कोरोना वायरस के कारण अब दुनिया में चीन का विरोध बढ़ता जा रहा है, जिसका सबसे बड़ा फायदा ताइवान को हो रहा है। कोरोना के बाद अब दुनिया में ताइवान की स्वीकृति बढ़ती जा रही है। इसी कड़ी में हाल ही में फ्रांस ने भी ताइवान के साथ एक बड़ी डिफेंस डील पक्की की है जिससे ड्रैगन बुरी तरह चिढ़ा हुआ है।
ताइवान ने अपना anti-missile system मजबूत करने के लिए फ्रांस के साथ सुरक्षा समझौता किया है, जिसके कारण चीन ने पेरिस को “बुरा अंजाम” भुगतने की धमकी दी है। हालांकि, फ्रांस की ओर से भी चीन को यह साफ संदेश भेजा जा चुका है कि उसे चीन से किसी नसीहत की ज़रूरत नहीं है, और चीन को ढंग से कोरोना महामारी को काबू करने पर ध्यान देना चाहिए।
बता दें कि यूं तो ताइवान के अधिकतर सुरक्षा उपकरण अमेरिका में ही बने हुए हैं। हालांकि, वर्ष 1991 में फ्रांस ने ताइवान को छः Lafayette frigates बेचे थे, इसके साथ ही वर्ष 1992 में फ्रांस ने ताइवान को 60 मिराज फाइटर जेट भी बेचे थे, जिससे चीन गुस्से में आग-बबूला हो गया था। अब जब फ्रांस ने ताइवान के साथ एक और डिफेंस डील पक्की कर ली है तो इसपर चीन ने आपत्ति दर्ज करते हुए कहा-
“ताइवान ‘एक चीन’ का हिस्सा है और अगर कोई भी देश चीन के साथ कूटनीतिक संबंध रखता है तो उसे ‘एक चीन’ नीति का पालन करना ही होगा। हम फ्रांस से तुरंत ताइवान के साथ की गयी डिफेंस डील को रद्द करने की मांग करते हैं”।
बाद में फ्रांस की ओर से भी चीन को उसी की भाषा में जवाब दिया गया। फ्रांस के विदेश मंत्रालय ने जवाब दिया–
“वर्ष 1994 से हमारी नीति एक समान ही रही है और हम ताइवान के साथ किए गए अपने द्विपक्षीय समझौतों का आदर करते हैं। कोरोना महामारी के समय में सभी देशों का ध्यान कोरोना से निपटने पर होना चाहिए”।
यह पहली बार नहीं है जब फ्रांस ने चीन को आड़े हाथों लिया हो। पिछले महीने एक interview देते हुए फ्रांस के राष्ट्रपति इमेनुएल मैक्रों ने कहा था “अभी इस महामारी के बारे में बहुत कुछ ऐसा है जो सामने नहीं आया है और जिसकी जांच की जानी चाहिए”। इस दौरान मैक्रों का सीधा इशारा चीन से आ रहे कोरोना के अविश्वसनीय डेटा की तरफ था।
पिछले कुछ समय से फ्रांस की मीडिया में भी चीन विरोधी आवाज़ें ज़ोर पकड़ती जा रही हैं। हाल ही में फ्रांस की एक एक मैगज़ीन Le Figaro में एक लेख छपा था जिसका शीर्षक था “The great Chinese lie” और उसकी कवर फोटो में शी जिनपिंग की मास्क लगाई फोटो को लगाया गया था।
Le Figaro फ्रांस में बेहद लोकप्रिय अखबार भी है और यह पिछले काफी समय से यूरोप में इस वायरस की महामारी के लिए चीन को जिम्मेदार ठहरा रहा है। इसी अखबार के एक लेखक ने वुहान लैब theory का भी भरपूर समर्थन किया था, जिसके मुताबिक कोरोना वायरस वुहान की लैब से ही फैला है। हालांकि, चीन लगातार इस theory को बकवास बताता आया है।
फ्रांस और चीन में विवाद तब भी बढ़ गया था जब फ्रांस में मौजूद चीनी राजदूत ने अपने एक लेख में फ्रांस के स्वास्थ्य कर्मियों और अधिकारियों को नैतिक तौर पर भ्रष्ट बता डाला था। उस राजदूत ने फ्रांस के डॉक्टरों पर अपने स्वार्थ के लिए मरीजों और फ्रांस के नागरिकों को मरने के लिए छोड़ने का आरोप लगाया था। इस लेख के माध्यम से चीन का मकसद कोरोना को हैंडल करने को लेकर पश्चिमी देशों की आलोचना करना था।
हद तो तब हो गई जब उस राजदूत ने यह लेख चीन के दूतावास की आधिकारिक वेबसाइट पर प्रकाशित कर दिया। तब फ्रांस सरकार ने उस लेख पर तुरंत प्रतिक्रिया देते हुए चीन के राजदूत को समन जारी कर दिया था। बाद में पकड़े जाने पर चीन के विदेश मंत्रालय ने यह दावा किया था कि उनके राजदूत ने फ्रांस के खिलाफ कभी कुछ बोला ही नहीं।
पश्चिम देशों में अमेरिका के अलावा खुलकर अगर कोई देश चीन का सामना कर रहा है तो उसका नाम है फ्रांस! फ्रांस ना सिर्फ ताइवान के साथ डिफेंस डील कर चीन को उसकी जगह दिखा रहा है, बल्कि खुलकर कोरोना के मुद्दे पर भी चीन की आलोचना कर रहा है। चीन विरोधी गुट में फ्रांस की यह सक्रिय भागेदारी चीन के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं है।