‘जिस दिन मुस्लिमों ने अरब देशों से अपने खिलाफ जुल्म की शिकायत कर दी, सैलाब आ जाएगा’- जफर इस्लाम

मुस्लिमों पर जो जुल्म करते हो, उसकी शिकायत हम अपने आका से करेंगे

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दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष जफरुल इस्लाम खान ने मंगलवार को हिंदुओं के खिलाफ फिर से जहर उगला. उन्होंने फेसबुक पर एक पोस्ट लिखी, जहां हिंदुओं के लिए उनकी घृणा और जाकिर नाइक और उनके इस्लामी आकाओं के प्रति वफादारी का प्रदर्शन हुआ।

बता दें कि यह आयोग दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के अधीन आता है, और यह घटना साबित करता है कि केजरीवाल ने अपने कार्यकाल में जिस तरह के नौकरशाही का समर्थन करते हैं वहां एक सरकारी अधिकारी द्वारा खुलेआम हिंदुओं को धमकी दी जाती है।

जफरुल खान ने अपने फेसबुक पर कुवैत को धन्यवाद करते हुए एक पोस्ट लिखा-

‘’कट्टर हिन्दू ऐसा समझते थे कि बड़े स्तर पर आर्थिक रिश्तों को देखते हुए अरब देश भारत में हो रहे मुसलमानों के अत्याचारको नज़रअंदाज़ कर देगा, जबकि कुवैत ने ऐसा नहीं किया।‘’

इस के साथ जफरुल खान ने भारत के आंतरिक मामले का अंतरराष्ट्रीयकरण करने का प्रयास किया है। संवैधानिक पद पर रहते हुए खान ने भारत के अंदरूनी मसले को दुनिया के सामने रखने का प्रयास किया है। खान ने अपने फेसबुक पोस्ट में लिखा है, ‘कट्टर ये भूल गए हैं कि भारतीय मुसलमानों ने शताब्दियों से इस्लाम की भलाई के लिए सेवा की है और इसके लिए अरब एवं मुस्लिम जगत में उनका काफी सम्मान है। इस्लामी और अरब विज्ञान में, विश्व विरासत में इनका मान विशाल सांस्कृतिक और सांस्कृतिक योगदान के कारण है। शाह वलीलुल्लाह देहलवी, इकबाल, अबुल हसन नदवी, वहीदुद्दीन खान, जाकिर नाइक जैसे कई सम्मानित नाम अरब एवं मुस्लिम जगत में हैं।’

जफरूल इस्लाम ने अपने फेसबुक पर पोस्ट में लिखा है-

जिस दिन मुसलमानों ने अरब देशों से अपने खिलाफ जुल्म की शिकायत कर दी, सैलाब जाएगा।

खान ने आगे लिखा है, ‘कट्टर सोच रखने वाले संभल जाओ। भारतीय मुसलमानों ने तुम्हारे नफरत भरे अभियान, लिंचिंग एवं दंगों के बारे में अब तक अरब एवं मुस्लिम जगत से शिकायत नहीं की है। जिस दिन भारतीय मुस्लिम शिकायत करने के लिए बाध्य हुए वह दिन कट्टर सोच रखने वालों के लिए बहुत भारी पड़ेगा।’

ख़ान का हिंदू-विरोधी रुख यह देखते हुए पूरी तरह  से समझ आता है कि वह कहाँ से आते हैं लेकिन यहाँ यह ध्यान देने वाली बात है कि वह अपनी नफरत में उस भगोड़े जाकिर नाइक का प्रशंसा कर दिया, जो कई आतंकवादी गतिविधियों के लिए जिम्मेदार है और भारतीय अधिकारियों से भाग कर दूसरे देशों में छिपा हुआ है।

बता दें कि जफरुल इस्लाम खान का फेसबुक पोस्ट कुवैत के इस्लामी मामलों के मंत्रालय के एक मंत्री के एक ट्वीट के बाद आया, जहाँ कुवैत कैबिनेट के कुछ मंत्रियों ने भारतीय मुसलमानों पर कथित अत्याचार पर चिंता व्यक्त की थी।

हालांकि, उस ट्वीट के 24 घंटों के भीतर, कुवैत सरकार ने अपने राजदूत के माध्यम से एक बयान जारी किया कि कुवैत भारत के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है और यह भारत के आंतरिक मामलों में किसी भी हस्तक्षेप का समर्थन नहीं करता है।

इससे पहले इसी जफरुल इस्लाम खान ने इससे पहले दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य विभाग के सचिव को एक पत्र लिखकर कोरोना बुलेटिन के तरीके पर आपत्ति जतायी थी। जफरुल इस्लाम खान ने कहा था कि रोजाना के बुलेटिन में निजामुद्दीन मरकज का जिक्र न किया जाए, क्‍योंकि ऐसा करने से ‘इस्लामोफोबिया के एजेंडे को बढ़ावा मिलता है। इसके बाद से दिल्ली में सरकार द्वारा जारी किए जाने वाले कोरोना बुलेटिन में तबलीगी जमात से जुड़े मामलों का अलग से जिक्र नहीं किया गया।

