‘हम देश को हाईजैक नहीं होने देंगे’- मोदी सरकार ने चीनी लूटेरों को भगाने के लिए FDI में बदलाव किया

'पहली फुर्सत में निकल'

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भारत ने हाल ही में अपनी FDI नीति में एक व्यापक बदलाव किया है। चीन के कई विदेशी कम्पनियों के अनुचित टेक ओवर को देखते हुए भारत ने यह सुनिश्चित किया है कि ज़मीनी तौर पर जिसकी भी सीमा भारत से जुड़ी है, उसे भारत में निवेश करने से पूर्व सरकार की अनुमति लेनी होगी।

भारत ने यह निर्णय इसलिए लिया है क्योंकि चीन ने हाल ही में अपनी कुत्सित, साम्राज्यवादी मानसिकता का परिचय देते हुए भारत के कम्पनियों में हिस्सेदारी खरीदने की हिमाकत की। भारत के अग्रणी बैंकों में से एक HDFC में चीन ने 1.01 प्रतिशत के शेयर खरीदे हैं।

वुहान वायरस को दुनिया भर में फैलाने के बाद चीन किस प्रकार से अपनी औपनिवेशिक मानसिकता का परिचय संसार को दे रहा है, ये किसी से नहीं छुपा है। परन्तु कई देश ऐसे भी हैं, जो किसी भी स्थिति में चीन के समक्ष नतमस्तक होने को तैयार नहीं है।

इसी संबंध में डिपार्टमेंट फॉर प्रोमोशन ऑफ इंडस्ट्री एंड इंटरनल ट्रेड की एक विज्ञप्ति के अनुसार पता चलता है कि भारत की FDI नीति में एक व्यापक बदलाव किया गया है। भारत ने यह सुनिश्चित किया है कि ज़मीनी तौर पर जिसकी भी सीमा भारत से जुड़ी है, उसे भारत में निवेश करने से पूर्व सरकार की अनुमति लेनी होगी। इस तरह से भारत ना सिर्फ ड्रैगन के दमनकारी नीतियों को नियंत्रित करेगा, अपितु विश्व के सामने भारत की एक बेहतर छवि भी प्रस्तुत करेगा –

इससे पहले ये नियम पाकिस्तानी और बांग्लादेशी कम्पनियों पर लागू होते थे। यह निर्णय पूर्ण रूप से चीन पर ही केन्द्रित है, क्योंकि इस समय पूरे विश्व का सबसे बड़ा शत्रु चीन ही है।

FDI के नए नियम कानून केवल चीनी कंपनियों या पीपुल्स बैंक ऑफ चीन तक सीमित नहीं हैं, अपितु सम्पूर्ण चीन और उससे जुड़े ऐसे भी दावेदार को, जिसके निवेश के कारण चीन को लाभ मिले।

ऐसे में नई नियमावली ना केवल भारतीय कंपनियों को चीन की बुरी चाल से बचाती है, बल्कि चीनी कम्पनी जैसे अलीबाबा और हुवावे से भी सुरक्षित रखती है, जो ऐसे विकट परिस्थिति में भी अपने लाभ के लिए दूसरे देशों की कंपनियों का अधिग्रहण करना चाहते हैं।

इसके अलावा इस नियमावली से सिर्फ उन्हीं पर रोक नहीं लगेगी जिनकी सीमा भारत की सीमाओं से मिलती हों, अपितु उनके लिए भी, जो भारत में किसी निवेश के लाभार्थी हैं। यानी अगर कोई कंपनी भारत में निवेश करें, पर उसका लाभ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से चीन उठा रहा हो, तो उसपर भी रोक संभव है। इस प्रकार से अब एचडीएफसी में चीनी निवेश का दूसरा कोई कांड लगभग असम्भव हैं।

पर भारत ऐसा काम करने वाला पहला देश नहीं है। जर्मनी, स्पेन और इटली, जो यूरोप में इस महामारी से सबसे ज़्यादा पीड़ित पाए गए, अब चीन के विरुद्ध मोर्चा खोल चुके हैं.

जिस तरह से वुहान वायरस ने चीन की कपटी चाल को सबके समक्ष उजागर किया है, उससे भारत ने भी अपनी कमर कस ली है, जैसे ही चीन कोई चाल चलेगा भारत उसको उसी की चाल में लपेट देगा। क्योंकि मोदी सरकार ने भी कोई कच्ची गोलियां नहीं खेली हैं, और वे चीन के हर प्रपंच का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए तैयार है।

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