरोना के नए मामलों में से 50 प्रतिशत से अधिक मामले तबलीगी से जुड़ा है। इस तरह से रोज़ बढ़ते हुए मामलों से एक सवाल अवश्य सामने आता है कि आखिर तबलीगी जमात के जमातियों में या फिर मुस्लिमों में संक्रमण दर इतना अधिक कैसे है? आखिर क्या कारण है कि मुस्लिमों और जामतियों का कोरोना वायरस से एक बार सामना होने के बाद वे इससे ग्रसित हो रहे हैं?
केरल में अधिकांश मामले मुस्लिमों से जुड़े थे, जो संयुक्त अरब अमीरात से लौटे थे। बिहार के सीवान में एक ही परिवार के 23 लोगों को कोरोना था। सवाल यह उठता है कि मुसलमानों में संक्रमण दर ज्यादा क्यों है? वे इतनी आसानी से प्रभावित क्यों हो रहे हैं? वैसे कोरोना के फैलने के पीछे तीन प्रमुख कारण हैं। पहला, एक संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में लगातार आने से कैसे हो सकता है; दूसरा, संक्रमित व्यक्ति के साथ शारीरिक निकटता है; और तीसरा इम्युनिटी है।
मरकज के बारे में कई रिपोर्ट्स आ चुकी हैं कि जिस तरह से मरकज में मुस्लिम रहते हैं उससे कोरोना जैसी बीमारी का फैलना कोई हैरानी की बात नहीं है। सबसे प्रमुख कारण है इनका गंदा रहन-सहन। एक ही थाली में बारी-बारी से 20-25 लोगों का खाना, आम बाथरूम इस्तेमाल करने जैसी आदत ने कोरोना को बड़ी संख्या में फैलने का मौका दिया।
स्वराज्य मैगजीन की एक रिपोर्ट के अनुसार एक जमाती ने यह बताया था कि वे एक बड़ी थाली ले लेते हैं और फिर एक साथ 4-5 लोग खाना खाते हैं, और फिर जब पहले ग्रुप का खाना खत्म हो जाता है तो उसी बर्तन में दूसरा ग्रुप खाने बैठ जाता है। इसी तरह से एक ही बर्तन में 6-7 ग्रुप खाना खाता है।
यह सोचने वाली बात है कि एक ही बर्तन में 30 से अधिक लोग खाना खाते हैं। अगर एक को भी कोरोना है तो इस वायरस का फैलना निश्चित है।
यही नहीं उसने बताया कि मरकज में बाथरूम भी कम ही होते हैं और यह किसी को पता नहीं होता है कि कितने लोग शामिल होने वाले हैं क्योंकि जमाती आते-जाते रहते हैं। उसने आगे बताया कि अगर किसी को बाथरूम जाना है तो उसे एक से आधे घंटे इंतज़ार करना ही पड़ता है, इतनी भीड़ होती है। उसने यह भी बताया कि मरकज में बाथरूम इंडियन स्टाइल का होता है जो हमेशा दुर्गंधित रहता है।
इसी से मरकज़ में रहने वालों की गंदगी का अंदाजा लगाया जा सकता है। ऐसे हालात में तो किसी को भी 100 बीमारियाँ होने का शत प्रतिशत चांस बढ़ जाएगा। टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार दिल्ली स्वास्थ्य सेवा की DG डॉ नूतन मुंडेजा का कहना है कि मरकज़ वाले एक ही बर्तन और बाथरूम का इस्तेमाल करते थे तो कोरोना का फैलना कोई हैरानी की बात नहीं है।
तेलंगाना के उस व्यक्ति ने यह भी बताया कि एक छोटा सा पानी से भरा स्विमिंग पूल जैसा स्थान होता है जहां वे सभी वजू करते हैं। मुस्लिमों में वजू नमाज से पहले की जाने वाली सफाई की प्रक्रिया को कहते हैं जिसमें नमाज़ी अपना अपना चेहरा, हाथ और पैर धोता है।