वहीं इसी जफरुल इस्लाम खान ने कहा यह झूठ फैलते हुए दावा किया कि एक तरफ सरकार कोरोना वायरस ठीक हुए जमातियों का प्लाज्मा इस्तेमाल कर रही है, वहीं दूसरी ओर उन्हें कैदियों से भी बदतर हालात में रखा जा रहा है। उनके साथ छुआ-छूत का व्यहवार किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि तबलीगी जमात के लोगों को ना तो समय पर दवाई मिल रही है और ना खाना। ना ही डॉक्टर उनके इलाज के लिए आते हैं। ऐसे में अगर कोई बाहर का व्यक्ति जमातियों को ज़रूरी सामान देना चाहता है या मदद करना चाहता है तो उसकी भी इजाजत नहीं है।

जबकि ठीक इसके उलट हुआ है और जमाती डाक्टरों और नर्सों के साथ अभद्रता करते दिखाई दिये थे।

बता दें कि जफरुल वही शख्स है जिसने उत्तर-पूर्वी दिल्ली के दंगों के बाद एकतरफा रिपोर्ट तैयार की थी। अपनी रिपोर्ट में, कट्टरपंथी ज़फ़रुल ने दावा किया था कि दिल्ली हिंसा “एकतरफा और सुनियोजित थी” और मुसलमानों के घरों और दुकानों पर “अधिकतम” क्षति पहुंचाई गई थी।” हिंसा को-एकतरफा ’करार देते हुए, इस्लाम ने शाहरुख जैसे पिस्तौल लहराने वालों को खुली छूट दे दी थी।

ये वही ज़फरुल हैं जिन्होंने NRC CAA आंदोलन के दौरान CJI एसए बोबडे को पत्र लिख कर सरकार पर तरह-तरह के आरोप लगाए थे। उन्होंने यह कहा था कि शांतिपूर्ण ढंग से अपनी बात रखना और विरोध करना सभी लोगों के मूलभूत अधिकारों में शामिल है। यह तो सभी को पता ही है की दिल्ली में दंगे किस प्रकार के हिंसक थे। उन्होंने पत्र में लिखा था-

अभी देश भर के कई इलाक़ों में सीएए और एनआरसी के ख़िलाफ़ शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन चल रहा है, जिसमें पुलिस का व्यवहार काफ़ी आपत्तिजनक रहा है। पुलिस ने कई शांतिपूर्ण प्रदर्शनों को रोक दिया था। यही नहीं कई जगह धारा-144 लगा दी गयी थी और साथ में मोबाइल इंटरनेट सेवाओं को ठप्प कर दिया। ये सभी एक्शन प्रदर्शनकारियों को उनके संवैधानिक अधिकार से वंचित रखने के लिए किया गया।

पत्र में आगे लिखा था, “पुलिस इतने से संतुष्ट नहीं हुई और 15 दिसंबर 2019 को जामिया इस्लामिया में शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर हमला करने से बहुत आगे निकल गई और बाद में मेरठ, बिजनौर, दिल्ली के सीमापुरी, वाराणसी, मंगलौर आदि जैसे कई स्थानों पर, जहां उन्होंने केवल प्रदर्शनकारियों के हाथ, पैर तोड़े और खोपड़ी पर वार किया और लगभग दो दर्जन प्रदर्शनकारियों को मार डाला। साथ ही निजी घरों पर हमला भी किया, जो कुछ भी मिला उसे नष्ट कर दिया। राउंड कर रही पुलिस की क्रूरता के दर्जनों वीडियो हैंकुछ बॉयकॉट एनआरसी के फेसबुक पेज पर देखा जा सकता है।

मैं इस पत्र के साथ अधूरे साक्ष्यों की सूची संलग्न कर रहा हूं। देश के कई हिस्सों में पुलिस के इस व्यवहार के बारे में स्वत: संज्ञान लेने के लिए आपसे मेरा अनुरोध है। मौजूदा अशांति के दौरान केवल गलत पुलिस अधिकारियों को दंडित करने के लिए, बल्कि यह भी कि माननीय सुप्रीम कोर्ट उदाहरण पेश करे कि भविष्य में वह ऐसी घटनाओं से नागरिकों के और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए किस प्रकार निपटेगा।

भले ही केजरीवाल ने हिंदुओं की ओर निर्देशित खान के भड़काऊ बयानों पर कार्रवाई न की हो, लेकिन उन्हें एक भगोड़े और आतंकवादी के प्रति सहानुभूति रखने वाले जफरुल इस्लाम खान  को उनके कार्यालय से बाहर निकाल कर कम से कम कुछ शक्ति दिखानी चाहिए।

अब गेंद केजरीवाल के पाले में है और यह देखने की जरूरत है कि क्या वह जफरुल इस्लाम खान के खिलाफ कार्रवाई करते हैं या तुष्टीकरण के लिए भारत पर लांछन लगाने वाले ऐसे व्यक्तियों को अपने सचिवालय में बने रहने देना चाहते हैं।

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