कोरोना वायरस के बीच दुनियाभर में शवों को दफनाने को लेकर भी बहस छिड़ी हुई है. ज्यादातर मुस्लिम धर्म से जुड़े लोग नहीं चाहते कि उनके परिजनों का शव जलाया जाए. जबकि WHO से लेकर दुनिया भर की तमाम शोधों के अनुसार निर्देश दिया गया है कि कोरोना से मरे हुए लोगों के शवों को दफनाने की बजाय जलाना ज्यादा उचित है.
अब इसी कड़ी में श्रीलंका में दो मुसलमानों के शवों को दफनाने की जगह जलाने को लेकर अल्पसंख्यक मुस्लिमों में काफी आक्रोश देखने को मिल रहा है. बता दें कि श्रीलंका जैसे छोटे से देश में अब तक कोरोना के 151 मामले दर्ज किए जा चुके हैं. वहीं एक मुस्लिम समुदाय के व्यक्ति की कोरोना के वजह से मौत हो गई है. इससे पहले भी एक मुस्लिम व्यक्ति की मौत हुई थी. यहां अल्पसंख्यकों का आरोप है कि उनके परिजनों का अंतिम संस्कार उनके मजहब के हिसाब से नहीं हो रहा है.
लेकिन श्रीलंका की सरकार मजहबी तौर-तरीकों से चलने के बजाय स्वास्थ्य नियमों का पालन करने का निर्णय लिया है ताकि उनके शेष देशवासियों की स्वास्थ्य सुरक्षा सुनिश्चित हो सके.
कल यानि रविवार को श्रीलंका के स्वास्थ्य मंत्री वाणिअराचछी ने बताया- ‘कोरोनावायरस से हुई मौत के बाद उनके शवों को दफनाया नहीं जलाया जाएगा. चाहे वह किसी भी धर्म से ताल्लुक क्यों न रखते हों.’
Sri Lanka made cremations compulsory for coronavirus victims on Sunday, ignoring protests from the country's minority Muslims who say it goes against Islamic traditionhttps://t.co/mMCXaFOZQP pic.twitter.com/Ih4MjzKeTM
— AFP News Agency (@AFP) April 12, 2020
अलजजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक- श्रीलंका का एक व्यक्ति जो किडनी की समस्या से जूझ रहा था. वह कोरोना पॉजिटिव पाया गया. बाद में इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई. अगले दिन प्रशासन की निगरानी में उस व्यक्ति का अंतिम संस्कार किया गया. प्रशासन का मानना है कि अन्य लोगों में भी संक्रमण न फैल जाए इसलिए शव को जला दिया गया.
वहीं मृतक के परिजनों का कहना था कि उन्हें उनके धर्म के हिसाब से अंतिम सस्कार नहीं करने दिया गया बल्कि पुलिस अपने गाड़ी में ले गई और शव को जला दी.
चरमपंथी इस्लामिक समूह का विरोध
श्रीलंका की सरकार ने भले ही शव को वायरस के प्रकोप से बचने के लिए बचाया हो लेकिन श्रीलंका के इस्लामिक कट्टरपंथियों को यह एक एजेंडा ही समझ आया. मुस्लिम काउंसिल ऑफ श्रीलंका के वाइस प्रेसिडेंट हिल्मी अहमद कहते हैं-
‘यह पूरी तरह से मुस्लिम समुदाय के लोगों के साथ अन्याय था. हम इसे कट्टरपंथी बौध ताकतों के नस्लभेदी एजेंडे के तहत ही देख रहे हैं. जिसने मौजूदा सरकार को अपनी जकड़ में किया हुआ है.’
एमनेस्टी इंटरनेशनल को भी हुई पीड़ा-
मुस्लिम काउंसिल के नेता ने यह भी कहा कि अधिकतर मुस्लिम देशों में तो कोरोना के मृत का अंतिम संस्कार उसके मजहब के हिसाब से ही कर रहे हैं लेकिन श्रीलंका की दमनकारी सरकार ने हमारी धार्मिक आजादी छीन ली. वहीं एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भी इस पर अपना शोक जाहिर किया है. एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा है कि सरकारें लोगों की धार्मिक भावनाएं न आहत करे, धार्मिक आधार पर ही कोरोना के मृतकों का अंतिम संस्कार करे.
बता दें कि मौजूदा समय में श्रीलंका में मुस्लिमों की आबादी में काफी बढ़ोतरी दर्ज की गई है. यहां कुल 2.1 करोड़ की आबादी है. जिसमें मुस्लिम आबादी करीब 10 फीसदी है. इसी वजह से श्रीलंका में बीते कुछ सालों से अल्पसंख्यक मुस्लिमों ने काफी आतंक मचा कर रख दिया है. पिछले साल अप्रैल में इस्लामिक दहशतगर्दों ने ईस्टर के दिन कई बम धमाकों से श्रीलंका को दहलाकर रख दिया. इस हमले में ईसाई समुदाय के लोगों को टार्गेट किया गया था. इस धमाके में 270 लोग मारे गए थे और 400 से अधिक लोग घायल हुए थे।
ऐसे में साफ है कि श्रीलंका की सरकार ने अपनी जनता को कोरोना से बचाने के लिए रिसर्च और तथ्यों का सहारा लिया है न कि किसी धार्मिक मान्यताओं का. जिससे लोग खतरे में पड़ें. इस फैसले से भले ही श्रीलंका के इस्लामिक चरमपंथियों में खलबली मची हुई है लेकिन सरकार अपने इरादे से टस से मस नहीं हुई है.