दिल्ली ही नहीं, बिहार में भी इकट्ठा हुए थे सैकड़ों जमाती, अब बिहार में कोरोना से कोहराम मचना तय

निज़ामुद्दीन कांड के बाद सामने आया तबलीगी का “बिहार कांड”, अभी जागो नीतीश कुमार

तबलीगी

प्रतीकात्मक फोटो

हम यह पहले ही देख चुके हैं कि कैसे तबलीगी जमात के लोगों ने कोरोना के खिलाफ युद्ध में देश को नुकसान पहुंचाया है। हालांकि, अगर आप यह सोच रहे हैं कि तबलीगी नाम का सिरदर्द अब खत्म हो गया है, तो आप बहुत बड़ी गलतफहमी में हैं। दरअसल, अब खबर सामने आई है कि दिल्ली के निज़ामुद्दीन की तर्ज पर ही बिहार के नालंदा में भी मार्च महीने में तबलीगी जमात ने एक कार्यक्रम आयोजित किया था जिसमें 600 से ज़्यादा तबलीगी के मुल्लाओं ने हिस्सा लिया था। सबसे गंभीर बात यह है कि इन सम्मेलन में हिस्सा लेने वाले एक शख्स में अब कोरोना पॉज़िटिव पाया गया है। सम्मेलन में हिस्सा लेने वाले 640 जमातियों में से अब तक सिर्फ 277 का ही पता लगाया जा सका है और उन्हें क्वारंटाइन कर दिया गया है, लेकिन उस सम्मेलन में भाग लेने वाले 363 लोगों का अब भी कोई सुराग नहीं लग पाया है। इन लोगों से खुद सामने आकर प्रशासन और समाज की सहायता करने की उम्मीद करना तो वैसे भी मूर्खता ही होगी।

दिल्ली में हुए तबलीगी कांड का कलंक अब तक देश अपने माथे से हटा नहीं पाया है। कई राज्यों में आज एक भी पॉज़िटिव केस नहीं होता अगर ये तबलीगी वाले क़ानून को ताक पर रखकर अपनी कट्टरपंथी विचारधारा के तहत ये आयोजन नहीं करते। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक, बिहार से लेकर बंगाल और नॉर्थ ईस्ट के राज्यों तक, तबलीगी वालों ने देश का ऐसा कोई कोना नहीं छोड़ा जहां इन्होंने कोरोना ना फैलाया हो। अब बिहार की इस घटना ने सभी देशवासियों को फिर से चिंता में डाल दिया है। सोचिए जिन लोगों का अब तक पुलिस को कोई सुराग नहीं लग पाया है, उनमें से अगर कोई कोरोना पॉज़िटिव केस होगा तो वो आज कितने ही लोगों को और संक्रमित कर रहा होगा।

इस सम्मेलन के आयोजन के बाद से सिर्फ बिहार ही नहीं, बल्कि आसपास के अन्य राज्यों पर भी कोरोना का खतरा बेहद गहरा हो गया है, क्योंकि जिन 640 लोगों ने इस सम्मेलन में हिस्सा लिया था, उसमें से केवल 340 लोग ही बिहार के थे और बाकी के 300 लोग अन्य राज्यों से आए थे। इससे आसपास के राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश और झारखंड में भी कोरोना विस्फोट होने के अनुमान बढ़ गए हैं।

बिहार देश के सबसे घने आबादी वाले राज्यों में से एक है। यह पहले से ही कट्टर इस्लामिक आतंकवादियों के निशाने पर रहता है। रोहिंग्याओं से लेकर नेपाल में बैठे तस्करों तक, बिहार पर सबकी बुरी नज़र रहती है। हालांकि, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इसके बावजूद बिहार को सही से संभालने में पूरी तरह विफल साबित हुए हैं। नीतीश कुमार Crisis handling से ज़्यादा Headline handling करने के लिए जाने जाते हैं और शायद यही कारण है कि बिहार में तबलीगी का एक कार्यक्रम होने की खबर को बिहार से बाहर आने में 1 महीने का वक्त लग गया। हम देख चुके हैं कि कैसे नीतीश कुमार ने डेंगू और जापानी बुखार के सामने हाथ खड़े कर दिये थे, और सैकड़ों मासूमों ने अपनी जानें गंवाई थी। बाढ़ को काबू करने में भी वे समय-समय पर अपनी विफलताओं का नमूना पेश करते रहते हैं।

हालांकि, कोरोना का खतरा बाढ़ या किसी बीमारी के खतरे से कहीं ज़्यादा है, लेकिन फिर भी नितीश का सुस्त और ढीला-ढाला रवैया बरकरार है। नीतीश कुमार की अक्षमता के कारण अब बिहार में किसी भी वक्त कोरोना बॉम्ब फट सकता है। तबलीगियों को अगर समय रहते काबू नहीं किया गया तो बिहार को भारत का हुबई बनने में देर नहीं लगेगी।

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