लगता है अब वुहान वायरस के कारण कई देशों का व्यवहार अब सदा के लिए बदलने वाला है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद शांति का पाठ आत्मसात करने वाले जापान ने सदियों बाद अपनी आक्रामकता को गले लगाने का निर्णय लिया है। इस वर्ष मार्च के अंत में जापान की संसद यानी राष्ट्रीय डायट ने 46.3 बिलियन डॉलर का रक्षा बजट स्वीकृत कराया है।
रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि ये निर्णय सीधा सीधा चीन के गुंडई को मुंहतोड़ जवाब देने हेतु लिया गया है। इस निर्णय से चीन के पसीने छूटने लगे, क्योंकि उसे अच्छी तरह मालूम है कि जापान उन देशों में नहीं आता, जिसे हल्के में लिया जा सके।
संविधान में बदलाव करके सैन्य ताकत बढ़ा रहा जापान
जापान का सैन्य बल पिछले कई वर्षों में काफी मजबूत हुआ है। इसका प्रमुख उद्देश्य था उत्तरी कोरिया के आक्रामक नीति से उत्पन्न होने वाले खतरे को नियंत्रण में लाना। जापानी संविधान का अनुच्छेद 9 उसे आक्रामक शस्त्र उठाने से प्रतिबंधित करता है, पर लगता है भारत की तरह जापान ने भी इस अनावश्यक बोझ से पीछा छुड़ाने का निर्णय ले लिया है.
पिछले कुछ वर्षों में जापान ने अपने रक्षा खर्च में भारी बढ़ोतरी करती आ रही है। पिछले वर्ष शिंज़ो आबे के नेतृत्व में जापानी सरकार ने लगभग 49 बिलियन डॉलर के रक्षा बजट को स्वीकृति दी थी, और जापान के वर्तमान रवैए को देख ऐसा लगता है कि इसमें अब कई वर्षों तक कोई कमी नहीं आने वाली है.
हथियारों की खरीद और निर्माण में तेजी
इसके साथ ही चीन के आक्रामक तेवर को कड़ा जवाब देने के लिए जापान अमेरिका F-35B स्टील्थ फाइटर विमान खरीद रहा है। यही नहीं जापान चीन के युद्धपोतों से बढ़ते खतरे को देखते हुए हाइपरसोनिक स्पीड से मार करने में सक्षम एंटी शिप मिसाइल बना रहा है। एक जापानी अधिकारी के मुताबिक– ‘हमारी मुख्य चिंता उत्तर कोरिया नहीं बल्कि चीन है।’
टोक्यो इसलिए भी चीन से चिढ़ा हुआ है, क्योंकि उसके फैलाए महामारी के कारण टोक्यो ओलंपिक को अगले वर्ष तक स्थगित करना पड़ा, जिसमें सरकार ने 12.35 बिलियन डॉलर का निवेश किया था। इसके अलावा वुहान वायरस के कारण जापान को आर्थिक मंदी से भी जूझना पड़ रहा है।
बार-बार जापानी सीमा में घुसने की कोशिश कर रहा है चीन
अगर यह काफी नहीं था, तो चीन ने सभी सीमाएं लांघते हुए पूर्वी चीन सागर में जापानी द्वीपों पर धावा बोल दिया। अभी हाल ही में चीनी कोस्ट गार्ड के जहाज जापान के अधिकार वाले दियाओयू द्वीप के पास देखे गए, जिस पर चीन अपना अधिकार जमाता है। जब इन्होंने एक स्थानीय जापानी फिशिंग बोट का पीछा करना शुरू किया, तो जापानी नौसेना ने तत्काल प्रभाव से पैट्रोलिंग जहाज़ भेजे, और फिर एक रेडियो वार्निंग भेजी, जिसके बाद चीनी जहाज़ों को दुम दबाकर भागना पड़ा।
इतना ही नहीं, जैसे-जैसे अब Japan में कोरोना के केस बढ़ते जा रहे हैं, जापान की सरकार का सब्र का बांध भी टूटता जा रहा है। चीन ने इसी को देखते हुए वुहान वायरस के खिलाफ लड़ाई में शुरू में जापान की तारीफ भी की थी। लेकिन अब लगता है कि इस तारीफ का भी जापान पर कोई असर नहीं हो रहा। Japan अब ना सिर्फ चीन की बल्कि WHO की भी खुलकर आलोचना कर रहा है।
पिछले दिनों जापान के उप प्रधानमंत्री तारो असो ने WHO पर निशाना साधते हुए कहा था कि WHO को अपना नाम बदलकर Chinese health organization रख लेना चाहिए। इसी के साथ उन्होंने उस प्रस्ताव का भी समर्थन किया था जिसके तहत WHO के मौजूदा अध्यक्ष टेड्रोस अधानोम को इस पद के लिए अयोग्य करार दिया जाना था।
सच कहें तो कुछ देशों की गुंडई, घुसपैठी देखकर एक कहावत याद आती है, “चमड़ी जाए पर दमड़ी ना जाए”। यही बात चीन पर शत प्रतिशत लागू होती है। इन सभी घटनाओं का अर्थ साफ है कि चीन अपनी औपनिवेशिक आकांक्षाओं को पूरा करने हेतु किसी भी हद तक जाता है। परंतु जापान ने भी तय कर लिया है कि अब वो चीन को उसी की शैली में जवाब देगा।