कोरोना वायरस के कारण दुनिभार में भुखमरी फैलने का खतरा बढ़ गया है। UN ने चिंता जताई है कि दुनिया के कुछ देशों में जल्द ही खाने की भयंकर कमी देखने को मिल सकती है। अफ्रीका जैसे गरीब देशों में तो यह समस्या पेश आना स्वाभाविक सी बात है, लेकिन हैरानी की बात तो यह है कि सुपर पावर कहे जाने वाले US और यूके जैसे देशों के नागरिकों के पास भी खाने की भारी कमी होती जा रही है। UK की फूड फ़ाउंडेशन के मुताबिक लॉकडाउन के महज़ तीन हफ्तों के अंदर ही UK के करीब 15 लाख ऐसे लोग पाये गए हैं जो एक वक्त का खाना जुटाने में भी अक्षम हैं। इसके अलावा UK में 30 लाख ऐसे घर हो सकते हैं, जहां घर में कम से कम एक व्यक्ति को अपना खाना छोड़ना पड़ रहा है। यही हाल US का है। यह दिखाता है कि इन देशों के करोड़ो-अरबों डोलर्स की अर्थव्यवस्था खोखली है और असल में इनसे बेहतर तो भारत जैसे देश ही हैं जहां लोग अपनी savings पर सबसे ज़्यादा ध्यान देते हैं। अगर भारतवासियों की तरह ही UK और US के नागरिकों ने भी अपने लिए savings की होती, तो आज उन्हें इस तरह भुखमरी का सामना ना करना पड़ता।
US और UK जैसे देशों में लोगों के जीने का मंत्र होता है “आज कमाओ-आज उड़ाओ”, ना तो वे कभी savings पर ध्यान देते हैं, और ना ही उनके पास कभी पूंजी होती है। इन देशों में हर पीढ़ी अपने एक अलग घर में रहना चाहती है, वो चाहते हैं कि उनके पास बढ़िया कार हो और वे हर weekend पर पार्टी करें, और इस चक्कर में वे अपनी कमाई से ज़्यादा खर्च कर बैठते हैं। Financial Times की एक रिपोर्ट के मुताबिक US और UK, दोनों देशों में सेविंग्स रेट negative है, यानि लोग कमाते कम हैं और खर्च ज्यादा कर रहे हैं।
यही कारण है कि अब इन देशों में भुखमरी जैसे हालात हो गए हैं, क्योंकि ये सिर्फ एक महीना भी अपनी कमाई के बिना नहीं रह सकते, क्योंकि इनके पास सेविंग्स हैं ही नहीं। अब लॉकडाउन के बाद आलम यह हो गया है कि लगभग ढाई करोड़ लोगों ने अब तक बेरोजगारी भत्ते के लिए आवेदन कर दिया है। पिछले एक हफ्ते में ही 44 लाख नए लोगों ने यह आवेदन किया है। यह US की कुल labour force का 4 प्रतिशत हिस्सा है। अगर जल्द ही इन्हें बेरोजगारी भत्ता ना मिला, तो इनका भी दिवालिया होना और भूख से मरना तय है।
weekly jobless claims, 4 million this week, still off the charts compared to history pic.twitter.com/ORZ6p6t9hC
— 📈 Len Kiefer 📊 (@lenkiefer) April 23, 2020
लेकिन भारत जैसे तथाकथित “निम्न स्तर जीवन” जीने वालों के देश में ऐसे हालात उत्पन्न नहीं हुए हैं। भारत वासियों के बारे में कहा जाता है कि बेशक उन्हें इन्वेस्ट करना नहीं आता हो, लेकिन उन्हें savings करना बखूबी आता है। भारत के लोगों के पास अक्सर savings करने के कई कारण होते हैं। भारत में एक कहावत बड़ी मशहूर है और वह है “आज की बचत, कल का सुख”, इससे समझा जा सकता है कि भारत के लोग अपनी सेविंग्स को लेकर कितने सजग हैं।
वर्ष 2016 के Blackrock global investor के एक सर्वे के मुताबिक दुनियाभर में savings करने में और निवेश करने में भारत के लोग सबसे आगे हैं। इन सर्वे में बताया गया था कि भारत के लोग इन तीन चीजों के लिए सबसे ज़्यादा निवेश करते हैं:
- रिटायरमेंट
- बच्चों की पढ़ाई
- घर
इन तीन चीजों के अलावा भारत में ज़मीन खरीदने, लड़की की शादी करने (सोना खरीदना इत्यादि) और अन्य अचल संपत्ति खरीदने के लिए लोग भी सेविंग्स करते हैं। भारत में लगभग आधा वर्कफोर्स कृषि उद्योग से ही अपना पेट पालती है। भारत के किसान अक्सर अपनी फसल में से एक हिस्सा सालभर के लिए अपने लिए घर में बचाकर रखते हैं और बची हुई फसल को ही बाज़ार में बेचते हैं। इस प्रकार साल भर के लिए भारत के किसानों को खाने के लिए किसी दूसरे पर आश्रित नहीं रहना पड़ता। वर्ष 2010 की इकनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारतीयों की इन्हीं आदतों की वजह से वर्ष 2008 की वैश्विक महामंदी का भी भारत पर उतना खास फर्क नहीं पड़ा था।
आज हालत यह है कि विकासशील और पश्चिमी देशों के मुक़ाबले पिछड़े भारत में तो एक महीने से ज़्यादा के लॉकडाउन के बाद भी लोग खुशी से अपने घरों में रह रहे हैं, जबकि UK और US जैसे अति-विकसित देशों में लोगों को खाने के लाले पड़ गए हैं। हालांकि, इन देशों की मीडिया को अभी भी सिर्फ भारत में ही भुखमरी दिखाई देती है। Sky news ने हाल ही में रिपोर्ट किया था कि कैसे भारत में लॉकडाउन के बाद भुखमरी की समस्या बढ़ गयी है, लेकिन Sky News को अपने ही देश में भूख से मरते 15 लाख लोगों की कोई चिंता नहीं है। ऐसा लगता है मानो UK की मीडिया अपने देश के बदतर हालात होने के बाद भी superior complex रोग से ग्रसित है, उसे जल्द से जल्द सच्चाई का सामना कर लेना चाहिए। अगर उनके देश में भी भारत की तरह ही सेविंग्स पर ध्यान दिया जाता तो आज उसकी यह हालत देखने को नहीं मिलती। आज अमेरिका और UK के लोग जिस तरह भुखमरी का सामना कर रहे हैं, उसके जिम्मेदार ये खुद हैं।