बिहार के लोगों का नीतीश कुमार से सिर्फ एक ही सवाल- ‘तुम्हारी नाकामी पर हम क्यों भुगतें’?

बिहार मांगे रोजगार!

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कोरोना की महामारी और उससे उपजी श्रमिकों की समस्या अब एक प्रमुख राजनीतिक मुद्दा बन चुका है और यह बिहार के चुनाव परिणामों के समीकरण में भारी बदलाव कर सकता है। श्रमिकों की समस्या पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का उदासीन रवैया अभी भी बना हुआ है जैसा कि उनका राज्य के अर्थव्यवस्था के प्रति बना हुआ था.

बिहार में खेती से होने वाली कम आमदनी और इंडस्ट्री की गैरमौजूदगी से बिहार ने मजदूरों, श्रमिकों और कामगारों का भयंकर पलायन देखा है। इसका नतीजा यह हुआ कि आज बिहार की अर्थव्यवस्था महाराष्ट्र, गुजरात और तमिलनाडु जैसे राज्यों पर टीका हुआ है, जहां बिहार के गरीब मजदूर जान लगाकर मेहनत करते हैं और रुपए कमाकर वापस अपने घर भेजते हैं और उसी रुपये से बिहार के लोगों का घर चलता है।

सुशासन बाबू के नाम से जाने जाने वाले नीतीश कुमार के सत्ता में 15 वर्षों से अधिक समय तक बैठने के बावजूद बिहार का जंगलराज खत्म नहीं हुआ है। आज भी किसी समस्या में सबसे अधिक नुकसान बाहर रह रहे इन श्रमिकों का ही होता है।

परंतु ऐसा लग रहा है कि कोरोना से मिले सबक ने बिहारियों को जागा दिया है और इसी कारण से बिहार की जनता नीतीश कुमार से सवाल कर रही है जिसे वो पिछले कई सालों से दोहराते आए हैं. एक बार फिर बिहार की जनता सुशासन बाबू से पूछ रही है कि आपने बीते 15 सालों में बिहार में क्या बदलाव किया और आपकी नाकामी पर बिहार की जनता क्यों भुगते?

लोगों ने सोशल मीडिया पर यह सवाल पूछना शुरू किया है और कल #BiharMeRojgar और #BiharMangeRojgar जैसे हैशटैग दिन भर ट्विटर पर ट्रेंड करता रहा।

 

इसी बीच महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के नेता राज ठाकरे का एक पुराना वीडियो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर वायरल हो गया। ठाकरे उस वीडियो में बिहार के लोगों से अपने राज्य सरकार से उनकी विफलता के लिए सवाल उठाने के लिए कहते नजर आ रहे हैं। समान्यतः बिहार के मजदूर राज ठाकरे को उनकी बिहारी विरोधी मानसिकता के कारण पसंद नहीं करते लेकिन यहां पर सभी ने उनके इस बात का समर्थन किया.

जो बिहारी दूसरे राज्य में जाकर अपने खून-पसीने से सींचकर राज्य के विकास में अपना योगदान करते हैं, उन्हीं बिहारियों का घर और सड़क निम्न दर्जे का होता है। रोड में इतने गड्ढे होते हैं कि उस पर चलने वाली गाड़ियों का अंजर-पंजर ढीला हो जाता है।

 

नीतीश कुमार भले ही मनरेगा में काम करने के दिनों को 100 से बढ़ा कर 200 मजदूरों को लुभाने की कोशिश कर रहे हों पर सच्चाई ठीक विपरीत है।

बिहार में मनरेगा के तहत 100 दिन के बजाय 30-35 दिन का काम मिलता है

बिहार में श्रमिकों को राज्य में औसतन 100 दिनों के बजाय केवल 30 से 35 दिनों का काम मिलता है। 2019-20 में आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, राज्य में उन लोगों के लिए रोजगार के दिनों की औसत संख्या 41.94 दिन थे। वहीं वित्तीय वर्ष 2018-19 के दौरान, उपलब्ध रोजगार के दिनों की औसत संख्या 42.19 थी। यही संख्या 2017-18 में 36.36 दिन और 2016-17 में 37.37 दिन थी।

न्यूज़क्लिक की रिपोर्ट के अनुसार, 29.24 लाख परिवारों में से लगभग 24,573 को 2018-19 के दौरान 100 दिनों का काम मिला, जबकि 2017-18 में 22.47 लाख में से 15,556 को और 2016-17 का 14,165 को 100 दिनों का काम मिला।

पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश युद्धस्तर पर विदेशी कंपनियों को बुला रहा है

एक तरफ जहां बिहार आर्थिक तौर पर गर्त में जा रहा है तो वहीं बगल के राज्य उत्तर प्रदेश को सीएम योगी आदित्यनाथ विकास की दौड़ में तेजी से आगे बढ़ा रहे हैं। जिस तरह से उन्होंने प्रवासी मजदूरों के लिए त्वरित कदम उठा कर इस मामले की गंभीरता को समझा है वह अन्य मुख्यमंत्रियों के लिए मिसाल है। यहां तक कि खुद बिहार के मजदूर भी सीएम योगी की तारीफ में कसीदे पढ़ते हैं. नीतीश और योगी में वे योगी को बेहतर सीएम बताते हैं.

रोजगार के लिए जहां एक तरफ योगी आदित्यनाथ विदेशी कंपनियों को लुभाने के लिए लगातार काम कर रहे हैं, तो वहीं दूसरी ओर बिहार के सीएम ने किसी प्रकार का उत्साह नहीं दिखाया। उनकी नीतियाँ उनके चुनावी टैग लाइन “क्यूं करें विचार, ठीके तो है नीतीश कुमार” से बिल्कुल मेल खाता है।

समाजवाद की बेड़ियों में जकड़ा है बिहार

उनके इस सोच से अगर सबसे अधिक नुकसान देखा जाए तो वह बिहार के श्रमिकों, मजदूरों और विद्यार्थियों को ही हुआ है। आज भी बिहार वहीं खड़ा है जहां कई वर्षों पहले खड़ा था। समाजवादी की बेड़ियों में जकड़े इस राज्य के सत्ता में बैठी पार्टियों ने न तो राज्य में किसी तरह का इंडस्ट्रियल विकास होने दिया और न ही किसी प्रकार का निजी निवेश होने दिया। जिसका परिणाम आज सामने है। बिहार का कोई भी व्यक्ति कमाने के लिए किसी अन्य राज्य की ओर देखता है।

कोरोना नीतीश की कुर्सी ले डूबेगा

पर अब लोगों ने सवाल पूछना शुरु कर दिया है. सोशल मीडिया से यह सवाल अब घर-घर तक पहुंचेगा और फिर तब बिहार की एक-एक जनता नीतीश कुमार से जवाब मांगेगी। इसी वर्ष चुनाव भी होने हैं और इस माहौल का असर चुनावों में स्पष्ट रुप से देखने को मिलेगा। नीतीश कुमार की गिरती लोकप्रियता को देखते हुए BJP को भी तुरंत उनसे अलग होकर चुनाव लड़ने की रणनीति पर विचार करना चाहिए, भाजपा को इसमें सफलता भी मिल सकती है क्योंकि भाजपा के पास इंडस्ट्रियल विकास के कई मॉडल हैं जिनसे जनता अवश्य प्रभावित होगी.

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