चीन के वुहान से आए कोरोना ने भारत के महाराष्ट्र पर विनाशकरी प्रभाव डाला है। कोरोना ने न सिर्फ लोगों के जीवन को अस्त-व्यस्त किया है, बल्कि महाराष्ट्र की राजनीति पर भी इसने गहरा असर डाला है। अब ऐसा लगता है कि महाविकास आघाड़ी में दरार पड़ ही चुकी है और यह सरकार अधिक दिनों की मेहमान नहीं है।
गठबंधन की सरकार चलाना आसान नहीं होता, वह भी तब जब तीन पार्टियां एक साथ मिल कर सरकार में हो। महाराष्ट्र में BJP को सत्ता से दूर रखने के लिए शिवसेना, NCP और कांग्रेस ने मिलकर एक बेमेल गठबंधन बनाया था पर अब जैसे हालात पैदा हो चुके हैं उससे तो यही लग रहा है कि यह गठबंधन जल्द ही टूटने वाला है। कल कांग्रेस के राहुल गांधी एक बयान में अपने आप को उद्धव सरकार से दूर करते दिखाई दिये।
राहुल गांधी ने कल प्रेस कांफ्रेंस में स्पष्ट कहा कि सरकार को समर्थन करना और सरकार को चलाना दो अलग अलग बातें हैं। उनका इशारा महाराष्ट्र की ओर ही था। राहुल गांधी ने कहा “पंजाब ,राजस्थान, छत्तीसगढ़ और पड्डुचेरी में कांग्रेस की सरकार है जहां हम अपने हिसाब से फ़ैसला कर सकते हैं लेकिन महाराष्ट्र में गठबंधन की सरकार है जहां कांग्रेस सबसे छोटा दल है।“
प्रेस कांफ्रेंस में राहुल गांधी से महाराष्ट्र में कोरोना पर सवाल पूछा गया था उसके जवाब में राहुल गांधी ने कहा कि वहां गठबंधन की सरकार है शिवसेना और एनसीपी 2 बड़े दल हैं जैसे हम कांग्रेस शासित राज्यों में फ़ैसला ले सकते है वैसे हम महाराष्ट्र में फ़ैसला नहीं कर सकते।
यानि समझा जा सकता है कि कांग्रेस और राहुल गांधी महाराष्ट्र में बेकाबू हुए कोरोना की ज़िम्मेदारी नहीं लेना चाहते हैं और लोगों को यह बताना चाहते हैं सरकार में उनकी कोई नहीं सुनता।
हालांकि, राहुल गांधी की इकलौते व्यक्ति नहीं है जिनके बयान से महाराष्ट्र में टूटते गठबंधन का पता चलता है।
NCP सुप्रीमो शरद पवार का भी उद्धव सरकार के साथ तल्खी सामने आ रही है। हालांकि, यह सभी को पता है कि भले ही CM पद पर उद्धव बैठे हैं पर असली राजनीतिक ताकत शरद पवार के पास ही है। एक तरफ जहां CM उद्धव कह रहे थे कि लॉकडाउन बढ़ाया जाना चाहिए तो वहीं शरद पवार का कहना था कि बड़े शहरों को खोलना अतिआवश्यक है। कई मुद्दों पर तो शरद पवार मोदी सरकार के फैसलों की तरफ दिखाई दिये हैं जबकि CM उद्धव उसके विरोध में थे।
रेलवे द्वारा मजदूरों को वापस उनके गृह राज्य पहुंचाए जाने के मामले पर भी यह दोनों एक दूसरे के खिलाफ नजर आए। एक तरफ जहां उद्धव रेलवे और रेल मंत्री को और अधिक ट्रेन उपलब्ध नहीं कराने का आरोप लगा रहे थे तो वहीं दूसरी तरफ, शरद पवार उन्हें धन्यवाद देते नजर आए। यही नहीं शिवसेना और कांग्रेस रेल मंत्री पीयूष गोयल पर आरोप लगाते दिखी तो वहीं NCP के प्रफुल्ल पटेल उन्हें धन्यवाद करते दिखे।
कांग्रेस के कई नेता हैं जो इस गठबंधन से खुश नहीं है और महाविकास आघाड़ी से अलग होना चाहते हैं। संजय निरूपम का नाम इसमे सबसे पहले आता है और वह कई मौकों पर उद्धव सरकार की आलोचना करते दिखे हैं। उनके कई बयानों से महाविकास आघाडी में दरार के संकेत मिलते हैं। निरुपम ने स्पष्ट कहा था कि, “कांग्रेस के पास प्रशासनिक अनुभव है, लेकिन महाराष्ट्र सरकार लाभ नहीं उठा रही है।”
कांग्रेस के पास सरकार चलाने का अनुभव है, जिसका फायदा महाराष्ट्र सरकार नहीं उठा रही है: संजय निरुपम
देखिए #AarPaar@AMISHDEVGAN @sanjaynirupam pic.twitter.com/KmMQ4irJpb— News18 India (@News18India) May 26, 2020
उन्होंने यह भी कहा, “बयान बिल्कुल सही है क्योंकि 3 पक्षों के बीच कोई समन्वय नहीं है।” निरुपम यहां तक कहते हैं, “मुझे नहीं लगता कि महाराष्ट्र सरकार अधिक दिनों तक चलेगी।”
.@RahulGandhi's statement is absolutely correct since there's no coordination between the 3 parties: @sanjaynirupam, Leader, Congress tells Navika Kumar on @thenewshour. | #RahulDumpsMaharashtra pic.twitter.com/S2sdTGwljp
— TIMES NOW (@TimesNow) May 26, 2020
उनके बयानों से ऐसा लगता है जैसे उद्धव ठाकरे सरकार की किस्मत लिखी जा चुकी है और महाराष्ट्र में एक बड़ा राजनीतिक उलटफेर देखने को मिल सकता है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चौहाण ने भी उद्धव सरकार को प्रवासी मजदूरों के मामले पर कोसा था।
यानि अगर घटनाओं को समझे तो उद्धव की सरकार अपना अंतिम दिन गिन रही है। वैसे महाविकास आघाड़ी बनी ही अवसरवाद की राजनीति के लिए इस वजह से यह हमेशा से ही एक कमजोर गठबंधन रहा है। अब कोरोना ने तीनों राजनीतिक पार्टियों के उसी अवसरवाद को सामने ला दिया है और अब कोई भी कोरोना के प्रति लपारवाही की ज़िम्मेदारी नहीं लेना चाहता है। इस वजह से अगर आने वाले कुछ दिनों में एक बड़ा राजनीतिक उलटफेर देखने को मिलता है तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।