पिछले कुछ दिनों से सीनियर पत्रकार अर्नब गोस्वामी सुर्खियों में बने हुए हैं और कारण था कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को लेकर उनके द्वारा प्रखर विचार प्रकट करना और अपने चैनल पर सोनिया गांधी को उनके इटली वाले नाम से संबोधित करना। उनके इस विचार से कांग्रेस पार्टी सहित लेफ्ट का पूरा इकोसिस्टम बौखला गया और उनकी आलोचना करने लगा। यहाँ तक कि अर्नब पर शारीरिक हमला भी हुआ जिसको लेकर अब उन्होंने यूथ कांग्रेस पर कई आरोप लगाए हैं।
अर्नब के सोनिया गांधी को लेकर प्रकट किए गए विचार से सबसे अधिक दुखी दरबारी पत्रकार थे। हालांकि कुछ ने अर्नब पर हुए हमले की निंदा कि लेकिन ये लोग अर्नब की पत्रकारिता पर भी सवाल उठाने से पीछे नहीं हटे। पत्रकारिता से जुड़े कुछ संस्थानों जैसे National Union of Indian Journalist और Press Council of India ने भी बयान जारी किया।
Press Council of India ने तो अर्नब के पत्रकारिता पर ही सवाल खड़े करते हुए अपने बयान में यह लिख डाला कि खराब पत्रकारिता का जवाब हिंसा नहीं हैं।
अब यहाँ सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर Press Council of India को यह अधिकार किसने दिया कि वह यह तय कर सके कि कौन अच्छा पत्रकार है और कौन बुरा। बता दें कि PCI एक शक्तिहिन संस्था है जिसके पास किसी के भी खिलाफ कड़े एक्शन को लागू करने के अधिकार नहीं है। इस संस्था के पास किसी भी प्रकार की पत्रकारिता के लिए अर्नब गोस्वामी जैसे पत्रकार के बारे में निर्णय लेने का कोई अधिकार नहीं है। वर्ष 2015 से पहले, पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू इस परिषद की अध्यक्षता कर चुके हैं और वर्तमान में इसकी अध्यक्षता न्यायमूर्ति चंद्रमौली कुमार प्रसाद कर रहे हैं।
भारतीय प्रेस परिषद का इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया पर कोई अधिकार नहीं है, और इसका आंशिक अधिकार क्षेत्र केवल प्रिंट मीडिया, विशेष रूप से समाचार पत्रों के ऊपर है।
अक्सर इस संस्था को Toothless Tiger कहा जाता क्योंकि इसके पास उन पत्रकारों के खिलाफ कार्रवाई करने की कोई दंडात्मक शक्तियां नहीं हैं जो वास्तव में इसके अधिकार क्षेत्र में आते हैं। इसलिए TV या डिजिटल क्षेत्र के पत्रकारों के ऊपर इस संस्था का बयान अपने आप को प्रासंगिक बनाए रखने का एक मात्र हथकंडा ही दिखाई देता है।
बता दें कि PCI प्रेस से प्राप्त या प्रेस के विरूद्ध प्राप्त शिकायतों पर विचार करती है। यह परिषद सरकार सहित किसी समाचारपत्र, समाचार एजेंसी, सम्पादक या पत्रकार को चेतावनी दे सकती है या भर्त्सना कर सकती है या निंदा कर सकती है, लेकिन इसके पास व्यक्तिगत रूप से पत्रकारों और प्रकाशनों पर किसी भी तरह की जुर्माना लगाने या कोई आदेश लागू करने की कोई शक्तियां नहीं हैं।
14.04.2020 की एक प्रेस विज्ञप्ति में, परिषद ने स्वयं स्वीकार किया कि प्रिंट मीडिया के अलावा मीडिया उद्योग में इसका कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है। बयान में कहा गया था कि, “इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, टीवी न्यूज चैनल, सोशल मीडिया, यानी व्हाट्सएप / ट्विटर / फेसबुक प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के अधिकार क्षेत्र में नहीं आते हैं।”
अब जैसे कि हमने देखा कि Press Council of India ने अर्नब की पत्रकारिता को खराब करार दिया है तो उससे एक बात तो स्पष्ट हो जाती है कि ये सभी अर्नब की कामयाबी से कुंठित हो चुके हैं और अपार सफलता से हताश हैं। PCI को उन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जो उनके अधिकार क्षेत्र में आते हैं।
अर्नब गोस्वामी ने जिस तरह से कांग्रेस पार्टी के इकोसिस्टम को चुनौती दे कर मीडिया में एकछत्र राज को समाप्त किया है उसी के कारण पूरी कांग्रेस और उसके समर्थक गुस्से में है। कांग्रेस पार्टी के घोटालों जैसे CWG, 2G, Aadarsh, Coalgate को उजागर करने में गोस्वामी सबसे आगे रहे हैं।
इसके अलावा, उन्होंने भारत में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का चेहरा ही बदल दिया है। अंग्रेजी मीडिया,जिसमें सिर्फ एलिट पत्रकारों का वर्चस्व रहता था, उसे अर्नब गोस्वामी उदय से एक अलग पहचान मिली है। हो सकता है उनमें कई खामियां हो, लेकिन उनकी पत्रकारिता पर सवाल करने में PCI की मजबूरी ही दिखती है।