फर्जी NGO हों या फिर नकली पर्यावरणविद, ये लोग शुरू से ही देश के विकास में रोड़ा अटकाते आए हैं। ऐसे NGO विदेशी चंदो के बल पर भारत में पर्यावरण बचाने की आड़ में हर विकास कार्य में बाधा बनते हैं और भारत में विकास दर को बड़ा नुकसान पहुंचाते हैं। ऐसा ही वर्ष 2018 में भी देखने को मिला था जब इन पर्यावरणविदों के दबाव में आकर तमिलनाडु सरकार ने तूतीकोरिन में वेदांता के स्टरलाइट कॉपर प्लांट को बंद करने का आदेश दे दिया था।
इस प्लांट के बंद होने के बाद कभी कॉपर का निर्यातक होने वाला भारत 18 वर्षों में पहली बार कॉपर का इंपोर्टर देश बन गया था। लेकिन नुकसान सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है, अब भारत में बंद हुए इस कॉपर प्लांट का हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान को सबसे ज़्यादा फायदा मिल रहा है, और वर्ष 2018 के बाद से पाकिस्तान के कॉपर एक्सपोर्ट में 400 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखने को मिली है।
पाकिस्तानी मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक तीन साल पहले तक पाकिस्तान हर साल सिर्फ 106 मिलियन डॉलर का कॉपर एक्सपोर्ट ही कर रहा था, लेकिन वर्ष 2019 तक आते आते यह 550 मिलियन डॉलर तक पहुँच गया, और इसका अधिकतर हिस्सा चीन को ही एक्सपोर्ट होता है। इस एक्सपोर्ट में पाकिस्तान के विवादित रेको ड़ीक प्रोजेक्ट की सबसे बड़ी भूमिका है।
अभी रेको ड़ीक प्रोजेक्ट पर अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में विवाद चल रहा है, अगर यह विवाद जल्द ही खत्म होता है, तो इसका चीनी कंपनियों को सबसे ज़्यादा फायदा मिलेगा और ये चीनी कंपनियाँ आने वाले सालों में फिर पाकिस्तान से और भी ज़्यादा कॉपर एक्सपोर्ट कर सकेंगी।
समय-समय पर ऐसी खबरें आती रहती हैं कि भारत में चीन द्वारा फंड किए जाने वाले NGO ही भारत में विकास-विरोधी अभियान चलाते हैं। बता दें कि स्टरलाइट कॉपर प्लांट को बंद करवाने के लिए वर्ष 2018 में बड़े पैमाने पर हिंसक विरोध प्रदर्शन करवाए गए थे, जिसमें दर्जनों लोगों की जान चली गयी थी। माना जाता है कि इन प्रदर्शनों को चीनी कंपनियों और विदेशी एनजीओ द्वारा फंड किया जा रहा था। इतना ही नहीं, इन प्रदर्शनों में नक्सलियों ने भी प्रदर्शन किया था। कुछ प्रदर्शनकारियों के तार तो कमल हासन और चर्च से जाकर मिल रहे थे।
स्टरलाइट कॉपर प्लांट बंद होने से भारत को दो बड़े नुकसान हुए, एक तो भारत में इसका बड़ा आर्थिक नुकसान हुआ, और दूसरा यह कि अब भारत के दुश्मन को इसका फायदा मिलता दिखाई दे रहा है। तूतीकोरिन स्थित स्टरलाइट प्लांट के बंद होने के चलते लगभग 4 लाख टन कॉपर का उत्पादन खत्म हो गया।
इससे पहले देशभर में कुल 10 लाख टन कॉपर का उत्पादन होता था। भारत अपने कॉपर का अधिकतर निर्यात चीन और वियतनाम जैसे देशों में करता था। भारत का कॉपर बढ़िया क्वालिटी का होने की वजह से चीनी बाज़ार में इसकी बहुत मांग थी और इसकी वजह से चीनी कंपनियों को भारतीय कंपनियों से कड़ी टक्कर मिलती थी। अब भारत का एक्सपोर्ट तो खत्म हो ही गया, साथ ही कॉपर के लिए अब भारत को दूसरों देशों पर आश्रित होना पड़ रहा है।
भारत में यह NGO गिरोह सिर्फ स्टरलाइट कॉपर प्रोजेक्ट को ही नहीं, बल्कि और भी कई प्रोजेक्ट्स की बलि ले चुका है। महाराष्ट्र के रत्नागिरि में 3 लाख करोड़ रुपयों का नानर रिफाईनरी प्रोजेक्ट से लेकर महाराष्ट्र में ही आरे मेट्रो रेल प्रोजेक्ट तक, हर जगह इन नकली पर्यावरणविदों की वजह से ही प्रोजेक्ट्स में या तो देरी देखने को मिली है, या फिर इन्हें हमेशा के लिए रद्द करना पड़ा है।
जब से राज्य में उद्धव सरकार आई है, उसके बाद से महाराष्ट्र का बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट और हाइपरलूप प्रोजेक्ट भी खतरे में पड़ गया है, जो कि राज्य के विकास में अपनी अहम भूमिका निभा सकते थे। इसी प्रकार ये विदेशी संगठन भारत के पूर्वोतर के राज्यों में पर्यावरण के नाम पर खदानों और कोयला प्लांट्स के खिलाफ प्रदर्शन कर भारत की विकास की गाड़ी को धीमा करने के प्रयत्न कर चुके हैं।
NGO और नकली पर्यावरणविदों द्वारा चलाये जा रहे इस भारत विरोधी अभियान के खिलाफ केंद्र सरकार को सख्त रुख अपनाना ही चाहिए। वैसे तो भारत सरकार पहले ही Foreign Contribution Regulation Act यानि FCRA के माध्यम से इन भारत-विरोधी संगठनों पर लगाम लगाने की पहल कर चुकी है, लेकिन इस दिशा में सरकार को सावधानी बरतनी रहनी चाहिए, और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि भारत में कोई भी विकास-विरोधी NGO दोबारा भारत के विकास में कोई बाधा ना पहुंचा पाये.