ऐसे रहन सहन से कोरोना जैसी संक्रमण वाली बीमारी फैलने का खतरा 200 गुना बढ़ जाएगा। यह भी देखा गया है कि गरीब मुस्लिम बस्तियों में रहते हैं जहां पर साफ सफाई का नामों निशान नहीं होता है। ऐसे क्षेत्रों में एक भी कोरोना का मरीज बिना बताए पंहुच गया तो वहाँ कोरोना को पूरी बस्ती में फैलने में एक दिन भी नहीं लगेगा। सच्चर समिति की रिपोर्ट में भी यही कहा गया था कि वे बस्तियों में रहते हैं। मुसलमानों में प्रजनन दर भी बहुत अधिक है और इसलिए, मुस्लिम कॉलोनी में जनसंख्या घनत्व बहुत अधिक रहता है। दिल्ली में जामा मस्जिद क्षेत्र, मुंबई में भेंडी बाजार और डोंगरी इस बात का सबसे अच्छा उदाहरण है कि मुसलमान 10 से अधिक सदस्यों के औसत पारिवारिक आकार के साथ बस्ती में रहते हैं। इस तथ्य को देखते हुए कि 10-15 परिवार के सदस्य एक छोटे से घर में रहते हैं, परिवार के अधिकांश सदस्य लगातार एक दूसरे के संपर्क में रहते हैं। एक-दूसरे के साथ शारीरिक निकटता भी बहुत अधिक है। तब्लीगी जमात घटना इसका सबसे अच्छा उदाहरण है जिसमें संक्रमण का दर अधिक है।
दूसरा कारण है मुस्लिम परिवारों में BCG जैसे और कई तरह के टीका को न लगवाना। उनमें यह डर बैठा हुआ है कि इस तरह के टीकों से infertility या बांझपन होता है जिससे वे आगे बच्चे पैदा नहीं कर सकते। यह भारत ही नहीं बल्कि विश्व के कई देशों में देखा गया है। असम से भी इसी प्रकार की खबर आई थी। कई शोध भी प्रकाशित हो चुके हैं कि कैसे पोलियो के टीके का धार्मिक आधार पर विरोध किया गया था। WHO के टीकाकरण निदेशक कैथरीन ओ’ब्रायन का कहना है कि जब लोगों को टीका नहीं लगाया जाता है तो खसरा, हैजा, मेनिनजाइटिस, पीला बुखार और पोलियो जैसी बीमारियां विनाशकारी महामारी का कारण बन सकती हैं।
यही कारण होता है कि ऐसे लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है जिससे एक बीमारी होने पर कई बीमारियाँ जकड़ लेती हैं और फिर व्यक्ति कई लोगों को संक्रमित कर देता है।
तबलीगी जमात कट्टर इस्लाम मनाने वाला तबका है जिसे बस कुरान का कहा मानना है। ऐसे लोग हलाल की चीजों का ही उपयोग करते हैं जिससे इन्हे बाकी आबादी के मुक़ाबले कई तरह का नुकसान झेलना पड़ता है।
इसी तरह सरकार के लॉकडाउन की घोषणा के बावजूद अपने धर्म को ऊपर रखने की आदत और जुम्मे की नमाज के लिए एक ही स्थान पर भीड़ लगाने की आदत ने सबसे अधिक नुकसान किया है। इससे कोरोना जंगल की आग की तरह फैल गया।
सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि ईरान, मलेशिया, इन्डोनेशिया और पाकिस्तान से लेकर सऊदी अरब तक में इसी तरह का पैटर्न देखा जा सकता है। कई ऐसे वीडियो भी सामने आये हैं जिसमें यह कहते सुना जा सकता है कोरोना कुरान से आया है और यह सिर्फ काफिरों के लिए है। यह कह कर सोशल डिटेन्सिंग का मज़ाक भी उड़ाया गया। कोरोना के कारण सबसे अधिक संक्रमित अगर कोई हुआ है तो वे जमाती ही हैं जो कट्टर इस्लाम को मानते हैं।
एक और बात देखने को मिली वो है अपनी बीमारी को छिपाना। कई विदेशी नागरिक भी मस्जिदों से पकड़े गए जिन्हें बाद में कोरोना पॉज़िटिव पाया गया था। अगर तबलीगी अपनी बीमारी को नहीं छिपाते और सरकार से सीधा संपर्क करते तो शायद अभी भारत में कोरोना के मरीजों की सख्या कम होती और मौतें भी कम ही होती।


































