कोरोना वायरस के कारण पूरी दुनिया में चीन के खिलाफ गुस्सा भरा हुआ है। यही कारण है कि ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका जैसे देश खुलकर चीन के खिलाफ बोल रहे हैं और इस महामारी में चीन की भूमिका की स्वतंत्र जांच करने की मांग भी कर रहे हैं। हालांकि, चीन को लेकर यूरोपियन यूनियन का रवैया शुरू से ही ढीला-ढाला रहा है। यूरोपियन यूनियन न सिर्फ समय-समय पर चीन के आगे झुका है, बल्कि Corona के समय वह एकजुट होने की बजाय स्वयं ही टुकड़ों में बंट गया। चीन इसी बात का फायदा उठाकर न सिर्फ ईयू पर दबाव बना रहा है, बल्कि अब उसे अपने फायदे के लिए भी इस्तेमाल कर रहा है। आसान शब्दों में कहें तो चीन ने ईयू को अब अपना गुलाम बना लिया है और कोरोना के बाद अपने आप को दुनिया के गुस्से से बचाने के लिए वह यूरोपीयन यूनियन का सहारा ले रहा है।
दरअसल, हाल ही में चीन में मौजूद यूरोपियन यूनियन के 27 सदस्य देशों के राजदूतों ने कोरोना वायरस पर चीन की प्रतिक्रिया की सराहना करते हुए एक पत्र लिखा और उस पत्र में कम्युनिस्ट पार्टी का बखान किया। हालांकि, इस पत्र के एक पैराग्राफ में कोरोना वायरस की उत्पत्ति को लेकर चीन का नाम लिखा गया था जो चीन को पसंद नहीं आया और चीन की मीडिया ने उस पत्र में से उस विशेष पैराग्राफ को हटाकर उस पत्र को सेंसर करके छाप दिया। चीन की इस हरकत पर यूरोपियन यूनियन ने भी कोई आपत्ति नहीं जताई। यहां तक कि यूरोपियन यूनियन के प्रवक्ता ने एक बयान देकर कहा कि थोड़े बहुत बदलाव के बाद EU के सभी देश उसे ऐसे ही छापने पर राजी हो गए थे।
स्पष्ट है कि दुनिया में अपनी छवि को बेहतर करने के लिए ना सिर्फ चीन ईयू से अपनी झूठी तारीफें करवा रहा है, बल्कि अगर कोई देश चीन का मामूली सा विरोध भी करता है तो उस पर चीन दबाव बनाकर उसे अपने सामने झुकने पर मजबूर कर देता है। हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब चीन ने ऐसा किया हो हाल ही में जब यूरोपियन यूनियन ने अपनी एक खुफिया रिपोर्ट तैयार की थी जिसमें चीन को लेकर काफी कड़वी बातें लिखी हुई थी और चीन ने हस्तक्षेप करने के बाद उस रिपोर्ट को काफी हद तक बदल दिया था और उस रिपोर्ट में से चीन के खिलाफ कई बातों को हटवा दिया था।
यह सिर्फ चीन की सरकार ही नहीं है जो इस तरह ईयू को अपने सामने झुका कर गुंडागर्दी कर रही है, बल्कि यूरोपीयन यूनियन के सभी देशों में मौजूद चीन के राजदूत भी गुंडागर्दी करने से बाज नहीं आ रहे हैं। हाल ही में फ्रांस में मौजूद चीन के राजदूत ने फ्रांस के लोगों का मजाक बनाते हुए कहा था कि फ्रांस के डॉक्टर और नर्स अपने लोगों को मरने के लिए छोड़ अपनी जिम्मेदारी से ही भाग रहे हैं। चीनी राजदूत के इस बयान पर फ्रांस की सरकार ने आपत्ति जताई थी और फ्रांस के राजदूत को समन भी किया था, लेकिन उसके बाद फ्रांस की सरकार कुछ नहीं कर पाई।
चीन का मुकाबला तो छोड़िए इयू के देश खुद एकजुट नहीं रह पा रहे हैं। एक तरफ जहां फ्रांस और इटली जैसे देश कर्ज लेने के लिए ईयू से Corona bonds जारी करने की मांग कर रहे हैं तो वहीं, जर्मनी जैसे देश इटली और फ्रांस को बड़ा कर्ज देने से बचते दिखाई दे रहे हैं। मार्च के महीने में सोशल मीडिया पर कई ऐसी videos भी सामने आई थी जिसमें इटली के लोग यूरोपियन यूनियन का झंडा जलाते हुए दिख रहे थे।
And another. How wonderfully British of him. https://t.co/ZsFEfpQQn8
— D (@woodycrombie) March 29, 2020
जिस प्रकार ईयू ने सहायता के समय इटली और फ्रांस जैसे देशों को अपने दम पर छोड़ दिया है उसके बाद इन देशों में ईयू विरोधी मानसिकता को बढ़ावा मिला है, जिसका चीन अब जमकर फायदा उठाना चाहता है।
ईयू कहने को तो 27 मजबूत देशों का एक समूह है लेकिन असल में आज की तारीख में इसमें कोई रीड की हड्डी नहीं बची है। यह चीन के एक दास की तरह बर्ताव कर रहा है। जो चीन इसे कहता है वही EU भी कहता है। EU के इटली जैसे देशों में बीआरआई के तहत चीन काफी निवेश कर रहा है और इन देशों को डर है कि अगर वह चीन के खिलाफ बोलना शुरू कर देंगे तो चीन उनके देशों में यह निवेश नहीं करेगा। सबसे बड़ी विडंबना की बात तो यह है कि जिस यूरोपीयन यूनियन को चीनी वायरस ने तबाह कर दिया वही यूरोपीयन यूनियन अब चीन के पैरों में पड़ा दिखाई दे रहा है। ऐसा लगता है कि इन “First world countries” के पास अब स्वाभिमान बचा ही नहीं है। इन्होंने अपनी इज्जत और इच्छाओं को चीन के हाथों बेच दिया है और भविष्य में अगर यूरोपियन यूनियन चीन की कॉलनी बन जाए तो इसमें किसी को कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए।