कोरोना वायरस ने दुनिया के कई गहरे राज़ से पर्दा उठाया है। इसमें से सबसे प्रमुख है चीन और WHO की साँठ-गाँठ। अब एक नए खुलासे में चीन के UNHRC के साथ साँठ-गाँठ की खबर सामने आई है कि कैसे चीन अपने खिलाफ बोलने वालों के नाम-पता पहले ही इस संगठन से ले लेता था।
दरअसल, चीन के WHO को अपना प्रोपोगेंडा की तरह इस्तेमाल करने और अन्य संगठनों पर बढ़ते प्रभाव के बाद सभी को शक हो चुका था, लेकिन इसकी तह में जाने की जुर्रत wion ने दिखाई और चीन के UNHRC के साथ अनैतिक सम्बन्धों का खुलासा किया। ये वही UNHRC है जो भारत और पीएम मोदी के खिलाफ रिपोर्ट प्रकाशित करता रहता है।
Wion की रिपोर्ट के अनुसार चीन ने UNHRC में अपने प्रभाव का दुरुपयोग करते हुए इस संगठन का भी अपनी मनमानी के लिए इस्तेमाल किया है। बता दें कि UNHRC यानि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद का मुख्य कार्य अधिकारों के अंतर्राष्ट्रीय बिल, नागरिक स्वतंत्रता, स्त्री दशा एवं मानवाधिकार सम्बन्धी विषयों पर अपनी अनुशंसाएं प्रकट करना है। परंतु अब इसी संगठन की एक अधिकारी ने इस संगठन के चीनी प्रेमी होने का खुलासा किया है। चीन ने इस संगठन का इस्तेमाल CCP के खिलाफ जाने वालों एक्टिविस्टों की जानकारी पाने के लिए किया था।
Emma Riley नाम की इस अधिकारी ने बताया कि 2013 में उसे पता चला कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार का कार्यालय बीजिंग को चीनी कार्यकर्ताओं के नाम सौंप रहा था जो कार्यकर्ता मानवाधिकार परिषद के सत्रों में भाग लेने की योजना बना रहे थे। इसके बाद जब Emma Riley को UNHRC के इस करतूत के बारे में पता चला तो उन्हें जबरन दूसरे पद पर स्थानांतरित कर दिया गया था।
चीन की सरकार उन विरोधी एक्टिविस्टों को उस सत्र में भाग नहीं लेने देना चाहती थी जिससे उनकी पोल खुले। इसलिए UNHRC के कार्यालय में Mr Chen Can के नाम से ईमेल प्राप्त हुआ जिसमें कुछ एक्टिविस्टों के नाम थे।
Wion ने खुद Emma Riley का इंटरव्यू लिया जिसमें ये खुलासे किए गए थे। उन्होंने बताया कि कुछ ही घंटों में दो एक्टिविस्टों के बारे में जानकारी बीजिंग भेज को दी गयी थी। Emma Riley के अनुसार तुर्की ने भी इसी तरह की जानकारी मांगी थी लेकिन उसे जानकारी देने से मना कर दिया गया था। मतलब यह कि किसी देश को अलग से इस तरह से जानकारी देना UN के नियमों का स्पष्ट उल्लंघन था जिसे सिर्फ चीन के लिए तोड़ा गया था। इस प्रकार से किसी भी मानवाधिकार के कार्यकर्ताओं की जानकारी देकर UNHRC ने चीन के लिए न सिर्फ नियमों की धज्जियां उड़ाई, बल्कि उन एक्टिविस्टों के जान को भी खतरे में डाला।
इस मामले को 7 वर्ष हो चुके हैं और यह अभी सामने आ रहा है। अभी तक न जाने कितने एक्टिविस्टों को चीन की यातना सहनी पड़ी होगी।
बता दें कि ये वही UNHRC है जिसने CAA को भेदभावपूर्ण बताया था और भारत में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार की कहानी गढ़ी थी। यही नहीं इसी संगठन ने नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ भारत के सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की बात कही थी। भारत द्वारा CAA लागू करने के बाद, संयुक्त राष्ट्र के उच्चायुक्त के मानवाधिकार के प्रवक्ता, जेरेमी लॉरेंस ने एक बयान जारी किया था, जिसमें लिखा था, “हम चिंतित हैं कि भारत का नया नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 मूलभूत रूप से भेदभावपूर्ण है।”
संयुक्त राष्ट्र की इस बॉडी ने यह भी आरोप लगाया था कि यह संशोधन कानून “equality before law” के लिए भारत की संवैधानिक प्रतिबद्धता को भी कमज़ोर करता है।
इसी UNHRC में पाकिस्तान ने अनुच्छेद 370 पर भारत के विरुद्ध 115 पन्नों का एक डोज़ियर भी जमा किया था जिसमें उसने भारत के खिलाफ एजेंडा चलाने के लिए राहुल गांधी और उमर अब्दुल्ला के देश विरोधी बयानों को प्रमुखता से शामिल किया था।
अब चीन के साथ इसके संबंध के खुलासों के बाद स्पष्ट हो गया है कि आखिर क्यों UNHRC इस तरह से भारत और पीएम मोदी की छवि वैश्विक स्तर पर खराब करना चाहता है। चीन को पता है कि नरेंद्र मोदी का बढ़ता कद उसके किए खतरा होगा उसने इस संगठन के साथ मिल कर भारत को बदनाम करने की सजिश रची होगी।
पाकिस्तान या चीन में होने वाले अल्पसंख्यकों पर आँख पर पट्टी लगाने वाले इस संगठन की पोल अब खुल चुकी है। अभी तो सिर्फ WHO और UNHRC का चीन के साथ सम्बन्धों का खुलासा हुआ है, अभी न जाने और कितने राज खुलने बाकी हैं।