हाल ही में OIC द्वारा आयोजित एक ऑनलाइन सम्मेलन में पाकिस्तान ने एक बार फिर भारत के विरोध और अपने ट्रेडमार्क कश्मीर मुद्दे हेतु समर्थन जुटाने का प्रयास किया। परन्तु इस बार भी उसे निराशा ही हाथ लगी। मालदीव ने पाकिस्तान की धज्जियां उड़ाते हुए उसे OIC को भारत के विरुद्ध मंच के तौर पर इस्तेमाल करने के लिए जमकर धुलाई की.
पर ठहरिए। यदि आपको लगता है कि यह अचानक हुआ है, तो क्षमा करें, आप गलत हैं। मालदीव ने जो कदम उठाया था, उसे ना केवल सऊदी अरब, अपितु UAE और ओमान का भी समर्थन प्राप्त था। ओमान ने स्पष्ट बताया कि जिन मुद्दों को पाकिस्तान उठाना चाहती है, वो भारत के आंतरिक मामले हैं। UAE ने यहां तक कह दिया कि ऐसा कोई भी कदम तभी लिया जाएगा, जब उसे OIC के सभी सदस्यों का समर्थन प्राप्त हो.
तो ऐसा क्या हुआ कि पाकिस्तान अपने साथी इस्लामिक देशों के बीच भी अकेला पड़ गया? दरअसल, इसका मुख्य कारण है पाकिस्तान की तुर्की के साथ बढ़ती नजदीकी। रिसेप तय्यीप एर्डोगन के नेतृत्व में तुर्की एक बार फिर से इस्लामिक जगत का सरताज बनना चाहती है, जो सऊदी अरब के लिए अच्छी बात नहीं है।
अरब देशों का पाकिस्तान को कड़ा संदेश
ऐसे में पाकिस्तान जैसे आतंक समर्थक देश के साथ तुर्की की बढ़ती नजदीकियां ना सिर्फ सऊदी अरब को, बल्कि अन्य खाड़ी देशों को भी खटकती है। ऐसे में OIC के इस बैठक के जरिए अरब जगत ने पाकिस्तान को एक स्पष्ट संदेश भेजा है – तुर्की का कुत्ता बनना है तो शौक से बने, पर अरब जगत का सदस्य समझने की भूल कदापि ना करें।
अब अगर गायतोंडे की ज़ुबानी कहें, तो सऊदी अरब इस्लामिक जगत का सर्वशक्तिशाली इकलौता भगवान, यानी शासक है। OPEC और OIC दोनों पर ही सऊदी का वर्चस्व व्याप्त है, और ऐसे में कोई भी देश यदि इस बादशाहत को चुनौती दे, तो सऊदी अरब फूल मालाओं से तो स्वागत नहीं करेगा ना।
अब एर्डोगन की नीयत साफ है। उसे एक बार फिर से इस्लामिक जगत का खलीफा बनना है, और इसके लिए वह सऊदी अरब को भी रास्ते से हटाने को तैयार है। UAE से भी उसके संबंध बहुत अच्छे नहीं है, क्योंकि लीबिया के गृह युद्ध में तुर्की की बढ़ती सक्रियता ने ना सिर्फ यूएई को आग बबूला किया है, बल्कि पाकिस्तान का मान ना मान मैं तेरा मेहमान वाला स्वभाव तो आग में घी का काम करने लगा।
#BoycottUAE अभियान चलाया था पाकिस्तानियों ने
इससे पहले पाकिस्तानियों ने तुर्की के कहने पर UAE का पुरजोर विरोध करना शुरू कर दिया था। वहीं UAE, जिसके दर पर पाकिस्तान हर बार अपना भीख का कटोरा लेकर पहुँच जाता है। लीबिया में जारी जंग के मुद्दे पर तुर्की और UAE आमने सामने हैं, जिसके कारण तुर्की के नए-नए गुलाम बने पाकिस्तान ने भी UAE को आड़े हाथों लेना शुरू कर दिया है। हालांकि, इसके लिए पाकिस्तान को लेने के देने भी पड़ सकते हैं।
लीबिया मुद्दे पर तुर्की पाकिस्तान एक साथ
अब आपको बताते हैं कि UAE और तुर्की के बीच मुद्दा क्या है। लीबिया के युद्ध में अभी दो गुट एक दूसरे के खिलाफ लड़ रहे हैं। Government of national accord (GNA) नाम के एक गुट को तुर्की से समर्थन प्राप्त है, जबकि UAE जनरल खलीफा के नेतृत्व वाले दूसरे गुट Libyan national army (LNA) का समर्थन करता है। हाल ही में तुर्की ने GNA को दिये जाने वाले समर्थन को कई गुना बढ़ा दिया है, जिसके बाद UAE समर्थित LNA गुट ने भी GNA के खिलाफ अभियान तेज कर दिया है। इसी कारण से UAE और तुर्की में तल्खी काफी बढ़ गयी है। इसमें पाकिस्तान का कुछ लेना देना नहीं है, लेकिन चूंकि इस विवाद में पाकिस्तान का नया मालिक तुर्की शामिल है, तो पाकिस्तान वाले भी इस जंग में कूद पड़े।
मलेशिया के नए पीएम भारत के साथ
इसके अलावा पाकिस्तान के साथ उसके बढ़ते संबंध मानो आग में घी का काम कर रहा है। पाकिस्तान पहले ही कई अरब देशों के लिए अस्पृश्य है, और तुर्की से उसकी नज़दीकी तो कोढ़ में खाज का काम कर रही है। यहां तक कि मलेशिया भी इस नेक्सस का हिस्सा था, परन्तु महाथिर मुहम्मद के सत्ता से बाहर होने के बाद इस नापाक गुट से मलेशिया के वर्तमान शासन ने काफी दूरी बनाके रखी है।
भारत का OIC पर प्रभाव भी काफी तगड़ा है। पिछले वर्ष सुषमा स्वराज को विशेष अतिथि के तौर पर निमंत्रित करने से लेके भारत विरोधी एजेंडा को ध्वस्त करने तक, OIC आश्चर्यजनक रूप से ही सही, पर भारत का हितैषी निकला है। जिस तरह से सऊदी के नेतृत्व में OIC ने पाकिस्तान को इस मंच का उपयोग भारत विरोधी अभियान हेतु करने के लिए लताड़ा है, उससे संदेश स्पष्ट है – पाकिस्तान, पहली फुरसत में निकल।